हर साल 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। भारत ने चिकित्सा के क्षेत्र में भी दुनिया में लोहा मनवाया है। प्राचीन भारत में चरक जैसे महान चिकित्सक तो थे ही, आज के युग में भी कोरोना काल में पूरी दुनिया ने भारत को प्रणाम किया। क्या आप जानते हैं कि नेशनल डॉक्टर्स डे क्यों मनाया जाता है। तो हम आपको बताते हैं।
भारतीय चिकित्सक, डॉ बी.सी. रॉय के जन्म एवं निर्वाण दिवस, (1 जुलाई) को डॉक्टर्स डे के रूप मे मनाते हैं। उन्हें वर्ष 1961 में भारत रत्न दिया गया था। भारत रत्न डॉ. बिधान चन्द्र रॉय का जन्म 1 जुलाई, सन् 1882 को तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेन्सी के अंतर्गत बांकीपुर (अब पटना) में हुआ था एवं उनकी मृत्यु 1 जुलाई 1962 को हुई। पिता का नाम प्रकाश चंद्र राय और माता का नाम कमिनी देवी था। डॉ बी.सी. रॉय एक प्रख्यात चिकित्सक, स्वतंत्रता सेनानी, सफल राजनीतिज्ञ तथा समाजसेवी के रूप में याद किये जाते हैं। उन्होंने पटना कॉलेजिएट से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कलकत्ता मेडिकल कालेज से मेडिकल ग्रेजुएट व इंग्लैंड से एम.डी., एम.आर.सी.पी., एफ.आर.सी.एस. उत्तीर्ण की। इसके बाद 1911 में भारत वापस आये।
भारत वापस आने के बाद डॉ बिधान चन्द्र रॉय ने चिकित्सा शिक्षक के रूप में कलकत्ता मेडिकल कालेज, एन.आर.एस. मेडिकल कालेज व आर.जी. कर मेडिकल कालेज में कार्य किया। वे मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया (एम.सी.आई.) के अध्यक्ष भी रहे तथा राजनीतिज्ञ के रूप में कलकत्ता के मेयर, विधायक व पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री (1948 से 1962) भी रहे। वे मुख्यमंत्री रहते हुए भी प्रतिदिन निःशुल्क रोगी भी देखते थे। उन्हें 4 फरवरी 1961 को भारत रत्न से अलंकृत किया गया।
बिधान चंद्र अपने माता पिता की पाँच संतानों में सबसे छोटे थे। कहा जाता है कि बिधान चंद्र के पूर्वज बंगाल के राजघराने से सम्बंधित थे और उन्होंने मुग़लों का जमकर मुकाबला किया था। यद्यपि कालांतर में राजशाही का वह प्रभाव जाता रहा तथा सरकारी नौकरी होते हुए भी प्रकाश चंद्र राय की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।
डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। लेकिन कुछ वर्षों से डॉक्टर और मरीजों के बीच संघर्ष की भी बातें सामने आती रही हैं। इस पर किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, उ0प्र0, लखनऊ में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकांत कहते हैं कि मरीजों और डॉक्टरों के बीच संबंध बहुत ही सहनशील होने चाहिए। जब मरीज की हालत गंभीर हो और धैर्य और सहनशीलता की सबसे ज्यादा जरूरत हो, मरीजों और चिकित्सकों के बीच स्थापित मर्यादा और सद्व्यवहार की लक्ष्मण रेखा नहीं पार करनी चाहिए। पढ़ाई के दौरान इन चिकित्सकों को प्रशासनिक प्रशिक्षण व कानूनी प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता, जिसके कारण आगे चलकर उन्हें मेडिको-लीगल व प्रशासनिक दायित्व निर्वाह करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसीलिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेज की तर्ज पर इंडियन मेडिकल सर्विसिज (आई.एम.एस.) की मांग कर रही है।
उन्होंने यह भी बताया कि एक बड़ा कारण जो डाक्टर-रोगी के रिश्तों को प्रभावित करता है वो है डॉक्टरों की कमी। 2018 की नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति 11,082 जनसंख्या पर एक एलोपैथिक चिकित्सक है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक (1,000 जनसंख्या पर एक चिकित्सक) से 10 गुना कम है। काम के बोझ से जुड़े तनाव तो इस सेवा का हिस्सा बन ही चुके हैं। इन दोनों छोरों पर भी बड़े सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
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