देहरादून : उत्तराखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश में बाघों के शिकारी “कव्वा” को एसटीएफ ने धर दबोचा है। “कव्वा ” दरअसल उपनाम है, इसका असली नाम अर्जुन सिंह है जोकि मूलतः देहरादून का रहने वाला है। पिछले दस सालों से वो वन्यजीवों का शिकार कर रहा है।
जानकारी के मुताबिक कव्वा दस साल पहले कबाड़ी का काम करता था और राजा जी टाइगर रिजर्व से वो पैंगोलिन पकड़ कर उसे वन्यजीव तस्करों को बेचा करता था। धीरे-धीरे उसका हौसला बढ़ा और वो अब बाघों का शिकार करने लगा है।
एसटीएफ उत्तराखंड ने चार दिन पहले धारचूला से एक गैंग को गिरफ्तार किया था जिसके पास से ग्यारह फुट लंबे बाघ की खाल और हड्डियां बरामद की गईं थीं, तब ये संभावना व्यक्त की गई थी कि बाघ की हत्या पहाड़ में इसलिए नहीं हो सकती क्योंकि बाघ की हिमालय रेंज में मौजूदगी नहीं के बराबर है, वही हुआ भी एसटीएफ ने बाघ के शिकारी “कव्वा” को काशीपुर के पास पकड़ लिया।
पूछताछ में कव्वा ने बताया कि उसने बाघ का शिकार यूपी के बिजनौर जिले में बड़ापुर रेंज में किया था। उसके द्वारा पहले भी तीन बाघों को मारे जाने की घटना को स्वीकार किया गया। दरअसल, बिजनौर का ये जंगल, उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का बफर जोन कहलाता है, बाघों के शिकारी यहीं से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के भीतर तक चले जाते हैं, ये भी देखने में आया है कि बारिश शुरू होते ही बाघों के शिकारी सक्रिय होते हैं, क्योंकि उस समय पार्क में पर्यटकों के आने-जाने से वन कर्मी भी सक्रिय रहते हैं।
ऐसी भी जानकारी मिली है कि उत्तराखंड के टाइगर रिजर्व और टाइगर लैंड स्केप में भी कव्वा और अन्य शिकारी सक्रिय रहे हैं, किंतु वन विभाग इस खबर को दबाए हुए है, कालागढ़ में जिस बाघिन के शरीर पर फंदा फंसा मिला, वो कॉर्बेट के कालागढ़ के एरिया में था। इस मामले की जांच कहां तक पहुंची है ? कोई बोलने को तैयार नहीं।
कैसे करते हैं बाघों का शिकार ?
बाघों के शिकारी और उनके इनफॉर्मर गांव-गांव में सक्रिय रहते हैं, बाघ ने किसी गरीब ग्रामीण की बछिया या पशु को मारा तो उसकी खबर इनफॉर्मर द्वारा शिकारी को दी जाती है बदले में उसे पांच हजार रुपये तक मेहनताना मिलता है, गरीब ग्रामीण को शिकारी द्वारा तत्काल नए पशु खरीदने के लिए पंद्रह से बीस हजार की रकम दी जाती है। शिकारी द्वारा पशु पर जहर का लेप लगा दिया जाता है क्योंकि टाइगर कभी भी एक साथ इतना भोजन नहीं करता वो शिकार करने के बाद पेट भर कर चला जाता है और फिर अपने शिकार के पास लौटता है। ऐसे में वो जहर लगा मांस भोजन खा लेता है और कुछ ही दूरी पर अपना दम तोड़ देता है।
बाघों के शिकार करने का ये तरीका वन्य जीव तस्कर संसार चंद गिरोह के सदस्य अपनाते थे। जिसे अर्जुन उर्फ कव्वा ने भी अपनाया। ऐसा इसलिए भी प्रतीत हुआ क्योंकि बाघ के शरीर पर कोई गोली के निशान नहीं थे, कुछ पोचर बाघों को फंसाने के लिए जंगल में लोहे के फंदे भी लगाते हैं ये काम बावरिया गिरोह करता है।
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