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नटराज मंदिर पर द्रमुक की गिद्ध दृष्टि

प्राचीन वैदिक नटराज मंदिर चोलकालीन स्थापत्य और भरतमुनि विरचित ‘नाट्यशास्त्र’ के 108 करणों अर्थात् नृत्य मुद्राओं की नक्काशी के लिए विख्यात है। ये नृत्य मुद्राएं भरतनाट्यम नृत्य को आधार प्रदान करती हैं।

by प्रो. आनन्द पाटील
Jul 12, 2023, 09:03 am IST
in भारत
प्राचीन वैदिक नटराज मंदिर चोलकालीन

प्राचीन वैदिक नटराज मंदिर चोलकालीन

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तमिल कैलेंडर के अनुसार, ‘आनी मासम्’ (जून-जुलाई) में ‘उथिरम नक्षत्र’ में ‘तिरुमञ्जनम् उत्सव’ मनाया जाता है। रथोत्सव इसका विशेष आकर्षण होता है, क्योंकि भगवान शिव इस पर नगर भ्रमण करते हैं।

तमिलनाडु के चिदंबरम नगर स्थित प्राचीन वैदिक नटराज मंदिर चोलकालीन स्थापत्य और भरतमुनि विरचित ‘नाट्यशास्त्र’ के 108 करणों अर्थात् नृत्य मुद्राओं की नक्काशी के लिए विख्यात है। ये नृत्य मुद्राएं भरतनाट्यम नृत्य को आधार प्रदान करती हैं। यह मंदिर तमिलनाडु सहित दक्षिणी राज्यों के भरतनाट्यम के कलाकारों के लिए अत्यन्त विशिष्ट है। लेकिन इन दिनों यह एक विवाद के कारण चर्चा में है। दरअसल, तमिल कैलेंडर के अनुसार, ‘आनी मासम्’ (जून-जुलाई) में ‘उथिरम नक्षत्र’ में ‘तिरुमञ्जनम् उत्सव’ मनाया जाता है।

रथोत्सव इसका विशेष आकर्षण होता है, क्योंकि भगवान शिव इस पर नगर भ्रमण करते हैं। उत्सव के दौरान चार दिन श्रद्धालुओं के लिए कनकसबई (कनकसाबाई या कनगसाबाई) अर्थात् गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं होती। इस साल भी मंदिर प्रशासन ने प्रवेश को सीमित किया था। लेकिन 27 जून को हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ प्रबंधन (एचआर एंड सीई) विभाग के अधिकारी वेल्विजी ने दो महिला पुलिसकर्मियों के साथ जबरदस्ती मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किया। यहीं से विवाद शुरू हुआ।

1954 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि सरकार मंदिर प्रबंधन में हस्तक्षेप नहीं करेगी। शीर्ष अदालत के 7 न्यायाधीशों की पीठ ने एचआर एंड सीई आयुक्त, मद्रास बनाम शिरूर मठ के श्री लक्ष्मींद्र तीर्थ स्वामी के मामले में कहा था कि किसी विशेष धार्मिक संप्रदाय की आवश्यक धार्मिक प्रथाएं क्या हैं, इसका निर्धारण उस संप्रदाय पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए।

चोल काल से ही पोथु दीक्षितर (दीक्षित) श्री सबनायगर मंदिर (नटराज मंदिर) के वंशानुगत पुजारी और संरक्षक हैं। चार दिवसीय प्रतिबंध के दौरान गर्भगृह में केवल पुजारी ही पूजा-अर्चना कर सकते हैं। चूंकि वार्षिकोत्सव में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर प्रशासन हर साल आवश्यक प्रतिबंध लगाता है। चिदंबरम स्थित अन्नामलाई विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ प्राध्यापक ने बताया, ‘‘दीक्षितरों ने वार्षिकोत्सव से पहले ही मंदिर में बोर्ड लगा दिया था, जिस पर लिखा था कि 27 जून तक कनकसबई में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पाबंदी रहेगी। इसका उद्देश्य यह था कि वार्षिकोत्सव के दौरान श्रद्धालुओं को व्यवस्था की सूचना रहे और उन्हें असुविधा न हो। इससे पहले मौखिक सूचनाओं से ही काम चल जाता था। लेकिन हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने 26 जून को मंदिर से सूचनापट को हटा दिया।’’

मीडिया में आई खबरों के अनुसार, 27 जून को दीक्षितरों के मना करने के बावजूद विभाग के अधिकारी दो महिला पुलिसकर्मियों के साथ जबरदस्ती गर्भगृह में घुस गए। दीक्षितरों द्वारा जारी बयान के अनुसार, उन्हें धक्का देकर गिरा दिया गया और उनके कपड़े भी फाड़ दिए गए। घटना के बाद एचआर एंड सीई मंत्री पी.के. शेखरबाबू ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि उत्सव के बावजूद श्रद्धालु कनकसबई में जा सकें। साथ ही, उन्होंने यह कहा कि श्रद्धालुओं की मांग पर यह कदम उठाया जा रहा है, जबकि श्रद्धालुओं की ओर से ऐसी कोई मांग ही नहीं की गई थी।

तमिलनाडु के हिंदू संगठनों का कहना है कि द्रमुक सरकार हिंदू मंदिरों की संपत्तियों पर कब्जा चाहती रही है, इसलिए वह कनकसबई में जबरन प्रवेश कर विवाद खड़ा कर रही है। बीते वर्ष जून में विभाग ने श्री सबनयागर मंदिर को सार्वजनिक मंदिर बताते हुए समिति गठित कर प्रशासनिक और रिकॉर्ड की जांच कराने की बात कही थी। इसके लिए विभाग के आयुक्त आर. कन्नन ने पोथु दीक्षितरों से सहयोग करने का निर्देश भी दिया था। विभाग ने बिना किसी अधिकार के मंदिर का रिकॉर्ड जांचा, लेकिन कोई गड़बड़ी नहीं मिली और द्रमुक सरकार के मंसूबे पर फिर एक बार पानी फिर गया।

कडलुर जिले के समरसता संंयोजक राम सबेसन ने बताया कि ‘तिरुमञ्जनम् उत्सव’ के दौरान मंदिर के गर्भगृह में चार दिन प्रवेश का निषेध नई बात है। बलात् गर्भगृह में प्रवेश कर विवाद खड़ा करना भी नया मामला नहीं है। द्रमुक जब-जब सत्ता में रही, उसने तब-तब हिंदू मंदिरों को हथियाने का प्रयास किया है। द्रमुक के सी.एन. अन्नादुराई के समय से ही इस मंदिर को सरकार के अधीन लाने के प्रयास होते रहे हैं, लेकिन कड़े विरोध के कारण अभी तक यह मंदिर पोथु दीक्षितरों के संरक्षण में है।

पूर्व मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन के समय भी विभाग के मंत्री वी.वी. स्वामिनाथन ने मंदिर पर नियंत्रण का प्रयास किया था। लेकिन मामला अदालत में चला गया और सरकार को मुंह की खानी पड़ी। महत्वपूर्ण बात यह है कि 1954 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि सरकार मंदिर प्रबंधन में हस्तक्षेप नहीं करेगी। शीर्ष अदालत के 7 न्यायाधीशों की पीठ ने एचआर एंड सीई आयुक्त, मद्रास बनाम शिरूर मठ के श्री लक्ष्मींद्र तीर्थ स्वामी के मामले में कहा था कि किसी विशेष धार्मिक संप्रदाय की आवश्यक धार्मिक प्रथाएं क्या हैं, इसका निर्धारण उस संप्रदाय पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए।

तमिलनाडु के हिंदू संगठनों का कहना है कि द्रमुक सरकार हिंदू मंदिरों की संपत्तियों पर कब्जा चाहती रही है, इसलिए वह कनकसबई में जबरन प्रवेश कर विवाद खड़ा कर रही है। बीते वर्ष जून में विभाग ने श्री सबनयागर मंदिर को सार्वजनिक मंदिर बताते हुए समिति गठित कर प्रशासनिक और रिकॉर्ड की जांच कराने की बात कही थी। इसके लिए विभाग के आयुक्त आर. कन्नन ने पोथु दीक्षितरों से सहयोग करने का निर्देश भी दिया था।

पीठ ने यह भी कहा था कि धर्म की आवश्यक प्रथा को स्थापित करने के लिए अनिवार्य रूप से धर्म की शिक्षाओं के संदर्भों का उपयोग किया जाना चाहिए। नटराज मंदिर के अधिवक्ता चंद्रशेखर के अनुसार, पोथु दीक्षितरों के लगभग 350 परिवार हैं। मंदिर पर कब्जा करने के लिए तरह-तरह के आरोप लगाकर उन्हें परेशान किया जा रहा है। लगभग 500 पुलिसकर्मी अचानक ऐसे ही मंदिर में नहीं घुस जाते हैं।

सरकार द्वारा प्रायोजित अभियान के तहत इस मामले को जातिगत छुआछूत से जोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि कनकसबई में जबरन प्रवेश करने वाली दो महिला पुलिसकर्मियों में से एक अनुसूचित जाति की है। इसी आधार पर दीक्षितरों पर छुआछूत का मामला दर्ज किया गया है। सच यह है कि उत्सव के दिनों में 5,000 श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। ऐसे में किसी की जाति का पता करना असंभव है। वैसे भी मंदिर प्रशासन किसी तरह का भेदभाव नहीं करता। सरकार अति अल्पसंख्यक दीक्षितरों को प्रताड़ित कर उन्हें रास्ते से हटाना चाहती है, ताकि मंदिर को अपने अधीन लेकर उसकी संपत्ति का दोहन कर सके।

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