श्रीनगर। घाटी में तीन दशक से अधिक के अंतराल के बाद श्रीनगर में शिया समुदाय ने गुरुवार को गुरुबाजार से डलगेट पारंपरिक मार्ग पर मुहर्रम का जुलूस निकाला, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद समुदाय के सदस्यों द्वारा जुलूस निकाला गया। मुहर्रम जुलूस में भाग लेने वाले लोग सुबह करीब साढ़े पांच बजे गुरुबाजार में एकत्र हुए क्योंकि अधिकारियों ने व्यस्त लाल चौक क्षेत्र से गुजरने वाले मार्ग पर जुलूस के लिए सुबह छह बजे से आठ बजे तक दो घंटे का समय दिया था।
कश्मीर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय कुमार ने संवाददाताओं को बताया कि मुहर्रम जुलूस के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। एडीजीपी ने संवाददाताओं के सामने कहा कि शिया समुदाय की ओर से पिछले कुछ वर्षों से मांग की जा रही थी कि इस जुलूस की अनुमति दी जाए। सरकार द्वारा निर्णय लेने के बाद हमने इसके लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की। उन्होंने कहा कि 30 से अधिक वर्षों में यह पहली बार है कि मुहर्रम के 8वें दिन के जुलूस को मार्ग पर अनुमति दी गई है।
बुधवार को कश्मीर के मंडलायुक्त वीके भिदुरी ने कहा था कि चूंकि जुलूस कार्यदिवस पर निकाला जा रहा है, इसलिए समय सुबह 6 बजे से सुबह 8 बजे तक सीमित कर दिया गया है ताकि लोगों को किसी भी असुविधा का सामना न करना पड़े। उन्होंने कहा कि हमारे शिया भाइयों की लंबे समय से मांग थी कि गुरुबाजार से डलगेट तक पारंपरिक जुलूस की अनुमति दी जाए। पिछले 32-33 वर्षों से इसकी अनुमति नहीं थी। अधिकारी ने कहा था कि जुलूस की अनुमति देने का प्रशासन का निर्णय एक ऐतिहासिक कदम है। उन्होंने यह भी कहा था कि कार्यक्रम के शांतिपूर्ण समापन से प्रशासन को अन्य मुद्दों पर भी इसी तरह के निर्णय लेने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोगों ने ऐसा माहौल बनाया है, जिससे प्रशासन को यह फैसला लेने में मदद मिली है।
इसलिये लगाया गया था प्रतिबंध
घाटी में वर्ष 1988 के बाद मुहर्रम के 8वें जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 1989 में मुहर्रम के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह राष्ट्रपति जिया उल हक की मौत के कारण जम्मू-कश्मीर में हालात को देखते हुए मुहर्रम का जुलूस नहीं निकालने दिया गया था। इसके बाद घाटी में 1990 में आतंकी हिंसा का दौर शुरू हो गया। अलगाववादी खुलकर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हो रहे थे। जुलूस में आम शिया मुसलमानों की जगह अलगाववादियों के समर्थक ज्यादा होते थे। जेकेएलएफ और हुर्रियत के पूर्व चेयरमैन मौलवी अब्बास अंसारी के समर्थक होते थे। जुलूस में सांप्रदायिक हिंसा भी होने लगी थी। 1989 में प्रतिबंधित होने से पहले आठवीं मुहर्रम का जुलूस गुरु बाजार से निकलता था और इमामबारगाह डलगेट पर समाप्त होता था।
मुहर्रम जुलूस, जी20 बैठक, पर्यटकों की आमद सामान्य स्थिति की गवाही देती है: रमन सूरी
शिया समुदाय द्वारा 34 वर्षों की अवधि के बाद श्रीनगर में गुरु बाजार से डलगेट तक मुहर्रम जुलूस के पारंपरिक मार्ग की बहाली, रिकॉर्ड तोड़ने वाली श्री अमरनाथ जी तीर्थयात्रा और गर्मियों के दौरान पर्यटकों की भारी आमद कश्मीर घाटी में शांति की शुरुआत का प्रमाण है। यह सामान्य स्थिति, जिसमें सभी धर्मों और समुदायों के लोग शांतिपूर्वक अपने सामाजिक और धार्मिक दायित्वों को निभा रहे हैं, कश्मीर के कैनवास से गायब थी और अब जब सब कुछ अपनी सही जगह पर आ रहा है, तो यह सभी के लिए बहुत संतुष्टि और गर्व की बात है। यह बात भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जम्मू-कश्मीर कार्यकारी सदस्य रमन सूरी ने शुक्रवार को कही।
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