सन् 1950 के दशक में स्वतंत्र देश तिब्बत पर जबरन कब्जा जमाने वाले कम्युनिस्ट देश चीन ने समय के साथ तिब्बत के धर्म, संस्कृति, मूल्य आदि को कुचलने के भरसक प्रयास किए हैं। बीते 74 साल में तिब्बत के लोगों पर ऐसा दमन किया है कि वे वहां से पुरखों की जमीन छोड़कर पलायन करते रहे हैं। दलाई लामा ने भारत में शरण ली तो शेष तिब्बती जो निकल सकते थे, निकलकर आज दुनिया के अन्य देशों में अपने धर्म और संस्कारों को संजोए हुए हैं। लेकिन सबके मन में एक आस रही है कि अपनी धरती फिर लौटें।
तिब्बती धर्म—संस्कृति पर अपने दमन चक्र के अंतर्गत चीन ने बौद्धों की नई पीढ़ी को शुरू से ही उनके संस्कारों से अलग करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, तिब्बत में हान चीनियों को बसाना शुरू कर दिया जिससे तिब्बती की अपनी आनुवांशिक विशेषता ही खत्म हो जाए।
चीन की कम्युनिस्ट नीतिकार मानते हैं कि तिब्बती समाज को काबू में करने के लिए उसकी नई पीढ़ी को अपने शिकंजे में लेना जरूरी है और शुरू से ही उसमें हान संस्कृति के बीज रोपना जरूरी है। जिस स्कूल में उन बच्चों को भर्ती कराया जा रहा है उसमें भी कथित तौर पर ऐसी ही शिक्षा दी जानी है जो उन्हें उनकी मूल संस्कृति से विमुख कर देगी।
अब ताजा समाचार यह है कि तिब्बत में चीन ने नई पीढ़ी पर अपना शिकंजा और कसना शुरू किया है। ल्हासा और आसपास के तिब्बती नगरों में रह रहे मूल तिब्बती परिवारों से चार से छह साल के बच्चों को उनके परिवारों से दूर करके छात्रावासों में रखा जा रहा है। वजह साफ है, उन्हें ऐसे स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है, जहां उनके अंदर का बचा—खुचा तिब्बतपन ही कुचल दिया जाएगा। तिब्बत की भाषा, संस्कृति, संस्कार, धर्म आदि का लेशमात्र भी उनमें न रहने पाए, इसकी शासकीय व्यवस्था की गई है। उधर वे परिवार बेहाल है कि उनके बच्चों को उनकी इच्छा के विरुद्ध जबरन घर से, मां—बाप से अलग किया जा रहा है; उन्हें चीनी संस्कारों में ढाला जा रहा है, जिसे वे बच्चे घुट्टी में ही अपने ‘शत्रु’ की तरह देखते आए थे। तिब्बत के अहिंसा प्रेमी नागरिक आगे हिंसक चीनी मनोवृत्ति नहीं दर्शाएंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
इस विषय पर इटली की ‘बिटर विंटर’ पत्रिका ने अपने यहां प्रकाशित किया है। चीन की कम्युनिस्ट नीतिकार मानते हैं कि तिब्बती समाज को काबू में करने के लिए उसकी नई पीढ़ी को अपने शिकंजे में लेना जरूरी है और शुरू से ही उसमें हान संस्कृति के बीज रोपना जरूरी है। जिस स्कूल में उन बच्चों को भर्ती कराया जा रहा है उसमें भी कथित तौर पर ऐसी ही शिक्षा दी जानी है जो उन्हें उनकी मूल संस्कृति से विमुख कर देगी। दरअसल चीनी सत्ता ने 2016 से यह नीति आरम्भ की हुई है कि 4—4 साल के बच्चों को उनके परिवार से अलग करके ‘रेसीडेंशियल स्कूलों’ में डाला जाता है।
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