भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने पूजा-पाठ के साथ झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार संभाला। इसके बाद से राज्य में वे तत्व बहुत ही परेशान हैं, जो एक षड्यंत्र के तहत ये कहते रहे हैं कि जनजाति हिन्दू नही हैं। लोगों का मानना है कि बाबूलाल मरांडी ने ऐसे ही तत्वों को जवाब देने के लिए पदभार ग्रहण करने से पहले वैदिक विधि से पूजा की। पूजा में बैठने से पूर्व निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने बाबूलाल मरांडी को भगवा पगड़ी पहनाई। इसी पगड़ी के साथ बाबूलाल मरांडी ने पूजा की प्रक्रिया पूरी की।
अभी पूजा शुरू ही हुई थी कि सोशल मीडिया में पूजा करते बाबूलाल मरांडी का चित्र वायरल होने लगा। इसकी प्रतिक्रिया भी देखने को मिली। इस फोटो को देखकर भाजपा के कार्यकर्ताओं और उसके समर्थकों में जबरदस्त जोश भर गया, वहीं दूसरी ओर हिन्दू विरोधी तत्व बड़े निराश हुए। इसकी झलक सोशल मीडिया में भी देखने को मिली। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता और विधायक भी बेचैन दिखाई दिए।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक सरफराज अहमद ने कहा कि बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से भाजपा को कुछ भी फायदा नहीं होगा। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के अंदर खेमेबाजी जबरदस्त रूप से है और बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद यह पार्टी चार भागों में बंट जाएगी। इसके साथ ही कई अफवाहें फैलाई गईं। लेकिन इन सब पर तब विराम लग गया जब पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के साथ बाबूलाल मरांडी की तस्वीरें समाज के बीच आईं। असलियत में यही एकता विरोधी खेमे के अंदर बेचैनी बढ़ाने का काम कर रही है।
इसके साथ ही यह भी बता दें कि झारखंड में वर्षों से कुछ तत्व यह दुष्प्रचारित करते रहे हैं कि जनजाति समाज के लोग हिन्दू नहीं हैं। इस बात को वे लोग ज्यादा प्रचारित करते हैं जो हिन्दू से ईसाई बने हैं। इसीलिए कहा जाता है इस दुष्प्रचार के पीछे चर्च का हाथ है।
यहां उल्लेखनीय बात यह है कि झारखंड में चर्च के लोग वर्षों से कंवर्जन का काम कर रहे हैं। कभी ये लोग लोभ-लालच से लोगों को ईसाई बनाते हैं तो कभी डरा धमका कर। यही लोग जनजाति समाज के लोगों को यह कह कर भड़काते हैं कि सरना और सनातन अलग अलग हैं।
जबकि जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉक्टर राजकिशोर हांसदा ऐसा नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि सरना और सनातन एक हैं। सनातन समाज के लोग सूर्य की पूजा करते हैं, नदी और पहाड़ की पूजा करते हैं, जनजाति समाज भी तो यही करता है। वह नदी को पूजता है, पहाड़ को पूजता है, सूर्य को जल अर्पित करता है। यहां तक कि पहाड़ों पर बसे मारंगबुरु की पूजा भी शिव के स्वरूप में ही की जाती है। तो फिर सरना और सनातन अलग अलग कैसे हुए?
जनजाति मामलों के एक और विद्वान डॉ सुखी उरांव ने भी पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम में कहा था कि झारखंड सहित कई जगहों पर समाज में कुछ स्वार्थी तत्व सरना को लेकर मतभेद पैदा करने की कोशिश कर हिन्दू समाज को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
वास्तव में बाबूलाल मरांडी ने इस पूजा के माध्यम से संकेत दे दिया है कि जो लोग जनजाति समाज के लोगों को गैर हिन्दू बताते हैं, वे लोग इस मत पर पुनर्विचार करें। नही तो आने वाले समय में उन्हें वही लोग अपने तरीके से जवाब देंगे, जिन्हें दुष्प्रचार के भ्रमजाल में रखा गया है।
हालांकि अब बाबूलाल मरांडी प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बन चुके हैं । उनके सामने अब दो तरह की चुनौतियां हैं। पहली चुनौती राजनीतिक है और दूसरी चुनौती वे तत्व हैं जो समाज को भ्रमजाल में फंसा कर हिंदुओ में भेद पैदा कर रहे हैं। अब देखना यह है कि बाबूलाल मरांडी इन दोनों चुनौतियों से लड़ने के लिए कौन सी रणनीति अपनाते हैं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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