चर्च भारत में सिर्फ ‘आत्माओं की खेती’ नहीं करता, चंदे की भी खेती करता है, भारत विरोधी इको सिस्टम के लिए उठाईगीरी का काम भी करता है, भारत से ‘सस्ते कुली’ खरीदता है, नशे से लेकर हथियारों और मानव तस्करी तक के अपराधों को ढाल प्रदान करता है, भारत के विकास में अड़ंगा लगाने की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के षड्यंत्रों में टहलुआ चाकरी का काम भी करता है।
अगर कोई ईसाई संगठन भारत में कथित ‘उत्पीड़न’ के बारे में दुनिया में विरोध करता नजर आता है, तो उसमें आश्चर्य की बात कुछ नहीं होती है। भारत में यह बात लगभग हर व्यक्ति समझता है कि अगर ये ईसाई संगठन कथित ‘उत्पीड़न’ का विलाप नहीं करेंगे, भारत में अपनी कथित ‘चुनौतियों’ और कथित ‘सफलताओं’ का बखान नहीं करेंगे, तो उन्हें पश्चिमी विश्व से मिलने वाला ‘चंदा’ खतरे में पड़ जाएगा। यह दोनों कहानियां उनके लिए दाल-रोटी का सवाल हैं।
यह बहुत बड़े तंत्र का सिर्फ चेहरा होता है। अजगर की दुम कहां है, बड़ा अजगर स्वयं भी तब तक नहीं जानता, जब तक उस पर भारी भरकम पैर न रख दिया जाए। अमेरिका कथित मानवाधिकारों का अनुवाद चर्च अधिकारों में करता है, चर्च अपने अधिकारों का अनुवाद कन्वर्जन के अधिकारों में करता है और फिर कातर भाव से चंदा जुटाता है। कन्वर्जन के ‘समारोह’ आयोजित किए जाते हैं। इसमें चंदा जुटता है। पैसे की अगली खेप के लिए फिर अगला कन्वर्जन करवाना पड़ता है। यह पॉन्जी स्कीम इस तरह जारी रहती है। चर्च भारत में सिर्फ ‘आत्माओं की खेती’ नहीं करता, चंदे की भी खेती करता है, भारत विरोधी इको सिस्टम के लिए उठाईगीरी का काम भी करता है, भारत से ‘सस्ते कुली’ खरीदता है, नशे से लेकर हथियारों और मानव तस्करी तक के अपराधों को ढाल प्रदान करता है, भारत के विकास में अड़ंगा लगाने की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के षड्यंत्रों में टहलुआ चाकरी का काम भी करता है।
एक सप्ताह में एक लाख कन्वर्जन!
अब एक अमेरिकी पादरी क्रिस होजेस का एक दावा सामने आया है। लगभग 39 मिनट के एक वीडियो में उसे यह कहते हुए दिखाया गया है कि भारत कन्वर्जन का मुख्य ठिकाना है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयासों के बावजूद, (उसका संगठन) अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल रहा है। पादरी क्रिस होजेस ने यह भी दावा किया है कि उसका संगठन जिन मिशनरियों से जुड़ा है, वे एक सप्ताह में एक लाख से अधिक हिंदुओं को पहले ही कन्वर्ट करा चुके हैं।
भारत में खुद के अल्पसंख्यक होने का दावा करने वाले चर्च के पास वैश्विक स्तर पर सबसे गहरा नेटवर्क, असीमित वित्तीय और राजनीतिक शक्ति है। इंटरनेट और मीडिया पर उसका पूर्ण नियंत्रण है।
कौन है यह पादरी क्रिस होजेस? क्रिस होजेस चर्च आफ द हाइलैंड्स का मुख्य पादरी है। उसकी अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर उसने स्वयं को अलबामा और पश्चिम जॉर्जिया में कई स्थानों पर चंगाई उत्सव किस्म की चर्च बैठकें करने वाला बताया है। चर्च आफ द हाइलैंड्स निश्चित रूप से अलबामा का सबसे बड़ा चर्च है। इसके 20 परिसर हैं और 60,000 सदस्य हैं। लेकिन प्रणालीगत नस्लवाद का ‘समर्थन’ करने के लिए पादरी क्रिस होजेस को बार-बार माफी मांगनी पड़ी है।
खैर, चर्च के तंत्र में ऐसे बहुत से क्रिस होजेस हैं। लेकिन एक बात गौर करें। क्रिस होजेस ने कहा- ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयासों के बावजूद…।’’ यह नरेंद्र मोदी से घृणा या द्वेष रखने का साधारण मामला नहीं है। चर्च को पता है कि चंदा और सहानुभूति जुटानी है, तो उसे क्या करना होगा।
विदेशी दान और एनजीओ का दिखावा
वैसे घृणा या द्वेष अगर है, तो उसका एक आधार भी है। विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघन के लिए आक्सफैम और अन्य के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने प्राथमिकी दर्ज की है। इसके पहले आक्सफैम, सीएचआरआई, एचआरएलएन के लिए एफसीआरए लाइसेंस रद्द किया जा चुका है।
वर्ल्ड विजन, न्यू लाइफ चर्च आफ गॉड, न्यू लाइफ फेलोशिप एसोसिएशन, हार्वेस्ट इंडिया के लिए एफसीआरए लाइसेंस निलंबित किया गया है। मेजर लूथरन, सीएसआई और अन्य पर भी कार्यवाही हुई है। लेकिन बात किसी व्यक्ति या संगठन की नहीं है, बात भारत की है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2009-2010 के दौरान भारत में 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की रकम झोंकी गई थी, जिसमें से ज्यादातर पैसा अमेरिका और यूरोप के ईसाई संगठनों द्वारा भारत में गैर सरकारी संगठनों को दिया गया था।
गृह मंत्रालय की यह रिपोर्ट जनवरी 2012 में जारी की गई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार, चारों सबसे बड़े दानदाता इवेंजिकल ईसाई संगठन थे, जिनका लक्ष्य लोगों को ईसाई मत में कन्वर्ट कराना था। विदेशी दानदाताओं की सूची में सबसे बड़ा था अमेरिका का गॉस्पेल फॉर एशिया इंक (232.71 करोड़ रुपये)। दूसरे स्थान पर फंडासिओन विसेंट फेरर, बार्सिलोना, स्पेन (228.60 करोड़ रुपये) था। अमेरिका का वर्ल्ड विजन ग्लोबल सेंटर (197.62 करोड़ रुपये) तीसरे स्थान पर था। इसके बाद अमेरिका का कम्पैशन इंटरनेशनल (131.57 करोड़ रुपये) का नाम था।
‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयासों के बावजूद…।’’ यह नरेंद्र मोदी से घृणा या द्वेष रखने का साधारण मामला नहीं है। चर्च को पता है कि चंदा और सहानुभूति जुटानी है, तो उसे क्या करना होगा। -क्रिस होजेस
गृह मंत्रालय की 42 पन्नों की इस रिपोर्ट के अनुसार, 14,233 भारतीय गैर सरकारी संगठनों को 10,337.59 करोड़ रुपये का विदेशी योगदान प्राप्त हुआ था। इसका लगभग 18 प्रतिशत दिल्ली, 16 प्रतिशत तमिलनाडु और 13 प्रतिशत आंध्र प्रदेश में आया। जिलावार देखें, तो लगभग 8.5 प्रतिशत पैसा चेन्नई गया, 7 प्रतिशत बेंगलुरु और 6 प्रतिशत मुंबई गया। सबसे अधिक धनराशि अमेरिका से (3,105.73 करोड़ रुपये) आई। उसके बाद जर्मनी से (1,046.30 करोड़ रुपये) और ब्रिटेन से (1,038.68 करोड़ रुपये) भेजे गए। एनजीओ को पैसा भेजने वाले अन्य देश थे- इटली, नीदरलैंड, स्पेन, स्विट्जरलैंड, कनाडा, फ्रांस, आस्ट्रेलिया और यूएई। विदेशी योगदान से चलने वाले यह एनजीओ दिखाते हैं कि वे परोपकारी कार्यों पर पैसे खर्च करते हैं।
महत्वपूर्ण तौर पर, रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत में एनजीओ क्षेत्र के साथ मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण का जोखिम हो सकता है। मणिपुर के हाल के घटनाक्रम के अलावा भी, भारत में चर्च-एनजीओ-आतंकवाद के बहुत सारे सूत्र उपलब्ध हैं। स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है, जो यह भी जताता है कि भारत में चर्च के उद्देश्य कन्वर्जन व आतंकवाद से भी आगे जाकर विदेशी कंपनियों की हितपूर्ति तक जुड़ते हैं।
भारत को पंगु बनाने पर आमादा चर्च
एक और उदाहरण देखिए। केरल में फादर यूजीन एच परेरा के नेतृत्व में 2,000 प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने केरल के विझिंजम अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह के लिए निर्माण सामग्री ले जाने वाले ट्रकों को रोका। भीड़ जुटाने के लिए आसपास के चर्चों की घंटियां बजाई गईं। फादर यूजीन परेरा, लॉरेंस कुलस, जॉर्ज पैट्रिक, फियोवियस डी’क्रूज, शाइन, एशमिन जॉन, सागास इग्नाटियस, एंटनी और एआर जॉन के नेतृत्व में 500 लोगों की भीड़ बंदरगाह में घुस गई और बंदरगाह में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ की गई।
15 कैथोलिक पादरियों सहित आर्कबिशप पर दंगा और आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया गया। जब पहली घटना के पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, तो 3,000 लोगों की भीड़ ने पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया, जिसमें 64 पुलिसकर्मी घायल हो गए। यह वह विवरण है, जो केरल उच्च न्यायालय में पुलिस द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है। आखिर चर्च क्यों बंदरगाह का निर्माण नहीं होने देना चाहता था?
उत्तर है- ठीक उसी वजह से, जिस वजह से चर्च ने तमिलनाडु के तूतूकुडी में स्टरलाइट कॉपर प्लांट पर हिंसा की और कराई थी। ठीक उसी वजह से, जिस वजह से चर्च ने ओडिशा में नियमगिरि बॉक्साइट खदानों पर हमला किया और कराया था। ठीक उसी वजह से, जिस वजह से चर्च से जुड़े गैर सरकारी संगठनों ने तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था, जिसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री तक ने अपनी विवशता, कातरता जताई थी।
प्रश्न है- चर्च भारत को पंगु बनाने पर क्यों तुला हुआ है? वास्तव में चर्च चाहता है कि भारत और भारतीय तब तक गरीब बने रहें, जब तक वे उसे पूरी तरह कन्वर्ट न कर लें।
पिछले वर्ष की बात है। केरल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने तिरुवनंतपुरम में चर्च आॅफ साउथ इंडिया (सीएसआई) के कई परिसरों पर छापा मारा। मामला मनी लॉन्ड्रिंग का था। छापेमारी के एक दिन बाद सीएसआई दक्षिण केरल के बिशप धर्मराज रसलम को तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर हिरासत में लिया गया। बिशप का कहना था कि वह चर्च के एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ब्रिटेन जा रहा था। मामला यह था कि चर्च द्वारा संचालित डॉ. सोमरवेल मेमोरियल सीएसआई मेडिकल कॉलेज, काराकोणम में एमबीबीएस प्रवेश के लिए कैपिटेशन शुल्क लिया जाता था और इस सौदे में काला धन शामिल था। जिन परिसरों पर छापा मारा गया, उनमें बिशप रसलम और मेडिकल कॉलेज के निदेशक डॉ. बेनेट अब्राहम का आवास भी शामिल था। बेनेट अब्राहम केरल में लोकसेवा आयोग के सदस्य रह चुके थे और सीपीआई की ओर से 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके थे। डॉ. बेनेट अब्राहम एक उदाहरण है चर्च की लॉबी के विस्तृत दायरे का। वास्तव में भारत में खुद के अल्पसंख्यक होने का दावा करने वाले चर्च के पास वैश्विक स्तर पर सबसे गहरा नेटवर्क, असीमित वित्तीय और राजनीतिक शक्ति है। इंटरनेट और मीडिया पर उसका पूर्ण नियंत्रण है। सरकारों और बाजारों को प्रभावित करने की उसकी हैसियत है।
यही कारण है कि मिशनरियों द्वारा भारत के स्थानीय निवासियों को कन्वर्ट कराने की कोशिशों का एक मुख्य पहलू राजनीतिक भी है। भारत ही क्यों, पश्चिमी देशों के ईसाई मिशनरी जहां भी गए हैं, उन्होंने वहां के सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक और पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट किया है। ऐसा अनायास नहीं हुआ। इन ईसाई मिशनरियों ने जान-बूझकर कथित ‘सभ्य दुनिया’ की लगभग सभी परेशानियों और दोषों को उन लोगों पर थोपा, जिन्हें कन्वर्ट करने में वे सफल रहे। सभी पश्चिमी मिशनरी दावा करते हैं कि यदि आप उनके ईश्वर को स्वीकार नहीं करते हैं, तो आप बर्बर हैं, असभ्य हैं।
लेकिन सच कहीं और है। उनकी गतिविधियों का असली कारण यूरेनियम, सोना जैसे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों पर नियंत्रण की पश्चिमी उद्योगों की लालसा है। भारत में या विश्व मीडिया में यह आसानी से परोस दिया जाता है कि ईसाई मिशनरी भारत में मुख्यत: वनवासियों का कन्वर्जन कराते हैं। इसमें यह बात दबा दी जाती है कि इस कन्वर्जन से ईसाई मिशनरी उन वन क्षेत्रों में अपने लिए एक मानव ढाल पैदा कर लेते हैं, जो चांदी, हीरे, बॉक्साइट, अभ्रक, सिलिका, कोयला, तेल, लाल लकड़ी, चंदन की लकड़ी, शीशम, देवदार, संगमरमर, ग्रेनाइट, चूना-पत्थर, बलुआ पत्थर से लेकर रियल एस्टेट तक के लिहाज से बहुत समृद्ध होता है और जिस पर पश्चिमी कंपनियों की निगाहें लगी रहती हैं। यह सारा कार्य कथित जनजातियों को आधुनिक बनाने या उन्हें मुख्य धारा में लाने की आड़ में किया जाता है।
कम्युनिस्ट और मार्क्सवादी विचारधारा वाले समूहों को, जिनमें उनके ओवरग्राउंड राजनीतिक दल भी शामिल हैं और नक्सली आतंकवादी भी शामिल हैं, इन निर्दोष वनवासी लोगों को प्रभावित करने के लिए बड़े पैमाने पर वित्त पोषित किए जाने के समाचार आते रहे हैं। यह तय है कि इसमें दोनों ही तरफ से न तो कुछ ‘वैचारिक’ होता है और न ही कुछ ‘रिलीजियस’। यह विशुद्ध धंधा है, एक पॉन्जी स्कीम है।
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