कॉर्बेट पार्क : उत्तराखंड में 560 बाघों की मौजूदगी की पुष्टि, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की तरफ से भारत सरकार ने की है। देश में 3167 बाघों के होने की पुष्टि की गई है। जिनमें मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 785 और कर्नाटक में 563 बाघों की संख्या के बाद उत्तराखंड को तीसरे पायदान पर स्थान दिया गया है।
यदि राज्य की भागौलिक क्षेत्र की स्थिति का आंकलन करें तो उत्तराखंड पहले स्थान पर आता है। जहां टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में हर पांच किमी में एक बाघ की मौजूदगी है। जबकि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से लगे वेस्टर्न सर्कल में भी बाघों की संख्या किसी भी टाइगर रिजर्व से कम नहीं है। वेस्टर्न सर्कल वो क्षेत्र है, जोकि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से लगा हुआ है, जैसे रामनगर फॉरेस्ट डिविजन, तराई फॉरेस्ट डिविजन और नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, यहां वो उम्र दराज बाघ होते है, जोकि टेरेटरी की जंग में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में जवान बाघों द्वारा खदेड़ दिए जाते हैं।
देश में 2014 में 2226, पिछली गणना 2018 में 2967 बाघ थे। अब चार साल बाद करीब दो सौ बाघ बढ़ गए हैं। देश के 2.63 प्रतिशत वन क्षेत्र को बाघों के घर यानि 53 टाइगर रिजर्व के रूप में संरक्षित किया गया है।
देश में झारखंड ऐसा राज्य है। जहां घने जंगल होने के बावजूद वहां एक ही बाघ की मौजूदगी सामने आई है। ऐसा संभवतः वहां की जलवायु और बाघ के भोजन की कमी से हुआ है। बाघ पहाड़ और मैदान के बीच भावर इलाके के जंगलों में पाए जाए हैं, लेकिन बाघों की मौजूदगी उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र के बर्फ वाले क्षेत्रों तक में दिखाई दी है।
बाघ विशेषज्ञ शाह बिलाल मानते हैं, कि उच्च हिमालय क्षेत्र तक बाघ कैमरा ट्रैपिंग में दिखाई दिए हैं, ऐसा इसलिए हो रहा है, कि वहां उसे जंगलों में भोजन मिल रहा है।
उत्तराखंड छोटा राज्य है, लेकिन बाघों की दृष्टि से सभी धनी राज्य हैं, ये देश का एकमात्र राज्य है। जहां हर जिले में बाघों की मौजूदगी है, बेशक एनटीसीए की गाइड लाइन के अनुसार केवल रिजर्व फॉरेस्ट में ही कैमरा ट्रैपिंग से बाघों को मौजूदगी की गणना होती है, लेकिन उत्तराखंड के वन पंचायत क्षेत्रों में भी बाघों की मौजूदगी की रिपोर्टिंग हुई है। अभी तक हिमालय के वन पंचायत क्षेत्रों में लेपर्ड ज्यादा होते देखे गए हैं, लेकिन लेपर्ड के इलाकों में बाघों की दस्तक एक स्वस्थ्य जंगल या हेबिटेट की पहचान है।
वन पंचायत के मुख्य वन संरक्षक डॉ. पराग धकाते बताते हैं, कि एनटीसीए की गाइडलाइंस के अनुसार उत्तराखंड बाघों की संख्या में तीसरे नंबर पर है, किंतु यदि हम राज्य के अन्य जंगलों जोकि टाइगर रिजर्व से जुड़े वन पंचायत के जंगल होते हैं। वहां भी बाघों की मौजूदगी है। उस दृष्टि से बाघों की संख्या में उत्तराखंड और ऊंचे पायदान पर पहुंच जाता है।
उत्तराखंड की वाइल्डलाइफ चीफ डॉ. समीर सिन्हा कहते हैं, कि हमारा राज्य देश में तीसरे नंबर पर है, और हम कर्नाटक से थोड़ा पीछे ही है, लेकिन हमारे यहां बाघ ज्यादा हैं। इसमें कोई शक नहीं और हम इसलिए भी उत्साहित हैं, कि हमारे यहां शावकों की संख्या भी सम्मानजनक है। हम एक साल की उम्र तक शावकों के बाद उसे बाघों की गणना में शामिल करते हैं।
डॉ. सिन्हा कहते हैं, कि वो दिन दूर नहीं कि हम पहले दूसरे स्थान पर होंगे और इसमें हमारे लिए चुनौतियां भी बहुत ज्यादा हैं। हमें बाघों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए और बेहतर इंतजाम करने होंगे। खासतौर पर टाइगर रिजर्व से बाहर के बाघों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती रहती है।
बाघ, मां दुर्गा की सवारी
उत्तराखंड देव भूमि मानी जाती है। यहां हर चोटी पर माता दुर्गा का देवी स्वरूप मंदिर है। यहां बाघों को सम्मान मिलता रहा है, पहाड़ों में तेंदुए को खलनायक की दृष्टि से देखा जाता है, और इसे भी बाघ बोला जाता है, लेकिन टाइगर को यहां संरक्षण सुरक्षा इसलिए भी मिलती रही है, कि ये माता दुर्गा की वाहिनी है।
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