भारतीय विदेश-नीति की दिशा को समझने की कोशिश की जा सकती है। मई में प्रधानमंत्री हिरोशिमा में जी-7 देशों की बैठक में शामिल हुए। वापसी में वे पापुआ न्यू गिनी में एफआईपीआईसी के तीसरे शिखर सम्मेलन में सम्मिलत हुए, जिसमें सभी 14 प्रशांत द्वीप देशों ने भाग लिया। एफआईपीआईसी का गठन 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की फिजी यात्रा के दौरान किया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मई, जून और जुलाई में हुईं तीन यात्राओं के निहितार्थ को एक साथ देखते हुए भारतीय विदेश-नीति की दिशा को समझने की कोशिश की जा सकती है। मई में प्रधानमंत्री हिरोशिमा में जी-7 देशों की बैठक में शामिल हुए। वापसी में वे पापुआ न्यू गिनी में एफआईपीआईसी के तीसरे शिखर सम्मेलन में सम्मिलत हुए, जिसमें सभी 14 प्रशांत द्वीप देशों ने भाग लिया। एफआईपीआईसी का गठन 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की फिजी यात्रा के दौरान किया गया था। चीन ने बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत पापुआ न्यू गिनी के करीब सोलोमन द्वीप समूह के साथ एक सुरक्षा समझौता किया है। अब चीन, पापुआ न्यू गिनी को भी लुभा रहा है। यह बात क्वाड समूह के देशों के लिए चिंता का विषय है। इसके बाद मोदी आस्ट्रेलिया गए जहां फिर उनका जबरदस्त स्वागत किया गया।
सुदूर पूर्व की इस यात्रा के बाद मोदी जून में अमेरिका और वापसी में मिस्र पहुंचे। उस यात्रा को सुदूर पूर्व की यात्रा के साथ जोड़कर देखने की जरूरत है। और अब जुलाई में वे फ्रांस गये और वापसी में संयुक्त अरब अमीरात। इस बीच वे दिल्ली में हुए शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में शामिल हुए। अभी दो महत्वपूर्ण आयोजन और हैं। एक है अगस्त में जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स का शिखर सम्मेलन और फिर सितंबर में दिल्ली में जी-20 का शिखर सम्मेलन।
ये सभी परिघटनाएं वैश्विक मंच पर भारत के सूर्योदय की कहानी कह रही हैं। इस दौरान कुछ विसंगतियां भी सामने आई हैं, जिनसे हमारे रणनीतिकार किस प्रकार निबट रहे हैं, यह देखना रोचक है। इसमें तीन बातें स्पष्ट हो रही हैं। भारत की वैश्विक उपस्थिति को स्वीकार किया जा रहा है। दूसरे, वैश्विक मंच पर भारत, ‘ग्लोबल-साउथ’ यानी विकासशील देशों की आवाज बनकर उभरा रहा है। और तीसरे इस प्रयास में हमारा मुकाबला चीन से है। फिलहाल आर्थिक रूप से भारत बहुत बड़ी शक्ति पर बनता जा रहा है।
‘स्वतंत्र विदेश-नीति’ का संचालन सरल नहीं है, पर हम इतनी छोटी ताकत भी नहीं कि किसी के पिछलग्गू बनकर रहें। भारत ध्रुवों के बीच अपनी जगह बना रहा है। एससीओ पर चीन और रूस का वर्चस्व है। दोनों मिलकर अपने प्रभाव वाली विश्व-व्यवस्था चाहते हैं। इसमें एससीओ और ब्रिक्स की भूमिका होगी। ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में चीन कुछ नये सदस्यों को शामिल करने का प्रयास करेगा। उस सम्मेलन पर नजर रखने की जरूरत है।
फ्रांस से दोस्ती
स्वतंत्रता के बाद शुरुआती दशकों में यूरोप में भारत का सबसे करीबी देश ब्रिटेन था, लेकिन पिछले 25 वर्ष में पारस्परिक हितों के स्तर पर फ्रांस भारत के सबसे मजबूत मित्र के रूप में उभरा है। फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस ‘बास्तील दिवस परेड’ में प्रधानमंत्री मोदी का मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना और फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान से अलंकृत होना इस महत्व को रेखांकित करता है। रूस के बाद फ्रांस इस समय भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता है। भारतीय वायु सेना में पहली पीढ़ी के दासो आरैगां लड़ाकू विमानों की खरीद से लेकर हाल की पनडुब्बी और राफेल-एम सौदे तक भारत ने फ्रांस से कई हाई-टेक रक्षा उत्पादों की खरीद की है।
रक्षा-सहयोग
प्रधानमंत्री ने 14 जुलाई को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ वार्ता की। उन्होंने मैक्रों के साथ संवाददाता सम्मेलन में कहा, भारत और फ्रांस की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने की विशेष जिम्मेदारी है। दोनों देशों के बीच भारत के ‘यूपीआई’ को उपलब्ध कराने के लिए एक समझौता हुआ है। फ्रांस ऐसा करने वाला पहला यूरोपीय देश है। इसके पहले रक्षा मंत्रालय ने 13 जुलाई को दिल्ली में फ्रांस से राफेल जेट के 26 नौसैनिक स्वरूप खरीदने और तीन फ्रांसीसी-डिजाइन वाली स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों की खरीद के प्रस्तावों को मंजूरी दी।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘रक्षा सहयोग हमारे घनिष्ठ संबंधों का एक मजबूत स्तंभ है। यह दोनों देशों के बीच गहरे विश्वास का प्रतीक है। फ्रांस ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत पहल में एक महत्वपूर्ण भागीदार है।’ राष्ट्रपति मैक्रों ने मुझे ‘ग्रैंड क्रॉस आफ द लीजन आफ आनर’ से सम्मानित किया। यह भारत के 140 करोड़ लोगों के लिए गर्व और सम्मान की बात है। बास्तील दिवस परेड में इस बार भारत की तीनों सेनाओं के दस्ते और सेना का बैंड ‘सारे जहां से अच्छा’ की धुन बजाकर चल रहा था, जिसने इस सहयोग को एक प्रतीकात्मक महत्व प्रदान किया।
हिंद-प्रशांत रोडमैप
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों के बीच वार्ता के बाद जो संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया है, उसमें 2047 तक दोनों देशों के सहयोग का खाका है। इसमें खासतौर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त-कार्रवाई का खाका है। वक्तव्य में यह भी कहा गया है कि इस क्षेत्र के देशों में टिकाऊ विकास की परियोजनाओं का संचालन करने के लिए भारत-फ्रांस विकास कोष बनाने की बात की जा रही है।
भारत और फ्रांस मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत पनडुब्बी निर्माण की पी-75 कलवरी क्लास परियोजना की सफलता का स्वागत करते हैं। भविष्य में भारतीय पनडुब्बी बेड़े के विकास के लिए और ज्यादा महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर काम करने के लिए दोनों देश तैयार हैं। दोनों देशों के सहयोग में हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र में स्थित फ्रांसीसी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। फ्रांस एकमात्र देश है, जिससे मिलकर भारत इस इलाके में गश्त का काम करता है।
त्रिपक्षीय सहयोग
फरवरी 2023 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ और उससे पहले सितंबर 2020 में आस्ट्रेलिया के साथ हुए संवाद के संदर्भ में त्रिपक्षीय सहयोग का उल्लेख करते हुए संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान विचार वाले पक्षों के साथ सहयोग एक महत्वपूर्ण कार्य होगा। भारत और फ्रांस हिंद-प्रशांत त्रिकोणीय सहयोग कोष भी बनाएंगे। कोष का उद्देश्य जलवायु से जुड़े मसलों और संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर नवाचार और स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देना है।
अंतरिक्ष-अनुसंधान एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है। फ्रांस ने कहा है कि इसके सीएनईएस और भारत के इसरो के बीच वैज्ञानिक और व्यावसायिक सहयोग बढ़ाया जा रहा है। इसमें रीयूजेबल लॉन्च, संयुक्त अर्थ आब्जर्वेशन सैटेलाइट, तृष्णा (थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग सैटेलाइट फॉर हाई रिजॉल्यूशन नेचुरल रिसोर्स असेसमेंट), हिंद महासागर के ऊपर मैरीटाइम सर्विलांस सैटेलाइट्स के कांस्टिलेशन के पहले चरण और अंतरिक्ष में विचरण कर रहे दोनों देशों के उपग्रहों के टकराव के जोखिम को रोकने के काम शामिल हैं।
रिश्तों की पृष्ठभूमि
भारत और फ्रांस के रिश्ते इतने अच्छे क्यों हैं? 1998 के नाभिकीय परीक्षणों को याद करें। भारतीय विदेश-नीति के रूपांतरण में नाभिकीय-विस्फोटों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसके पहले तक भारत की वैश्विक भूमिका, केवल आदर्शों में थी, आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में नहीं। उन विस्फोटों के साथ भारत ने अपनी ‘स्वतंत्र विदेश-नीति’ घोषित की थी। परिणामत: दुनियाभर ने हमारी आलोचना शुरू कर दी। अमेरिका, जापान, कनाडा और ब्रिटेन ने पाबंदियां लगा दीं। रूस जैसे मित्र ने भी हमारी निंदा की।
1998 के विस्फोटों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को पत्र लिखा, ‘हमारी सीमा पर एटमी ताकत से लैस एक देश बैठा है, जो 1962 में हमला कर भी चुका है’। इस देश ने हमारे एक और पड़ोसी को एटमी ताकत बनने में मदद की है।’ वह क्षण अमेरिकी नीति में बदलाव और एक नए वैश्विक दृष्टिकोण का प्रस्थान-बिंदु था।
भारत का महत्व
नब्बे के दशक के आखिर में अमेरिका के विचार-परिवर्तन के दो दशक पहले, 1976 में फ्रांस के तत्कालीन प्रधानमंत्री (और बाद में राष्ट्रपति) याक शिराक ने कहा था कि भारत बहुत महत्वपूर्ण देश है। उसे कमतर आंकना गलत होगा। शिराक ने कुछ समय संस्कृत का अध्ययन भी किया था। मई 1998 के परमाणु विस्फोट के बाद तत्कालीन वैश्विक-शक्तियों में फ्रांस पहला ऐसा देश था, जिसने भारत का समर्थन किया। जनवरी 1998 में राष्ट्रपति शिराक ने भारत को वैश्विक नाभिकीय-व्यवस्था से बाहर रखे जाने को गलत बताया और कहा था कि इसे बदलने की जरूरत है।
इस परिघटना के दस साल बाद अमेरिका ने जब 2008 में ‘परमाणु सौदा’ किया, तब दुनिया ने इस बात को स्वीकारा, पर फ्रांस का दृष्टिकोण पहले से भारत के पक्ष में था। अमेरिका के समांतर फ्रांस का ‘परमाणु सौदा’ भी 2008 में हुआ था। अमेरिकी नीतियों में औपचारिक बदलाव के पहले जसवंत सिंह और स्ट्रोब टैलबॉट के बीच संवाद की लंबी श्रृंखला चली थी। उसी दौरान भारत के सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र और राष्ट्रपति शिराक के विशेष प्रतिनिधि गेरार्ड एरीरा के बीच कई वर्ष लंबा संवाद चला था।
सहयोग
रक्षा सहयोग से लेकर व्यापार संबंधों और जलवायु परिवर्तन तक, भारत और फ्रांस ने कई वैश्विक मुद्दों पर साथ मिलकर काम किया है। दोनों ने इस मैत्री को 21वीं सदी के अनुरूप ढालने में तत्परता दिखाई है। वैश्विक मुद्दों पर एक जैसा दृष्टिकोण इसकी पुष्टि करता है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने का समारोह भी मनाया गया। याक शिराक के समय से शुरू हुई इस साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने पर इस बार की यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों ने आगामी 25 वर्ष में इस साझेदारी की वृहत रूपरेखा जारी की है। वस्तुत: पिछले 25 वर्ष भारतीय विदेश-नीति की दृढ़ता और स्वतंत्र दिशा के नये युग की गाथा सुनाते हैं।
1976 में फ्रांस के प्रधानमंत्री के रूप में और 1998 में राष्ट्रपति के रूप में याक शिराक की भारत-यात्रा ने इस मैत्री की नींव डाली थी। इन दोनों अवसरों पर वे गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे। 1974 में जब भारत ने पहली बार परमाणु परीक्षण किया, तब अमेरिका ने तारापुर संयंत्र के लिए यूरेनियम आपूर्ति रोक दी। उस वक्त फ्रांस ने ईंधन उपलब्ध करवाया। 1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के कारण तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड ने भारत यात्रा स्थगित कर दी। पश्चिम में भारत के प्रति कटुता बढ़ रही थी, इसके बावजूद जनवरी 1976 में शिराक गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बनकर आये।
1998 में जब विश्व के ताकतवर देश परमाणु परीक्षण से नाराज होकर भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे थे, फ्रांस ने पाबंदियों से इनकार ही नहीं किया, बल्कि भारत के साथ रणनीतिक-वार्ता और सामरिक सहयोग स्थापित करने वाला पहला देश बना। शिराक के बाद निकोलस सरकोजी, फ्रांस्वा होलां से लेकर इमैनुएल मैक्रों तक, सभी राष्ट्रपतियों ने भारत के साथ रिश्ते बनाकर रखे हैं। अगस्त 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त किया, तब भी फ्रांस ने सुरक्षा परिषद में भारत का साथ दिया। फ्रांस ने सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी का और भारत को एनएसजी की सदस्यता का भी समर्थन किया है।
यूएई में मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस से वापस आते समय इस बार उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की यात्रा की। इन यात्रा के दौरान सबसे बड़ा समझौता डॉलर की जगह रुपये और दरहम में कारोबार करने का हुआ। इसके अलावा दोनों देशों ने एक-दूसरे के बीच आसानी से पैसों के लेनदेन के लिए रियल टाइम पेमेंट लिंक भी सेट-अप किया। एक दिन की इस यात्रा के दौरान यूएई सेंट्रल बैंक और रिजर्व बैंक आफ इंडिया के बीच समझौता हुआ। इसके अलावा आईआईटी दिल्ली का परिसर अबू धाबी में स्थापित करने के एमओयू पर दस्तखत हुए। यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायेद सितंबर में जी-20 सम्मेलन के लिए भारत आएंगे।
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