पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में हिंसा तांडव सबने देखा। कोलकाता हाईकोर्ट ने यह साफ कर दिया कि चुनाव का परिणाम उसके फैसले पर निर्भर करेगा। संकेत साफ है हाईकोर्ट चुनाव रद्द कर नए सिरे से कराने का आदेश दे सकता है। लेकिन कुटिल बुद्धि से लैस बुद्धिजीवी नया नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश में जुट गए हैं। पंचायत चुनाव परिणामों को 2024 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की भारी जीत के संकेत के रूप में पेश किया जा रहा है।
सामान्यतौर पर पंचायत चुनाव परिणामों की तुलना पहले के पंचायत चुनाव परिणाम से होना चाहिए और उसके आधार पर किसी दल की हार या जीत या फिर बढ़त का आंकलन किया जाना चाहिए, लेकिन पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव परिणाम के विश्लेषण में इसे ताक पर रख दिया गया है। देश के बड़े अखबारों में खबर, लेख और टीवी चैनलों पर बहस के माध्यम से यह समझाने की कोशिश हो रही है कि तृणमूल कांग्रेस को उन क्षेत्रों में भारी जीत मिली है, जहां-जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत मिली थी। भाजपा 40.6 फीसद वोट के साथ 18 सीटें जीतने में सफल रही थी। जबकि तृणमूल कांग्रेस 43.7 फीसद वोट के साथ 22 सीटें जीत पाई थी। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस अकेले 34 सीटें जीतने में सफल रही थी, उसे 39.8 फीसद वोट मिले थे। 2023 के पंचायत चुनाव परिणाम के सहारे यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि तृणमूल कांग्रेस 2024 में 34 या उससे भी अधिक सीटें जीत सकता हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में कौन कितनी सीटें जीतेगा इसे जानने के लिए अलग ओपिनियन पोल या सर्वे किये जा सकते हैं। लेकिन 2023 के पंचायत चुनाव के परिणाम के आधार पर इसकी भविष्यवाणी करना कुटिल बुद्धि के मायाजाल के अलावा कुछ नहीं है। जब 2018 के पंचायत चुनाव परिणाम 2019 के लोकसभा परिणाम का संकेत नहीं दे सका, तो 2023 का पंचायत चुनाव परिणाम 2024 के लोकसभा चनाव परिणाम का संकेत कैसे दे सकता है। 2018 के पंचायत चुनाव के दौरान दहशत का आलम यह था कि लगभग 35 फीसद सीटों पर विपक्ष का कोई उम्मीदवार पर्चा तक नहीं भर सका और तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी निर्विरोध जीत गए।
2019 के लोकसभा चुनाव में जिन-जिन इलाकों में भाजपा को जीत मिली थी, उन सबमें तृणमूल कांग्रेस के परचम लहरा रहा था। 2023 में तृणमूल कांग्रेस को ग्रामीण इलाकों में विपक्ष के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और उसके 10 फीसद से कम उम्मीदवार निर्विरोध जीत पाए। वैसे कुटिल बुद्धि कम प्रत्याशियों के निर्विरोध जीतने को भी तृणमूल कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा बताने में जुटा है। कहा जा रहा है कि अपनी लोक्रप्रियता का आंकलन करने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में भी विपक्षी उम्मीदवारों को खड़ा होने दिया। लेकिन पर्चा भरे जाने से पहले और उसके बाद हिंसक घटनाएं इस कुतर्क की पोल खोल रही हैं।
सामान्य बुद्धि से 2018 और 2023 के पंचायत चुनावों की तुलना करें तो साफतौर पर ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर और विपक्ष की मजबूत दिख रही है। भाजपा को 2018 में महज 13 फीसद वोट मिले थे, जो 2023 में 23 फीसद हो गये। वोट शेयर में 10 फीसद की एकमुश्त बढ़ोतरी ग्रामीण इलाकों में भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है। ग्रामीण इलाकों में भाजपा के बढ़े वोटबैंक में इजाफे का असर उसके सीटों पर दिख रहा है। भाजपा 2018 में ग्राम पंचायतों में 5779 सीटें जीती थी, जिनकी संख्या इस बार 10 हजार से अधिक हो गई है, जो 73 फीसद अधिक है। इसी तरह भाजपा 2018 के 22 जिला परिषदों की तुलना में 40 फीसद बढ़ोतरी के साथ 31 जिला परिषद में बहुमत हासिल करने में सफल रही है। 2018 में भाजपा का कब्जा 769 पंचायत समितियों पर भाजपा का कब्जा था, जो 32 बढ़कर 1018 पंचायत समितियां हो गई हैं। जाहिर है 2018 की तुलना में 2023 के पंचायत चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन में जबदस्त इजाफा हुआ है। जमीनी हकीकत को नजरअंदाज कर मनमाना निष्कर्ष निकालने की चतुराई तात्कालीक रूप से राजनीतिक आकाओं को भले खुश कर दे, लेकिन एक दिन असली परिणाम भ्रमजाल को ध्वस्त जरूर कर देता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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