अमरनाथ गुफा की यात्रा करने के उपरान्त स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ”बर्फ रूप में बने शिवलिंग में भगवान शिव! ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज मैंने दूसरी नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया।” अमरनाथ की गुफा का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यहां हिम शिवलिंग का निर्माण होता है; इस गुफा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसी गुफा में भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया था। अमरनाथ ऐसा दिव्य शिव धाम है जहां आदिदेव, महादेव, स्वयंभू पशुपति, नीलकंठ, आशुतोष, शंकर, भोले भंडारी आदि सहस्त्रों नामों से पूज्य भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। अमरधाम की पावन यात्रा 1 जुलाई से शुरू हो चुकी है। तो आइए इस सुअवसर पर जानते हैं देवाधिदेव के इस परम पावन धाम के विविध लौकिक व अलौकिक रहस्यों से जुड़ी रुचिकर जानकारियां –
अमर कथा से पूर्व पंचतरणी में पांचों तत्वों का परित्याग
शिव महापुराण में उल्लेख मिलता है कि एक बार माता पार्वती ने देवों के देव महादेव से पूछा- आपके कंठ में पड़ी नरमुंड माला का क्या रहस्य है। पहले तो महादेव ने माता पार्वती को सवालों को टालने की कोशिश की परंतु माता के हठ के कारण शिव जी ने उन्हें इस गूढ़ रहस्य को बताना स्वीकार किया। इस रहस्य को बताने के लिए भगवान शिव को एकांत जगह की आवश्यकता थी और इसी जगह की तलाश करते हुए वह माता पार्वती के साथ आगे बढ़े। गुप्त स्थान की तलाश में महादेव ने नंदी को सबसे पहले जहां छोड़ा, जिस जगह पर नंदी का त्याग किया वह स्थल ‘पहलगाम’ के नाम से जाना जाता है। यहीं से अमरनाथ यात्रा की शुरुआत होती है। यहां से थोड़ा आगे चलने पर शिवजी ने अपनी जटाओं से चंद्रमा को अलग किया, जिस जगह ऐसा किया वह ‘चंदनवाड़ी’ कहलाती है। इसके बाद गंगा जी का ‘पंचतरणी’ में और कंठाभूषण सर्पों का ‘शेषनाग’ पर परित्याग किया। इसके बाद यात्रा का अगला पड़ाव मिलता है जहां पर महादेव ने पुत्र गणेश को छोड़ा था। पंचतरणी में पांचों तत्वों का परित्याग कर पहुंच कर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ उस पवित्र गुफा में प्रवेश किया था।
महादेव ने देवी पार्वती को सुनायी अमरकथा
कोर्इ भी तीसरा प्राणी अमर कथा को न सुन सके, इस कारण भगवान शिव ने चारों ओर अग्नि प्रज्जवलित कर दी। तत्पश्चात महादेव ने उस पवित्र गुफा में माँ पार्वती को जीवन के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान दिया। शास्त्रों के अनुसार जब इसी गुफा में भगवान शिव माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बता रहे थे तो गुफा में मौजूद एक शुक (तोता) और दो कबूतरों ने भी इस रहस्य को सुन लिया था। कहा जाता है कि कथा सुनते सुनते देवी पार्वती को नींद आ गयी और महादेव कथा सुनाते रहे। उस समय वह कथा दो सफ़ेद कबूतर सुन रहे थे और बीच-बीच में आवाज निकाल रहे थे, जिससे महादेव को प्रतीत हुआ कि माता पार्वती उनकी कथा सुन रही हैं। जब कथा समाप्त हुई और भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती पर गया तो उन्होने देखा कि वह तो सो रही हैं। तब महादेव की नजर शुक और उन दोनों कबूतरों पर पड़ी उनको देखते ही महादेव को उनपर क्रोध आ गया। इस पर वे पक्षी उनके चरणों में आ गिरे और बोले– भगवन् हमने आपसे श्रीमुख से अमरकथा सुनी है; यदि आप हमें मार देंगे तो यह कथा झूठी हो जाएगी, अतः आप हमें सुपथ प्रदान करें। इस पर महादेव के आशीर्वाद से शुक बाद में शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये; जबकि महादेव के वर से कबूतर का यह जोड़ा अमर हो गया और यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गयी। इस गुफा में आज भी कई श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है।
हिमलिंग के रूप में विराजमान शिव और पार्वती पीठ
हिमालय पर्वत में समुद्र तल से 3,978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 160 फुट लंबी, 100 फुट चौड़ी अमरनाथ गुफा में रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन भगवान शंकर स्वयं हिमलिंग के स्वरूप में विराजमान रहते हैं। रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिम शिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि अमरनाथ गुफा के अंदर हिम शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही मनुष्य को 23 पवित्र तीर्थों के पुण्य के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। अमरनाथ गुफा के अंदर बनने वाला हिम शिवलिंग पक्की बर्फ का बनता है जबकि गुफा के बाहर मीलों तक सर्वत्र कच्ची बर्फ ही देखने को मिलती है। मान्यता यह भी है कि गुफा के ऊपर पर्वत पर श्रीराम कुंड है। श्री अमरनाथ गुफा में स्थित पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां भगवती सती का कंठ भाग गिरा था।
दो यात्रा मार्ग
अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए यहां पहुचंने के दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से जाता है। पहलगाम से अमरनाथ जाने का रास्ता सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बालटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी 14 किलोमीटर है; लेकिन यह मार्ग पार करना मुश्किल होता है। इसी वजह से अधिकतर यात्री पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाते हैं।
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