देहरादून। उत्तराखंड में पावन गंगा की तरह, यमुना को भी पूर्व की तरह आस्था और विश्वास से जोड़े जाने की शुरुआत होने जा रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं इस पुनीत कार्य की देखरेख कर रहे हैं और इस पर गहनता से विचार विमर्श शुरू हो गया है।
गंगा जहां सनातन धर्म संस्कृति का हिस्सा है, वहीं यमुना को भी हिंदू मान्यताओं में महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। उत्तराखंड में यमुनोत्री से यमुना का उद्गमस्थल है और यमुना, अपनी घाटी से होते हुए डाक पत्थर से हिमाचल, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच विभाजन रेखा बनती है।
हिमाचल और उत्तराखंड के बीच टोंस नदी बहती है जोकि हरिपुर नगरी में यमुना से मिलकर आगे बढ़ती है। पुराने जानकर बताते हैं कि हरिपुर में ही पहले कभी संगम घाट हुआ कार्य था, जोकि अब जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। इस घाट पर जौनसार बावर के लोग पावन स्नान के लिए आते रहे हैं।
देवलोक में यमुना को सूर्यदेव की पुत्री और मृत्युदेव यमराज की बहन माना जाता है। यमुना को कालिंदी भी बोला जाता है। सूर्य को कलिंद भी बोला जाता है इसलिए उनकी पुत्री को ये नाम मिला, यमुना जी हिमालय के बंदरपूंछ पर्वत से निकलती हैं। कहा जाता है कि इसी पर्वत पर हनुमान ने अपनी पूंछ में लगी आग बुझाई थी। असित ऋषि का आश्रम भी यमुनोत्री में है। विकासनगर क्षेत्र में एक आश्रम कालपी ऋषि का है। कहते हैं इस क्षेत्र का नाम कालसी उन्हीं के नाम से पड़ा, उनके द्वारा गुरु नानक देव के समय से तपस्या की गई और गुरु गोविंद सिंह के द्वारा श्री पोंटा साहिब से आकर उनकी तपस्या का समापन करवाया गया। ये स्थान आज भी यहां मौजूद है। इसके अलावा जमुना किनारे अशोक स्तंभ भी मौजूद है, यानि ये क्षेत्र इतिहास से भरा हुआ है, लेकिन उपेक्षित है।
जौनसार बावर क्षेत्र में लाखामंडल ही पांडवों का लाक्षागृह रहा है। जो इस समय भी आस्था का केंद्र है और यहां तीर्थ यात्री और पर्यटक भी आते रहे हैं। यमुना का सांस्कृतिक इतिहास भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है। राधा-कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी हुई है, मथुरा-वृंदावन की ब्रजभूमि में मां यमुना को श्रद्धा भाव से देखा जाता रहा है। उत्तराखंड सरकार अब यमुना जी को भी अपने तीर्थ स्थलों के मानचित्र पर उभारना चाहती है। इस बारे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक मास्टर प्लान बनाना चाहते हैं। जानकारी के अनुसार तीन साल पहले केंद्र सरकार की प्रसादम योजना के तहत यमुनोत्री धाम में स्नान घाट के लिए 35 करोड़ रुपए का बजट भी जारी किया था, किंतु इस पर एक रुपए भी जिला प्रशासन खर्च नहीं कर पाया और आज भी यहां आने वाले तीर्थ यात्री खुले में बोल्डरों के सहारे यमुना जी में स्नान कर रहे हैं।
सीएम धामी ने लिया संज्ञान
सीएम धामी चाहते हैं कि यमुना घाटी के तीर्थों का विकास हो, जो उपेक्षित तीर्थ स्थान हैं उनपर सरकार और स्थानीय धार्मिक संगठन मिलकर काम करें। यमुना जी पर घाट बने, यहां नियमित रूप से आरती की जाए। बहरहाल ये माना जा रहा है यमुना घाटी के तीर्थो के विकास के लिए जल्द ही सीएम बैठक बुलाने जा रहे हैं। इस बारे में नमामि गंगे जल शक्ति मंत्रालय से भी बात की जा रही है।
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