श्रीलंका भौगोलिक दृष्टि से भारत का पड़ोसी देश ही नहीं है, हमारे उस देश से अति प्राचीन, ऐतिहासिक, रणनीतिक, सामरिक संबंध रहे हैं। यही वजह है कि जब भी श्रीलंका को जरूरत महसूस हुई या भारत की सलाह की आवश्यकता पड़ी तब भारत ने बिना संकोच उसकी मदद की है। विशेषकर 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार की पहले पड़ोस की नीति की वजह से सभी पड़ोसी देशों ने भारत की ओर आशा भरी दुष्टि से देखना शुरू किया है। इसलिए कल समाप्त हुए श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के आधिकारिक भारत दौरे में दौरान प्रधानमंत्री मोदी के इस वक्तव्य से पड़ोसी देश के नागरिकों को बहुत उम्मीद बंधी है कि, भारत संकट की इस घड़ी में श्रीलंका की मदद करता रहेगा।
भारत का छूते सागर के उस पार बहुत दूर नहीं है आज हर तरह के संकट में फंसा सिंहली, तमिल आबादी वाला देश श्रीलंका। आज वह अपने भीषणतम आर्थिक संकट से उबरने की भरसक कोशिश कर रहा है। अर्थव्यवस्था को वापस अपने पैरों पर खड़ा करने की मुश्किलों से लड़ रहा है। और पहले की तरह, या कहें उससे भी एक कदम आगे जाते हुए, भारत ने पड़ोसी धर्म का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करने की कोशिश की है।
नई दिल्ली में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच हुई बैठक में मोदी ने फिर भरोसा दिया कि भारत श्रीलंका को संकट में अकेला नहीं छोड़ेगा। इसमें द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग को एक नए स्तर पर ले जाने की बात हुई। मोदी श्रीलंका को कितना महत्व देते हैं यह इस बात से और स्पष्ट होता है कि उन्होंने खुद साझा बयान में बैठक के बिन्दुओं की जानकारी दी है। इस आर्थिक साझेदारी के लिए एक पथप्रदर्शक दस्तावेज बनाया गया है। इसमें पर्यटन, ऊर्जा, वाणिज्य, उच्च शिक्षा तथा स्किल डेवलेपमेंट जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग की बात है तो सागरीय, वायु, एनर्जी तथा नागरिकों के बीच आपसी व्यवहार को और ठोस करने का प्रण भी है।
प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार, यह दस्तावेज एक दीर्घ कालिक कमिटमेंट है। भारत श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबारने में मदद के लिए वहां और ज्यादा निवेश करके, इस दुष्टि से आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी। दोनों देश आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर जल्दी ही चर्चा करने वाले हैं। दोनों पक्षों को भरोसा है कि श्रीलंका में यूएीआई शुरू करने करार से फिनटेक जुड़ाव भी बढ़ेगा।
नई दिल्ली में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच हुई बैठक में मोदी ने फिर भरोसा दिया कि भारत श्रीलंका को संकट में अकेला नहीं छोड़ेगा। आर्थिक साझेदारी के लिए एक पथप्रदर्शक दस्तावेज बनाया गया है। इसमें पर्यटन, ऊर्जा, वाणिज्य, उच्च शिक्षा तथा स्किल डेवलेपमेंट जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग की बात है तो सागरीय,
वायु, एनर्जी तथा नागरिकों के बीच आपसी व्यवहार को और ठोस करने का प्रण है।
भारत और श्रीलंका के बीच हवा मार्ग से भी कनेक्टिविटी बढ़ाई जाएगी। इतना ही नहीं, तमिलनाडु में नागपट्टनम तथा श्रीलंका के कांके-संतुरई के बीच रेल सेवा से जुड़ाव और बेहतर करने पर भी सहमति बनी है। इससे व्यापार तो बढ़ेगा ही, लोगों का आना—जाना भी बढ़ने से आपसी समझ बढ़ेगी। श्रीलंका में बहुत बड़ी संख्या में तमिल आबादी भी निवास करती है। चेन्नई-जाफना के बीच सीधी उड़ान दोबारा शुरू करने से भी संपर्क बढ़ाने पर बात हो गई है।
दोनों देशों के बीच बिजली ग्रिड होने और पेट्रोलियम की पाइपलाइन बिछाने पर भी सहमति बनना लगभग तय है, बस पहले इस दुष्टि से एक अध्ययन किया जाएगा। जमीनी सेतु भी बनाने को लेकर चर्चा होना जुड़ाव को और बल देगा।
मोदी के वक्तव्य से एक बात बहुत सपष्ट होकर सामने आई है कि हमारी पड़ोसी पहले की विदेश नीति को गंभीरता से आत्मसात किया गया है। इतना ही नहीं, ‘सागर’ दृष्टिकोण भी भारत की विदेश नीति का बहुत खास आयाम है। प्रधानमंत्री मोदी की नजर में श्रीलंका इन दोनों नजरियों के लिहाज से महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है।
सुरक्षा की दृष्टि से हिन्द महासागर और हिन्दू—प्रशांत वाला पहलू अपना महत्व रखता है। इस वजह से नि:संदेह भारत तथा श्रीलंका के सुरक्षा हित साझे हैं। मोदी इस चीज को बखूबी पहचानते हैं इसलिए उनका ये कहना कि दोनों देश आपसी संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए मिलकर काम करें, बहुत मायने रखता है।
भारत-श्रीलंका के बीच मछुआरों को लेकर लंबे समय से परेशानियां खड़ी होती रही हैं। इनको दूर करने की कोशिशें तो बहुत हुई हैं लेकिन कुछ ठोस हल नहीं निकल पाया है। हिन्द महासागर में जाने वाले भारतीय मछुआरों के भटककर श्रीलंका की सीमा में जा पहुंचना आम देखने में आता है। वहां वे हिरासत में ले लिए जाते हैं और उनकी नावें जब्त कर ली जाती हैं। इसके बाद उनके छूटने में कई दिक्कतें आड़े आती हैं। द्विपक्षीय चर्चा में यह मुद्दा भी उभरा और इस दिक्कत को दूर करने के ठोस प्रयासों को लेकर दोंनों नेता तैयार हुए हैं।
पड़ोसी देश श्रीलंका में तमिलों की स्वायत्तता की मांग भी उस देश में आज की नहीं है। वहां अल्पसंख्यक का दर्जा पाए तमिल इस मुद्दे पर बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का आक्रोश सहते आ रहे हैं। वहां की कुल आबादी में 11 प्रतिशत तमिलों को प्रांत की परिषदों में और ज्यादा अधिकार देने की बात पर भारत सरकार भी सहमत है। वहां के संविधान का 13वां संशोधन इसकी वकालत भी करता है, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद यह बात धरातल पर लागू नहीं हो पाई है। विक्रमसिंघे इस मुद्दे को सुलझाने के प्रति गंभीर तो रहे हैं, लेकिन बौद्धों के प्रतिनिधियों के भारी विरोध के चलते यह विषय लटका ही रहा है। मोदी ने एक बार फिर विक्रमसिंघे से तमिल समुदाय की उम्मीदों को पूरा करने के लिए काम करने का अनुरोध किया है।
इसमें संदेह नहीं है कि हिन्द—प्रशांत को लेकर चीन की आक्रामकता को देखते हुए भारत की दृष्टि से श्रीलंका को चीन के चंगुल में जाने से बचाना बहुत आवश्यक है। भारत के हित इसी में हैं कि श्रीलंका का एक स्थिर, सुरक्षित तथा विकसित देश बना रहे। हालांकि चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत श्रीलंका को अपने कर्जे के बोझ तले दबाने पर आमादा है।
इसमें शक नहीं है भारत के व्यवहार ने श्रीलंका में अपने लिए एक भरोसे का वातावरण बनाया है। श्रीलंका के राष्ट्रपति विक्रमसिंघे इस बात को मानते हैं और इसीलिए उन्होंने भारत की मदद के लिए प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की और धन्यवाद किया। विक्रमसिंघे यह भी जानते हैं कि व्यापार, पर्यटन आदि हर पहलू से भारत श्रीलंका के पड़ोस में सबसे उपयुक्त साथी है।
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