चीन के बैंक अचानक लड़खड़ाते नजर आ रहे हैं। कम्युनिस्ट शासन की नीतियां औंधे मुंह जा रही हैं। चीनी अर्थजगत विदेशी मीडिया में भले अपना चेहरा कितना चमका दिखाता हो लेकिन असलियत जो सामने आई है वह उससे उलट है।
चीन के कई बैंक आज बैंकिंग के क्षेत्र में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, इंडस्ट्रियल एंड कॉर्शियल बैंक ऑफ चाइना के शेयर तेजी से गिरे हैं। चीन के कृषि बैंक की भी हालत पतली है। उसके शेयर के दाम भी काफी नीचे आए हैं। बैंक ऑफ चाइना भी खस्ताहाल है। उसकी साख पर बट्टा लगता दिख रहा है। किसी बैंक के शेयर 12 प्रतिशत गिरे हैं तो किसी के 14 प्रतिशत से ज्यादा नीचे आए हैं।
चीन के बैंकों की इस हालत के पीछे वजह बताई जा रही है कि चीन सरकार की नीतियों में दोष है। कम्युनिस्ट शासन अपने यहां के बड़े—बड़े बैंकों पर इस बात के लिए जोर डालता आ रहा था कि बैंक अपने लाभ को कम करें, उसमें व्यापक कटौती करें। बैंकों पर जोर डाला जा रहा था कि स्थानीय सरकारों को और ज्यादा ऋण दें। बैंकों को यह आदेश मानना पड़ा और इस तरह अपना नुकसान करना पड़ा। उनका मुनाफा ही कम नहीं हुआ, बल्कि बाजार में उनके शेयरों की हालत भी पतली हो गई।
कह सकते हैं कि चीन आज बैंकिंग क्षेत्र में भारी दिक्कत से जूझने की तरफ बढ़ रहा है। मुख्य कारण, चीन की संकट खड़ा होने का अंदेशा गहरा गया है। चीन की स्थानीय सरकारों की आर्थिक स्थिति का डावांडोल होना है।
अर्थ विश्लेषक बताते हैं कि चीन की सरकार अगर अपनी नीतियों पर गौर नहीं करेगी तो गिरावट थमनी मुश्किल होगी। अगर उन पर स्थानीय सरकारों को ऐसी शर्तों पर कर्ज देने की बाध्यता बनाए रखी जाएगी तो बड़े बैंक चरमरा जाएंगे। ज्यादा कर्ज देने का जोर डालना बैंकों के कर्जा खाते को दबाए जा रहा है।
यह खबर इसलिए भी तथ्याधारित लगती है क्योंकि अमेरिका के अर्थजगत पर नजर रखने वाले मीडिया ब्लूमबर्ग ने इस संबंध में विस्तृत खंगाल करके रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, चीन के तमाम सरकारी बैंकों के लिए स्थानीय सरकारों को ज्यादा दिनों तक पहले से ज्यादा कर्जा देने की बाध्यता को मानना पड़ रहा है। ऋण के लिए जहां चलन दस साल में पूरा किए जाने का है, वहीं अब ये समयसीमा बढ़ाने से दिक्कत खड़ी हो रही है। कर्ज चुकाने की अवधि अब पच्चीस साल करनी पड़ी है। यानी स्थानीय सरकारों को सरकारी बैंकों से पहले से ज्यादा कर्जा मिला है, चुकाने की पहले से ज्यादा अवधि यानी 25 साल के लिए। इसमें भी शुरू के चार साल उस कर्जे पर ब्याज नहीं लगाया जाएगा।
4 जुलाई को अर्थ क्षेत्र पर नजर रखने वाले ब्लूमबर्ग मीडिया की उक्त रिपोर्ट क्या आई बाजार में चीन के बैंकों की हालत पतली हो गई। पता चला है कि चीन के इंडस्ट्रियल एंड कॉर्शियल बैंक ऑफ चाइना के शेयर 15.1 प्रतिशत गिर चुके हैं तो एग्रीकल्चरल बैंक ऑफ चाइना के शेयर 15.6 प्रतिशत कम दामों पर आ टंगे हैं। बैंक ऑफ चाइना का भी हाल खराब है। इसके शेयर के दाम भी 12.7 प्रतिशत गिरे हैं तो चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक के शेयर 14 प्रतिशत कम दाम पर आ खड़े हुए हैं।
अर्थ विश्लेषक बताते हैं कि चीन की सरकार अगर अपनी नीतियों पर गौर नहीं करेगी तो गिरावट थमनी मुश्किल होगी। अगर उन पर स्थानीय सरकारों को ऐसी शर्तों पर कर्ज देने की बाध्यता बनाए रखी जाएगी तो बड़े बैंक चरमरा जाएंगे। ज्यादा कर्ज देने का जोर डालना बैंकों के कर्जा खाते को दबाए जा रहा है। कर्जे के चीन के सरकार के दबाव की वजह से ही पीपल्स बैंक ऑफ चाइना की तरफ से ही स्थानीय सरकारों को 3.05 खरब युआन के नये कर्जे बांटे गए हैं।
लेकिन खबर यह मिल रही है कि यह कर्जा नीति और बढ़ेगी। समाचार वेबसाइट शंघाई सिक्युरिटीज के अनुसार, लगता ये है कि केन्द्र की सरकार इसी नीति पर चलना जारी रखने वाली है, क्योंकि सरकार की तरफ से इस नीति को सस्टेनेबल एंड हेल्दी डेवलेपमेंट का नाम दिया है। इसलिए यह नीति हाल फिलहाल में बंद होनी नहीं दिखती।
चीन के बैंकों के बारे में एक और चिंताजनक रिपोर्ट बताती है कि चीन के पांच कर्ज देने वालों की रेटिंग नीचे आ गई है। चाइना मर्चेंट्स बैंक का कहना है कि उक्त रिपोर्ट से कुछ निवेशकों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं।
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