हिन्दू समाज राजस्थान सरकार और प्रशासन से वर्षों से मंदिर के पट खोलने और पूजा-अर्चना करने देने की मांग करता आ रहा है। मंदिर खुलवाने के लिए कई आंदोलन हुए। सरकार और प्रशासन को ज्ञापन भी सौंपे गये, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
देश में हिन्दू धर्म स्थलों पर मुस्लिमों का कब्जा कोई नई बात नहीं है। प्राचीन धर्म स्थलों पर कब्जे के कई मामले देश के विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। ऐसा ही एक विवाद भीलवाड़ा जिले के मांडल में चल रहा है, जहां बीते 45 साल से प्राचीन देवनारायण मंदिर में हिन्दू पूजा नहीं कर पा रहे हैं। मुस्लिम समुदाय यहां पर ‘मीठू शाह फकीर’ का स्थान होने का दावा करता है।
हालांकि न्यायालय में उसका दावा खारिज हो चुका है, बावजूद इसके प्रशासन हिन्दू समाज को मंदिर में पूजा- अर्चना की अनुमति नहीं दे रहा। हिन्दू समाज राजस्थान सरकार और प्रशासन से वर्षों से मंदिर के पट खोलने और पूजा-अर्चना करने देने की मांग करता आ रहा है। मंदिर खुलवाने के लिए कई आंदोलन हुए। सरकार और प्रशासन को ज्ञापन भी सौंपे गये, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
देवनारायण संघर्ष समिति के संयोजक उदयलाल भड़ाना कहते हैं, 2010 में मांडल न्यायालय और 2014 में भीलवाड़ा सत्र न्यायालय ने विवादित स्थान पर मुस्लिम समाज का अधिकार नहीं माना, इसके बावजूद हमें पूजा-अर्चना करने से रोका जा रहा है। हालात ये हैं कि यदि कोई व्यक्ति गलती से भी मंदिर देखने चला जाए तो पुलिस उसे जेल में डाल देती है जबकि दूसरा पक्ष बेरोकटोक वहां जा रहा है।
विदेशी शासकों से बचाया था देश
वर्ष 911 में जन्मे देवनारायण को भगवान विष्णु का अवतार कहा जाता है। वे राज्य के शासक और एक महान योद्धा हुआ करते थे। देवनारायण ने दसवीं शताब्दी में अजमेर में शासन किया था और देश में अरब घुसपैठ का प्रतिरोध किया था। पूरा समाज भगवान देवनारायण की पूजा करता है, क्योंकि उन्होंने अपने पराक्रम से अत्याचारी विदेशी शासकों से लड़ाइयां लड़ी थीं और उन्हें पराजित किया था। देवनारायण गोवंश के रक्षक थे, वह हर दिन उठने के बाद गो दर्शन करते थे। उनके पास 98 हजार गोवंश थे।
21 साल पहले आसींद में भी हो चुका बवाल
भीलवाड़ा के आसींद में हिन्दू समाज का आस्था का एक बड़ा केंद्र है। यहां इसे आराध्य भगवान आसींद सवाई भोज मंदिर के नाम से जाना जाता है। बताते हैं, इसी मंदिर परिसर में 2001 से पहले एक ‘मस्जिद’ थी। इस ‘कलिंद्री मस्जिद’ नामक ढांचे को जून 2001 में ध्वस्त कर दिया गया। यह मामला न्यायालय तक भी पहुंचा लेकिन 15 साल बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 16 आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया। न्यायालय ने अपने फैसले में सभी 16 लोगों को दोषी नहीं माना। 21 साल पहले साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाली इस घटना के बाद तनाव बढ़ता चला गया।
ताला टूटने पर सुर्खियों में आया मंदिर
देवनारायण मंदिर 11 मार्च, 2022 को तब सुर्खियों में आया, जब गोपाल सिंह गुर्जर नाम के एक युवक ने मंदिर का ताला तोड़ प्रशासन को खुली चुनौती दी। इस दौरान उस युवक ने एक वीडियो भी बनाया था, जिसमें वह ताला तोड़कर मंदिर पर ध्वज फहराते दिखा। वीडियो वायरल होने के बाद मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई तो पुलिस ने गोपाल सिंह पर मजहबी भावनाएं भड़काने का मामला दर्ज कर, उसे गिरफ्तार कर लिया था।
क्यों बंद है देवनारायण मंदिर
उदयलाल भड़ाना बताते हैं, ‘मांडल में पहले गुर्जर समाज के लोग बहुतायत में रहते थे और पशुपालन का परंपरागत व्यवसाय करते थे। जब कस्बा बड़ा हुआ तो पशुओं को चराने के लिए जगह कम पड़ने लगी। ऐसे में गुर्जर समाज के लोगों ने आसपास खेतों में ही मकान बना लिए और अपने गांव बसा लिये। इस प्रकार कस्बे में गुर्जर बहुत कम हो गये। मंदिर में महाजन समाज के लोग पूजा- अर्चना करने लगे। करीब 45 साल पहले मुस्लिम समाज के लोगों ने चबूतरे पर ताजिया बनाने की अनुमति मांगी, हिन्दू समाज ने उन्हें सहर्ष स्वीकृति दे दी। इसके बाद उन्होंने चबूतरे पर कब्जा कर मस्जिद बना ली।
कुछ विवाद हुआ तो उन्होंने रातोंरात मंदिर की मूर्तियां खंडित कर दीं और एक पत्थर लाकर रख दिया और कहने लगे यह हमारे ‘मीठू शाह फकीर का तकिया’ था और यह उनकी ‘दरगाह’ है। भड़ाना आगे बताते हैं कि 1977 में देवनारायण मंदिर की जमीन का मामला न्यायालय पहुंचा। तब न्यायालय ने मंदिर के दरवाजे पर ताला जड़ने के बाद चाबी थाने में जमा करा दी थी। लेकिन अब न्यायालय के फैसले से तय हो गया है कि यह स्थान मुस्लिमों का नहीं है तो स्वत: सिद्ध हो जाता है, यह स्थान हिन्दुओं का है। पक्षकार अपील में भी नहीं गये हैं। भगवान देवनारायण की 1111वीं जयंती पर पहली बार भजन संध्या कराई गई थी, वह मंदिर से आधा किलोमीटर दूर हुई थी।
1557 में बना था मंदिर
भगवान देवनारायण राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं। इनका जन्म भीलवाड़ा जिले की आसींद तहसील के मालासेरी में हुआ था। भीलवाड़ा के मांडल ग्राम में भगवान देव नारायण का प्राचीन मंदिर है। इसका निर्माण गुर्जर समाज के पंचों खेताजी-नेताजी ने 1555 में शुरू कराया था, 1557 तक यह मंदिर बनकर तैयार हुआ। 1561 में बड़वा (जागा) की पोथी में यह दर्ज है। देवनारायण के पूर्वज मांडूराव ने सन् 785 में मांडल गांव को बसाया था। भगवान देवनारायण के वंश का इतिहास तभी से है। मुस्लिम समाज का इनसे कोई संबंध नहीं है।
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