भारत का कथित लिबरल या कहें प्रगतिशील वर्ग एक बार फिर से चर्चा में है। वह इसलिए चर्चा में है क्योंकि उसने एक बार फिर से अपनी उस गुलाम एवं औपनिवेशिक सोच का प्रदर्शन कर रहा है जिसमें प्रधानमंत्री की भाषा का मजाक उड़ाया जा रहा है। और तो और वायर के पत्रकार द्वारा तो मोदी जी को लेकर अश्लील पोस्ट्स भी साझा की जा रही हैं।
आखिर इस घृणा का कारण क्या है? सबसे पहले बात अंग्रेजी की ! क्या अंग्रेजी को कुशलता से बोलना ही एकमात्र ऐसी योग्यता है जिस पर विमर्श होना चाहिए या फिर जिसे श्रेष्ठता का पैमाना माना जाना चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि अंग्रेजी एक औपनिवेशिक भाषा है और महात्मा गांधी भी अंग्रेजी की इस भाषाई गुलामी के पक्ष में नहीं थे। उनका भी यही कहना था कि अपनी ही भाषा में बात अच्छी तरह से कही जा सकती है।
परन्तु आज महात्मा गांधी की विरासत पर दावा करने वाले लोग भारत के प्रधानमंत्री का इस कारण उपहास उड़ा रहे हैं कि उनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वीडियो को लेकर कांग्रेस के twitter हैंडल भी उपहास उड़ा रहे हैं कि इंग्लिश ऐसी बोलो कि चार लोग कान बंद कर लें!
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर कांग्रेस को अंग्रेजी भाषा से इतना प्रेम और भारतीयता से इतनी घृणा क्यों है ? वह कांग्रेस जो बार-बार खुद को ही भारत का अघोषित शासक मानती है, वह एक ऐसे व्यक्ति का महाशक्ति कहे जाने वाले देश अमेरिका में आदर और सम्मान सहन नहीं कर पा रही है, जो एक बेहद सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए हैं ? प्रधानमंत्री मोदी की साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि पर कांग्रेस लगातार प्रहार करती रहती है। कांग्रेस का तो राजनीतिक कारण हैं, परन्तु भारत की कथित बात करने वाले लिबरल या कथित प्रगतिशील लोग क्यों हिन्दी को लेकर इस सीमा तक आत्महीनता से भरे हैं कि उन्हें विदेशी लहजे में ही अंग्रेजी चाहिए ?
अंग्रेजी मात्र एक भाषा है, जिसका कार्य भावों का सम्प्रेषण करना है। हर भाषा का कार्य भावों का सम्प्रेषण करना ही होता है एवं यह भी सत्य है कि व्यक्ति अपनी भाषा में ही भावों का सम्प्रेषण कुशलता से कर सकता है।
यही कारण है कि महात्मा गांधी बार-बार अपनी भाषा में बात करने पर जोर देते थे और अंग्रेजी के गौरव को एक प्रकार की गुलामी ही बताते थे।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या कांग्रेस अभी भी अपनी उसी मानसिकता का शिकार है जिसे लेकर उसकी स्थापना ए.ओ. ह्यूम ने की थी ? क्या वह अपनी पहचान अभी तक ए.ओ. ह्यूम के साथ ही जोड़ती है कि उसके संस्थापक अंग्रेज ही थे, उसके मालिक दक्ष अंग्रेजी बोलने वाले ही हैं।
भाषा का मूल उद्देश्य सम्प्रेषण करना ही है और मोदी जी ने अपने भावों का सम्प्रेषण कितनी कुशलता पूर्वक किया, वह उनके संबोधन के बाद और उसके मध्य तालियों की गड़गड़ाहट से पता चला ही है। मोदी जी ने उस भारतीय अंग्रेजी को बोला, जिसे लेकर हर भारतीय उनसे कनेक्ट होता है। उनके हाव-भाव में वही स्वाभाविकता थी जो एक जड़ों से जुड़े भारतीय में होती है, उनमें वह अंग्रेजपन या परायापन या औपनिवेशिक सोच नहीं थी, जो राहुल गांधी या सोनिया गांधी की अंग्रेजी में झलकती है।
भाषा की निरर्थक दक्षता ही योग्यता की पहचान नहीं होती, बल्कि कार्यकारी भाषा में अपने उद्देश्यों को संप्रेषित करना ही भाषा या कथनों की सफलता है।
खैर ! यह तो केवल कांग्रेस है, जो राजनीतिक कारणों से ऐसा कर सकती है, परन्तु कथित लिबरल पत्रकार, जो निष्पक्ष होने का दंभ पाले रहते हैं, वह जो करते हैं, वह अत्यंत शर्मनाक है। प्रधानमंत्री जब अपने अमेरिका के दौरे पर थे, तो उन्हें लेकर विवादास्पद पोर्टल द वायर के पत्रकार रवि नायर ने प्रधानमंत्री मोदी की आपत्तिजनक और मॉर्फ की गयी तस्वीरें साझा करते हुए ट्वीट किया कि यह ट्वीट डिलीट नहीं किया जाएगा।
यदि रवि नायर की वाल पर दृष्टि डाली जाए तो यह पता चलेगा कि वह किस सीमा तक भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी के प्रति घृणा से भरा हुआ है। उसके कुछ ट्वीट्स से पता चलता है कि उसके दिल में वही कुंठा है, जो खुद को लिबरल मानने वाले कथित पत्रकारों के दिल में होती है, जो भर मूल्य पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपमान होते देखना चाहते हैं।
और यह घृणा और कुंठा इसलिए भी और अधिक गहरी है कि लगातार कई वर्षों से नरेंद्र मोदी के विरुद्ध अभियान चलाते रहने के बाद भी वह अजेय रहे हैं। गुजरात में भी और केंद्र में भी। तो क्या यह इन कथित पत्रकारों की सुपारी पत्रकारिता की कुंठा है जिसके माध्यम से वह भी उसी औपनिवेशिक मानसिकता के गुलाम हैं कि कोई भारतीय साधारण घर का व्यक्ति प्रधानमंत्री कैसे बन सकता है ?
प्रधानमंत्री तो ऐसा कोई होना चाहिए था, जो अंग्रेजों जैसा दिखे, जो अंग्रेजों जैसी अंग्रेजी बोले और जो भारत की भारतीयता का विरोधी हो एवं जिसके लिए भारत का इतिहास मध्य काल से ही आरम्भ हो और जिसके लिए भारत की बात करना, हिन्दी की बात करना गुनाह हो !
रवि नायर का वह ट्वीट, जिसका खंडन twitter पर कई लोगों ने किया, वह अभी तक है।
क्या वह इसलिए है जिससे कि कोई भी कदम उठाए जाने पर इस बात का रोना रोया जा सके कि भारत में सरकार की निंदा करने पर जेल भेजा जा सकता है या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है।
परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ देश के प्रधानमंत्री का विदेश की धरती पर अपमान करना या अपमान करने की चाह होता है ? भारत का कथित विपक्ष एवं कथित लिबरल वर्ग इस सीमा तक सरकार के प्रति कुंठित है कि वह भारत के प्रधानमंत्री के हर कदम का अपमान करता है, निंदा करता है एवं यदि इल्हान ओमर या बराक हुसैन ओबामा जैसे भारत के विषय में कुछ कहते हैं, तो वह ताली बजाते हैं, प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
ऐसे एक नहीं कई हैं। जब बराक ओबामा ने भारत के प्रधानमंत्री को लेकर यह टिप्पणी की थी कि यदि वह बात करते तो भारत में मुस्लिमों की स्थिति पर बात करते। इस बात को लेकर रोहिणी सिंह ने ट्वीट किया था कि क्या बराक ओबामा पर कोई एफआईआर गुवाहाटी में फाइल की गयी ?
दरअसल यह असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सर्मा पर किया गया तंज था, क्योंकि हिमंत जिस प्रकार से अवैध शरणार्थियों के प्रति कदम उठा रहे हैं और कट्टरता पर कदम उठा रहे हैं, उससे यह कथित पत्रकार बहुत परेशान रहते हैं। इस पर असम के मुख्यमंत्री ने उत्तर दिया था कि भारत में एक नहीं कई हुसैन ओबामा हैं। हमें वाशिंगटन जाने से पहले यहीं पर प्राथमिकता देनी चाहिए। असम पुलिस अपनी प्राथमिकता के अनुसार कदम उठाएगी।
इसे लेकर एक बार फिर से लिबरल लॉबी की कुंठा चरम पर पहुंच चुकी है और टीम साथ से लेकर जुबैर तक सब असम के मुख्यमंत्री को कोस रहे हैं और उन पर निशाना साध रहे हैं।
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत का विपक्ष एवं कथित लिबरल वर्ग अभी तक औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर नहीं आ पाए हैं और अभी भी वह भारत को अंग्रेजी, मध्यकाल आदि के चश्में से ही देखते हैं।
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