विवाद का दूसरा नाम है बिहार का शिक्षा विभाग !
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विवाद का दूसरा नाम है बिहार का शिक्षा विभाग !

बिहार का शिक्षा विभाग विवादों का विभाग बन गया है। बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो चंद्रशेखर अपने विवादित बयानों से चर्चा में रहते हैं, तो विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक अपने कारनामों से।

by संजीव कुमार
Jul 13, 2023, 01:10 pm IST
in बिहार
अपर मुख्य सचिव के के पाठक और बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो चंद्रशेखर

अपर मुख्य सचिव के के पाठक और बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो चंद्रशेखर

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अभी कुछ दिन पहले ही दोनों एक—दूसरे से भिड़ गए थे। अपर मुख्य सचिव महोदय ने मंत्री के सचिव का ही प्रवेश मंत्रालय में बंद करवा दिया। दोनों के बीच विवादों के कारण हालात ऐसे बन एग थे कि महागठबंधन की सरकार अब गई कि तब गई की स्थिति बन गई थी। राजद के विधायक और विधान पार्षद अपने कोटे के मंत्री का अपमान होते देख बिलबिला गए थे। राजद के विधान पार्षद सुनील सिंह ने यहां तक कह दिया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे अधिकारियों का उपयोग मंत्रियों को किनारे लगाने के लिए करते हैं। जदयू की ओर से बीच- बचाव में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी कूद पड़े। स्थिति यहां तक आ गई कि मुख्यमंत्री को महागठबंधन के विधायक और विधान पार्षदों की बैठक बुलानी पड़ी। उसमें भी मुख्यमंत्री ने अपना आपा खो दिया। सुनील सिंह के साथ बढ़ते विवाद में लालू प्रसाद और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद को हस्तक्षेप करना पड़ा।

एक जमाने में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद इस विभाग के माध्यम से चरवाहा विद्यालय, पहलवान विद्यालय समेत कई प्रयोग करते थे। लालू राज में इन प्रयोगों से बिहार में शायद ही किसी का भला हुआ हो। एक ओर यह प्रयोग चल रहा था, तो दूसरी ओर बिहार की शिक्षा व्यवस्था रसातल में जा रही थी। 80 के दशक में जिन सरकारी विद्यालयों में प्रवेश परीक्षा के आधार पर नामांकन होता था, वहां विद्यार्थियों का अभाव होने लगा। 2005 में सत्ता बदली लेकिन शिक्षा विभाग अपनी साख नहीं लौटा पाया। पूर्व का ऑक्सफोर्ड नाम से चर्चित पटना विश्वविद्यालय नैक के ग्रेडेशन में काफी पीछे है। ए एन कॉलेज को छोड़कर बिहार का कोई भी महाविद्यालय नैक का ए ग्रेड नहीं पा सका।

वैसे भी जब से डॉ चंद्रशेखर विभाग के मंत्री बने हैं तब से अपने बयानों को लेकर चर्चा में हैं। अभी हाल ही में उन्होंने बयान दे दिया कि बिहार में विज्ञान, गणित और अंग्रेजी पढ़ाने लायक प्रतिभा नहीं है। इसलिए बिहार के बाहर के लोगों को शिक्षक बनाने के लिए शिक्षक नियुक्ति नियमावली में परिवर्तन किया गया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने उनके इस बयान को पागलपंथी बताया है। उन्होंने दरभंगा के बहेरी में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा, “बिहार का शिक्षा मंत्री मूर्ख है, किसने इसे शिक्षा मंत्री बनाया है।”

बिहार में अभी 1 लाख 70 हजार 461 शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए बिहार लोक सेवा आयोग की ओर से विज्ञापन भी निकाल दिया गया है। इसमें पहले यह बाध्यता थी कि वही अभ्यर्थी फार्म भर सकते हैं जो बिहार के निवासी हों। लेकिन 23 जून को पटना में हुई महागठबंधन की बैठक के बाद नियमावली में परिवर्तन कर दिया गया। अब पूरे देशभर के छात्र इसमें फार्म भर सकते हैं। इसको लेकर बिहार के अभ्यर्थियों में आक्रोश देखा जा रहा है। इससे एक कदम आगे विवाद और भी गहरा होता हुआ तब नजर आया जब बिहार के शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर ने कहा कि कई विषयों को पढ़ाने के लिए बिहार के छात्र योग्य नहीं हैं।

शिक्षक भर्ती नियमावली में बदलाव के बाद शिक्षामंत्री ने साफ तौर पर कहा कि गणित, विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाने के लिए बिहार के छात्र योग्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि योग्य अभ्यर्थियों के नहीं मिलने के कारण इन विषयों की सीटें खाली रह जातीं थीं। एक आंकड़ा प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि पिछली बार 6000 में से सिर्फ 369 लोग आए। इसके बाद सरकार ने इस तरह का निर्णय लिया है। अब देश का कोई भी अभ्यर्थी इसमें शामिल हो सकता है। प्रतिभाशाली अभ्यर्थी इस बहाली की प्रक्रिया में शामिल होंगे और उनकी बहाली होगी।

शिक्षामंत्री के इस बयान पर शिक्षक अभ्यर्थी राहुल कुमार ने आक्रोश में कहा कि शिक्षामंत्री पहले इतिहास का अध्ययन करें। यह आर्यभट्ट और चाणक्य की धरती है। आर्यभट्ट ने ही खगोल की कई रहस्यों से पर्दा हटाया था। खगोल विज्ञान का ही हिस्सा है। बिहार में सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला थे। वास्तव में शिक्षा मंत्री मानसिक दिवालिया हैं। अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शिक्षामंत्री का विभाग बदलने के लिए 72 घंटे का समय दिया है।

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्य और पटना विश्वविद्यालय के अतिथि शिक्षक प्रशांत रंजन इस बयान को सिरे से खारिज करते हैं। वे कहते हैं कि बिहारी बौद्धिक और शारीरिक दोनों श्रम शक्ति में अग्रणी है। कोरोना काल में सबसे पहले बिहारी मजदूरों को ही हवाई जहाज का टिकट देकर बुलाया गया। आईटी का हब बेंगलूरू और पुणे को मानते हैं। अगर सर्वे हो तो यहां एक तिहाई बाहरी इंजीनियर बिहार के ही होंगे। यूपीएससी जैसे अव्वल परीक्षाओं में बिहारी अपना प्रतिभा लंबे समय से दिखा रहे हैं। दरअसल यह बिना सोचे—समझे दिया गया बयान है। विगत अनुभव बताता है कि बिहार की परीक्षाओं में सबकी भागीदारी होने पर यहीं के विद्यार्थी पिछड़ जाते हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली में बिहारियों की बहाली सबसे कम हुई।

बांका में रहने वाले बिहार के प्रसिद्ध व्यवसाई राहुल डोकानिया इसे महागठबंधन द्वारा फेंकी गई दूर की कौड़ी बताते हैं। उनका मानना है कि यह बयान शिक्षामंत्री ने मुख्यमंत्री के कहने पर दिया है। नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के स्वघोषित दावेदार हैं। ऐसे में सिर्फ बिहारियों के लिए रिक्ति की घोषणा से राष्ट्रीय पहचान बनाने में संकट आयेगी। इसलिए उनके इशारे पर शिक्षामंत्री ने बिहार में होने वाले 1 लाख 75 हजार शिक्षकों की भर्ती में सबको शामिल होने की अनुमति दे दी है। आखिरकार 23 जून को महागठबंधन की बैठक के दिन ही यह निर्णय क्यों लिया गया?

भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने विवाद पर चुटकी लेते हुए कहा कि मुख्यमंत्री पूरे प्रकरण में खामोश क्यों हैं? बिहारी अस्मिता की बात करने वाले मुख्यमंत्री बिहारी प्रतिभा पर जब प्रश्नचिन्ह लग रहा है तो चुप क्यों है? 40 हजार करोड़ के बजट वाला शिक्षा विभाग के बावजूद बिहार में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की स्थिति बदहाल बनी हुई है। श्री प्रसाद ने कहा कि बिहार में शिक्षा की स्थिति सर्वाधिक बदहाल है। बिहार के बच्चे पढ़ाई के लिए अन्य प्रदेशों में पलायन के लिए बाध्य हैं। पिछले कई सालों से शिक्षक अभ्यर्थी बहाली के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं। सरकार बिहार के युवाओं को केवल झांसा दे रही है। शिक्षक बहाली नियमावली में बार-बार परिवर्तन शिक्षा विभाग की बदहाली और अकर्मण्यता को ही उजागर करता है।

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