भारतीय वायु सेना के लिए भी नया समझौता बहुत बड़ी राहत है। अब भारतीय वायु सेना को तेजस एमके-2 के निर्माण के लिए धन मिल सकेगा। पहले क्योंकि भारत सरकार ने धन का आबंटन यह कह कर रोका हुआ था कि धन तभी उपलब्ध होगा, जब अमेरिकी सरकार इंजन प्रौद्योगिकी के शत प्रतिशत हस्तांतरण को मंजूरी दे दी।
वाशिंगटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जनरल इलेक्ट्रिक के अध्यक्ष एच. लॉरेंस कल्प जूनियर की एक बैठक होती है और उसके बाद जनरल इलेक्ट्रिक की एयरोस्पेस शाखा भारतीय वायु सेना के लिए लड़ाकू जेट इंजन बनाने के लिए भारत की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ साझेदारी की घोषणा कर देती है।
इसका एक अर्थ यह भी है कि जीई अब अपने कई उत्पादों का निर्माण भारत में ही करने के लिए तैयार हो रहा है, जिसमें उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (एएमसीए) का निर्माण भी शामिल है। एचएएल नौसेना के लिए 100 ट्विन-इंजन डेक-आधारित लड़ाकू विमानों के निर्माण के अलावा 100 से अधिक तेजस एमके-2 जेट और एएमसीए के 126 अन्य जेट निर्माण करने पर विचार कर रहा है।
संप्रग काल में सौदा होता तो…
इस सौदे का एक संक्षिप्त इतिहास है, जो पूरी तरह अपेक्षित किस्म का ही है। यह सौदा संप्रग-2 ने भी करने की चेष्टा की थी। वास्तव में जीई-एफ 404 सौदे पर बातचीत संप्रग-2 के दौरान 2010 में शुरू हुई थी। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की 2010 की भारत यात्रा के एजेंडे में भी यह सौदा शामिल था। संप्रग-2 ने जिस लागत पर प्रति इंजन सौदा किया था, उसमें और वर्तमान सौदे के बीच लागत में भारी अंतर है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जो सौदा किया है, उसकी कीमत संप्रग-2 द्वारा किए गए सौदे का लगभग 50 प्रतिशत है। वह भी तब जब संप्रग-2 ने 58 प्रतिशत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की बात की थी। और अब 80 प्रतिशत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर सौदा हुआ है। बाकी कहानी स्वत: ही स्पष्ट हो जाती है। तब भारत ने 107 जीई-एफ 404 इंजनों के लिए बात की थी, जिसका मूल्य 80 करोड़ डॉलर था। अर्थात् लगभग 75 लाख डॉलर प्रति इंजन। संप्रग-2 ने कंपनी से सिर्फ 58 प्रतिशत प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की बात की थी। भारत का सौभाग्य कि यह सौदा सफल नहीं हो सका।
अब देखें 2023 के जीई-एफ414 सौदे की विशेषताओं को। यह सौदा लगभग 10-37 लाख डॉलर प्रति इंजन की कीमत पर हुआ है। इंजनों की कुल संख्या का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन सौदे का कुल मूल्य लगभग एक अरब डॉलर होगा। सौदे के अनुसार, प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण 80 प्रतिशत तक होगा। यह कारक कीमत से भी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि 80 प्रतिशत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के आधार पर भारत अपना इंजन जल्द विकसित करने में सक्षम हो जाएगा। इस सौदे में 11 ऐसी महत्वपूर्ण ‘प्रतिबंधित प्रौद्योगिकियां’ हैं, जो 2012 के सौदे का हिस्सा नहीं थीं।
ये प्रौद्योगिकियां हैं – सीएमसी (सेरेमिक मैट्रिक्स कंपोजिट्स), कम्बस्टर के लिए लेजर ड्रिलिंग तकनीक, संक्षारण और क्षरण से बचाव के लिए विशेष कोटिंग, फैन और आफ्टर बर्नर के लिए वेल्डिंग, पीएमसी (पॉलिमर मैट्रिक्स कंपोजिट्स), टर्बाइन ब्लेड्स के लिए एकल क्रिस्टल के लिए मशीनिंग और कोटिंग, गर्म सिरे वाले हिस्सों की मशीनिंग और कोटिंग, अति तीव्र मशीनिंग, पाउडर धातुकर्म डिस्क की मशीनिंग, और पतली दीवार वाले टाइटेनियम आवरण की मशीनिंग। इस समझौते में भारतीय वायु सेना के हल्के लड़ाकू विमान एमके-2 कार्यक्रम के हिस्से के रूप में भारत में जीई एयरोस्पेस के एफ-414 इंजनों का संभावित संयुक्त उत्पादन शामिल है।
किस्मत बदलने वाला सौदा
एफ-414 इंजनों का 50 लाख से अधिक उड़ान घंटों और 1,600 से अधिक इंजनों की वैश्विक डिलीवरी का ट्रैक रिकॉर्ड है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत और अमेरिका, भारत के घरेलू लड़ाकू विमान कार्यक्रम के लिए संयुक्त रूप से भारत में एक इंजन का निर्माण करने पर सहमत हुए हैं। जीई-एफ 414 इंजन के लाइसेंस उत्पादन का सौदा भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इससे भारत में मूलभूत ढांचे की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। साथ ही, इससे भारत इन इंजनों के उत्पादन के साथ-साथ परीक्षण के लिए आवश्यक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र बना सकेगा। उधर, तेजस एमके-2 भारतीय वायु सेना की अपनी स्क्वाड्रन ताकत बढ़ाने की योजना के लिए अति आवश्यक है, और इसे अपेक्षाकृत बड़ी मात्रा में शामिल किए जाने की उम्मीद है।
वर्तमान में, एचएएल एमके-1ए संस्करण के अपने उत्पादन को प्रति वर्ष आठ विमानों से बढ़ाकर 16 करने की योजना बना रहा है, जो डिलीवरी के अंतिम वर्ष में और भी बढ़ सकता है। भारतीय वायु सेना तेजस एमके-2 के छह स्क्वाड्रन बनाना चाहती है और प्रोटोटाइप का परीक्षण 2026 में होने की उम्मीद है।
इसी प्रकार यह भी महत्वपूर्ण है कि अगले 10 से 15 वर्षों के लिए प्रस्तावित इन परियोजनाओं से देश रक्षा उत्पादन और तकनीक के क्षेत्र में अधिक आत्मनिर्भर बन जाएगा। यह सौदा भारत के लिए एक पासा पलट देने वाली कहानी साबित होगा। जीई-एफ 414 एक उन्नत इंजन है और इसका उपयोग बोइंग के सुपर हॉर्नेट और ग्रिपेन जैसे लड़ाकू विमानों में किया जाता है। यह देश की विनिर्माण क्षमता को और आगे ले जा सकता है। प्रतिरक्षा के खतरों को ध्यान में रखते हुए ये इंजन और संबंधित विमान और संबंधित तकनीक भारत के लिए बहुत आवश्यक हैं। इन इंजनों के बूते हमारे स्वदेशी विमान तेजस की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।
ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत और अमेरिका, भारत के घरेलू लड़ाकू विमान कार्यक्रम के लिए संयुक्त रूप से भारत में एक इंजन का निर्माण करने पर सहमत हुए हैं।
जीई-एफ 414 इंजन
यह 22,000-पाउंड (98 किलोन्यूटन) थ्रस्ट क्लास में एक अमेरिकी आफ्टरबर्निंग टर्बोफैन इंजन है। तीव्र थ्रॉटल प्रतिक्रिया के साथ यह इंजन चाहे जितना ज्यादा प्रदर्शन करने में सक्षम है। इसके थ्रॉटल पर किसी तरह की बंदिश नहीं होती है। यह आफ्टरबर्नर प्रकाश और स्थिरता की दृष्टि से भी यह इंजन सर्वश्रेष्ठ है और जरूरत पड़ने पर इससे अतिरिक्त ताकत ली जा सकती है। भारत के लिए जीई-एफ 414 इंजनों की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एक बहुत बड़ा लाभ का बिन्दु होगा। इसका कारण यह है कि मौजूदा आपरेशनल तेजस मार्क-1 फाइटर जेट में कम शक्तिशाली जीई-एफ 404 इंजन है।
जीई-एफ 404 एक आफ्टरबर्नर के साथ 53.9 किलोन्यूटन और 82 किलोन्यूटन का ड्राई थ्रस्ट उत्पन्न करता है। भारतीय वायु सेना के लिए भी नया समझौता बहुत बड़ी राहत है। अब भारतीय वायु सेना को तेजस एमके-2 के निर्माण के लिए धन मिल सकेगा। पहले क्योंकि भारत सरकार ने धन का आबंटन यह कह कर रोका हुआ था कि धन तभी उपलब्ध होगा, जब अमेरिकी सरकार इंजन प्रौद्योगिकी के शत प्रतिशत हस्तांतरण को मंजूरी दे दी। अब सौदे पर हस्ताक्षर होने के बाद तेजस एमके-2 प्रोजेक्ट को उत्पादन के लिए हरी झंडी मिल गई है। इससे तेजस एमके-2 भारत सरकार द्वारा निर्धारित 2028 की अपनी समयसीमा में पूरा हो सकेगा।
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