ये एक्यूट तथा क्रॉनिक, दोनों हो सकता है। इस रोग का एक्यूट प्रकार अल्पावधि के लिए होता है जो ऋयूमेटिक बुखार के कारण या किसी अन्य बीमारी के दूसरे लक्षण के कारण होता है। कई लोग अम्लीय खाद्य पदार्थों को आर्थराइटिस उत्पन्न करने का कारण मानते हैं।
जोड़ों का दर्द आजकल सामान्य रूप से अधिकांश लोगों में देखा जा रहा है। इससे चलने-फिरने, उठने-बैठने, कुछ काम करने जैसी सभी क्रियाओं में तकलीफ होती है। कई लोग इस दर्द के कारण बिस्तर पर भी पड़ जाते हैं। जोड़ों के दर्द से क्रियाएं बड़ी सीमित हो जाती हैं, जिसका सीधा असर शरीर के पोषण पर भी पड़ता है। इससे लोगों में पोषक तत्वों का ऋणात्मक संतुलन हो जाता है। इससे शरीर का चयापचय भी प्रभावित होता है।
जोड़ों के दर्द के कई कारण हो सकते हैं। परंतु इसका एक सामान्य कारण आर्थराइटिस है। इसमें जोड़ों में सूजन तथा संक्रमण (इन्फ़्लमेशन) होता है। ये एक्यूट तथा क्रॉनिक, दोनों हो सकता है। इस रोग का एक्यूट प्रकार अल्पावधि के लिए होता है जो ऋयूमेटिक बुखार के कारण या किसी अन्य बीमारी के दूसरे लक्षण के कारण होता है। कई लोग अम्लीय खाद्य पदार्थों को आर्थराइटिस उत्पन्न करने का कारण मानते हैं।
अत: वे लोग खट्टे पदार्थों का सेवन बंद कर देते हैं। परंतु वैज्ञानिक दृष्टि से आर्थराइटिस का कारण अम्लीय पदार्थ बिलकुल भी नहीं है। आर्थराइटिस में शरीर में वात दोष जरूर होता है। अत: इस समय वात वाले पदार्थ जैसे छोले, राजमा, चना, ज्यादा मात्रा में दूध व चाय, मैदा, मसालेदार पदार्थ इत्यादि का सेवन न करें तो दर्द में थोड़ी राहत मिलती है। यदि आर्थराइटिस का दर्द बार-बार हो तो उसे क्रॉनिक कहा जा सकता है।
वजन कम होने से जोड़ों का दर्द भी कम हो जाता है। इसमें उचित विश्राम, उचित शारीरिक व्यायाम, फिजिओथेरेपी तथा वजन कम करने के लिए संतुलित आहार की सलाह दी जाती है। ध्यान रहे, आपके खाने में प्रोटीन की मात्रा कम न हो। इसके लिए नियमित रूप से शाकाहारी भोजन में दूध, पनीर, टोफू, अंकुरित अनाज तथा दालों का सेवन करना चाहिए। वजन कम करने के लिए आपके भोजन में से 500 किलो कैलोरी रोज कम करना लाभदायक होता है।
क्रॉनिक आर्थराइटिस दो प्रकार के होते हैं- (अ) ऋयूमेटिक आर्थराइटिस, (ब) आस्टियो आर्थराइटिस। ऋयूमेटिक आर्थराइटिस सभी आयु के लोगों में, मुख्यत: 35 से 40 वर्ष के बाद की महिलाओं में ज्यादातर देखने को मिलता है। ठंडी जलवायु वाले स्थानों पर इसका प्रकोप ज्यादा होता है। इससे पीड़ित लोगों में थकावट, जोड़ों में कड़ापन देखने को मिलता है। इसमें सायनोवियल मेम्ब्रेन में सूजन आ जाती है। ऋयूमेटिक आर्थराइटिस में शरीर के प्लाज्मा में ऋयूमेटिक फैक्टर की मात्रा सामान्य से बढ़ी होती है। यह एक आॅटोइम्यून संक्रमण है। इस बीमारी में भूख न लगना, सामान्य क्रियाएं करने में असमर्थ होना, खून की कमी, बुखार आना, कमजोरी तथा वजन कम होना सामान्य लक्षण हैं।
इसमें दर्द ज्यादा होने पर ही दर्दनाशक दवाएं दी जाती हैं। आहार में मुख्यत: सादा, पौष्टिक, सुपाच्य तथा पोषक तत्वों से भरपूर आहार लेने की सलाह होती है। इस बीमारी में मुख्यत: कम वजन तथा कम हुए पोषक तत्वों की तरफ ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। कई लोग ऋमेटिक आर्थराइटिस में कम काबोर्हाइड्रेट के भोजन की सलाह देते हैं। परंतु ऐसा करने से शरीर में कमजोरी आ सकती है। इसमें लौह तत्व, विटामिन सी, ए, बी6 से भरपूर भोजन करना चाहिए। खाने में मोटा अनाज, मौसमी फल, सब्जियां, दालचीनी, काली मिर्च, मूंग व मसूर की दाल को शामिल करने से अच्छे फायदे होते हैं।
आस्टियो आर्थराइटिस को डीजनरेटिव आर्थराइटिस भी कहा जाता है। यह जोड़ों की आर्टिकुलर कार्टिलेज के नष्ट हो जाने से होता है। आॅस्टियो आर्थराइटिस होने का मुख्य कारण जोड़ों में चोट लगना, कोई लंबी बीमारी हो सकता है। इससे पीड़ित व्यक्ति का वजन सामान्यत: ज्यादा ही होता है। इस बीमारी के उपचार का प्रथम पड़ाव दर्द को कम करना तथा आहार की सहायता से बढ़े हुए वजन को कम करना होता है।
वजन कम होने से जोड़ों का दर्द भी कम हो जाता है। इसमें उचित विश्राम, उचित शारीरिक व्यायाम, फिजिओथेरेपी तथा वजन कम करने के लिए संतुलित आहार की सलाह दी जाती है। ध्यान रहे, आपके खाने में प्रोटीन की मात्रा कम न हो। इसके लिए नियमित रूप से शाकाहारी भोजन में दूध, पनीर, टोफू, अंकुरित अनाज तथा दालों का सेवन करना चाहिए। वजन कम करने के लिए आपके भोजन में से 500 किलो कैलोरी रोज कम करना लाभदायक होता है।
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