पूरे देश को समग्र रूप में, एक देश के रूप में और एक परिवार के रूप में देखने की जरूरत है, ताकि किसी भी व्यक्ति की तकलीफ से दूसरा व्यक्ति भी तकलीफ महसूस करे। इसी तरह, गांव और शहर आपस में एक-दूसरे के पूरक हैं, एक दूसरे पर निर्भर हैं। ये अलग-अलग हैं ही नहीं।
सूखा और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू कहे जाते हैं। दोनों समस्याओं का समाधान सही नियोजन, संतुलित बसावट, शासकीय बजट का समुचित उपयोग और देश में उपलब्ध प्रतिभा के उचित सम्मान, इन्हीं सब में निहित है।
पूरे देश को समग्र रूप में, एक देश के रूप में और एक परिवार के रूप में देखने की जरूरत है, ताकि किसी भी व्यक्ति की तकलीफ से दूसरा व्यक्ति भी तकलीफ महसूस करे। इसी तरह, गांव और शहर आपस में एक-दूसरे के पूरक हैं, एक दूसरे पर निर्भर हैं। ये अलग-अलग हैं ही नहीं।
दोनों एक दूसरे का पूरा-पूरा सम्मान करें, एक-दूसरे का ध्यान रखें। कभी-कभी यह भी लगता है कि समस्या नहीं रहेगी तो जिंदगी ही नीरस हो जाएगी। कमाएंगे कैसे, आरोप कैसे लगाएंगे आदि। इस सोच ही ने उस स्थिति को जन्म दिया, जहां अविष्कार, जो आवश्यकता की जननी कहे जाते हैं, वह प्रबंधन जो सर्वश्रेष्ठ कहलाता है, लगभग शून्य होते जा रहे हैं।
अविष्कार, प्रबंधन जो बहुत ही सरल, बहुत आसानी से संभव हैं और वे भी जो बहुत मेहनत से, बहुत आउट आफ बॉक्स सोच से, अनुपम सहभागिता से हो सकते हैं, असंभव नहीं।
– संजय गुप्ता
निदेशक, भारतीय जल शिक्षण एवं शोध संस्थान, हरियाणा
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