इस इलाके में आसानी से प्रवेश करने की अनुमति के बदले में ये रोहिंग्या क्या दे रहे थे? वास्तव में यहां से पूर्वोत्तर में सक्रिय चर्च की भूमिका अहम हो जाती है।
लगभग डेढ़ महीने से यानी मई की शुरुआत से ही मणिपुर में जातीय संघर्ष चला आ रहा है, जिससे बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं, लोग घायल और विस्थापित हुए हैं। मई के पहले सप्ताह में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने पर विचार करने के कदम के विरोध में जनजातीय कुकी समुदाय की एक रैली के बाद हिंसा फैली।
3 मई, 2023 की यह रैली मणिपुर के सभी पहाड़ी जिलों में निकाली गई थी। इसके बाद सुनियोजित ढंग से मणिपुर के व्यापक क्षेत्रों में फैलती गई। हिंसा प्रभावित मुख्य इलाके हैं- तोरबंग बांग्ला, चुराचांदपुर में तोरबंग गोविनपुर, कांगवई, फौगाकचौ इखाई, इंफाल पूर्व के पुखाओ, इकोउ, दोलाईथाबी, लितानपोकपी, यिंगांगपोकपी, नोंगशुम और मोइरंगपुरेल गांव, सेनजाम चिरांग, कडांगबैंड, लैरेन साजिक, फुमलौ, टेराखोंगशांगबी, ट्रोंगलाओबी, नगंगखलावई, थम्नापोकपी, नारानसेना, सुनुसिपाई, इथम मोइरांग प्योरल, ईशिंगथेम्बी, सगोलमांग, सपोरमीना, लीमातक, लैरोचिंग, कांगपोकपी में सैकुल, कुम्बी ए/सी में हाओतक ताम्फा कुनौ गांव और बिशेमपुर जिले में वाथलांबी गांव। चुराचांदपुर, कांगपोकपी व तेंगनौपाल जिलों के सभी मैतेई बसावट वाले क्षेत्रों, गांवों, पहाड़ी और घाटी जिलों के आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।
2007 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मणिपुर की पहाड़ियों के जंगलों में लगभग 2000 एकड़ क्षेत्र में अफीम की खेती होती थी। 2013 में प्रकाशित संशोधित रिपोर्ट में 19,000 एकड़ पहाड़ी क्षेत्र में अफीम की खेती की बात कही गई।
मणिपुर की वास्तविक समस्या न केवल बहुत उलझी हुई है, बल्कि उसकी जड़ें भी बहुत गहरी हैं। इसके लिए इसकी पृष्ठभूमि में जाना होगा। मणिपुर में 2 मुख्य जातियां हैं। मैतेई, जो अधिकांशत: हिंदू हैं। 10-15 प्रतिशत मैतेई ईसाई तथा मुस्लिम भी हैं और 55-60 प्रतिशत होने के नाते बहुसंख्यक कहे जाते हैं। दूसरा बड़ा समुदाय कुकी जाति का है, जो लगभग सभी ईसाई हैं और 40 प्रतिशत होने के नाते अल्पसंख्यक कहे जाते हैं। मैतेई घाटी में रहते हैं, जिनमें राजधानी इंफाल भी शामिल है। घाटी मणिपुर का मात्र 20-25 प्रतिशत भू-क्षेत्र है। कुकी बहुत विकसित जनजाति है। इनकी लगभग शत-प्रतिशत बसावट पहाड़ियों पर है जो मणिपुर का 75-80 प्रतिशत भूमि क्षेत्र है। हालांकि अब घाटी और मैदानी क्षेत्रों में भी कुकी रहने लगे हैं।
विवाद का एक स्रोत जनसंख्या और जमीन का असंतुलन है। 60 प्रतिशत मैतेई जनसंख्या 20-25 प्रतिशत भूमि क्षेत्र में रह रही है, जबकि 40 प्रतिशत कुकी जनसंख्या 75-80 प्रतिशत भूमि क्षेत्र पर रह रही है। इस कारण राज्य सरकार ने मैतेई समुदाय की अनुसूचित स्थिति में परिवर्तन पर विचार करने की बात कही। जब तक मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दिया जाता, उन्हें पहाड़ियों में जमीन खरीदने और बसने की पात्रता नहीं मिल सकती है। कानून के अनुसार, केवल अनुसूचित जनजातियां ही पहाड़ियों में बस सकती हैं।
टकराव का दूसरा पहलू नौकरियों से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता है, जैसा कि आम तौर पर समझा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि मात्र 30 लाख जनसंख्या वाले मणिपुर में 1000 से अधिक सरकारी नौकरियां नहीं होंगी और उनके लिए भी कुकी और मैतेई प्रतिस्पर्धा करनी होगी। भूमि के अलावा अन्य वास्तविक कारण थोड़े जटिल हैं। इनमें ड्रग्स, पोस्त की खेती, हथियार, म्यांमार में ईसाई विद्रोह, पूर्वोत्तर में चर्च की भूमिका, चीन, रोहिंग्या, मणिपुर-म्यांमार-लाओस-कंबोडिया-थाईलैंड का ड्रग व्यापार जैसे उलझे हुए मामले शामिल हैं।
मादक पदार्थों के उत्पादन का विश्व का सबसे बड़ा केंद्र पहले मेक्सिको, मध्य और दक्षिण अमेरिका था। 1990 के दशक में यह केंद्र अफगानिस्तान-पाकिस्तान हो गया। खुफिया सूत्रों के अनुसार, मणिपुर-नागालैंड-म्यांमार के ईसाई गठजोड़ की कोशिश है कि मादक द्रव्यों के उत्पादन और कारोबार का वैश्विक केंद्र मणिपुर-नागालैंड-म्यांमार के पहाड़ हो जाएं। म्यांमार-थाईलैंड-लाओस-कंबोडिया में होने वाले ड्रग्स उत्पादन को यूरोप और अमेरिका के बाजारों तक पहुंचने के लिए जिस रास्ते की तलाश हो सकती है, मणिपुर उसमें अहम हो सकता है। यह आश्चर्य की बात हो सकती है, क्योंकि भारत इन सभी देशों से भूमि मार्ग से जुड़ा हुआ है।
2007 में खुफिया सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी कि मणिपुर की पहाड़ियों के जंगलों में लगभग 2000 एकड़ भूमि का उपयोग पोस्त (अफीम) की खेती के लिए किया जा रहा था। 2013 में फिर संशोधित रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें बताया गया कि 19,000 एकड़ के पहाड़ी जंगलों में पोस्त की खेती की जा रही है। संयोग से दोनों रिपोर्ट संप्रग-1 और संप्रग-2 के शासनकाल में आई थीं। स्थिति और अधिक जटिल इस कारण हो जाती है कि म्यांमार के रखाइन प्रांत से रोहिंग्या 360 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा के माध्यम से भारत में प्रवेश कर रहे थे, जो मूल रूप से कुकी नियंत्रित पहाड़ी क्षेत्र में पड़ती है।
इस इलाके में आसानी से प्रवेश करने की अनुमति के बदले में ये रोहिंग्या क्या दे रहे थे? वास्तव में यहां से पूर्वोत्तर में सक्रिय चर्च की भूमिका अहम हो जाती है। कुकी क्षेत्र में मौजूद चर्च से संबंधित ड्रग माफिया को ड्रग उत्पादों को लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड और म्यांमार से बाहर निकलने के मार्गों तक ले जाने के लिए ड्रग्स ढोने वालों की जरूरत होती है, जिन्हें ‘ड्रग म्यूल्स’ कहा जाता है। बदले में चर्च समर्थित कुकी ड्रग माफिया उनके (रोहिंग्या) परिवारों को म्यांमार-मणिपुर-नागालैंड की खुली सीमाओं से भारत में सुरक्षित प्रवेश करने देता है। यही स्थिति नागालैंड में ईसाई नागा ड्रग माफिया की है, जिसका नगालैंड में पोस्त की खेती और नशीली दवाओं के व्यापार पर शत-प्रतिशत नियंत्रण है। नागालैंड की भी म्यांमार के साथ खुली सीमा है।
सेना मणिपुर-म्यांमार और नागालैंड-म्यांमार सीमाओं तक पहुंच गई, जो घुसपैठ का मुख्य रास्ता है और जिसके बूते रोहिंग्याओं के साथ ईसाई कुकी और नागा ड्रग माफियाओं के बीच पारस्परिक समझौता चलता आ रहा था। यह ड्रग माफिया के लिए दम घुटने जैसी बात थी। दूसरे, पहाड़ी जंगलों में चल रहे अफीम के विशाल खेतों पर भी सेना का अंकुश लग गया। मणिपुर की वर्तमान अशांति में निहित यह सकारात्मक संकेत माना जा सकता है कि अब इन मार्गों से घुसपैठ और ड्रग्स का उत्पादन और आपूर्ति ठप्प हो गई है।
केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारें बनने के बाद दोनों राज्यों में बढ़ती नशीली दवाओं की समस्या से निपटने के लिए कार्य शुरू हुआ। मणिपुर में भाजपा के लिए अपने दम पर सरकार बनाना पहली आवश्यकता थी। यह काम होने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने मई 2022 में ‘वॉर आन ड्रग्स 2.0’ आपरेशन शुरू किया। असम राइफल्स की मदद से चले इस आपरेशन को बड़ी सफलता मिल रही थी। जानकारों का कहना है कि मैतेई को अनुसूचित जानजाति का दर्जा दिलवाना इसी आपरेशन का दूसरा चरण था, ताकि मैतेई समुदाय को पहाड़ियों में बसने के लिए सक्षम बनाया जा सके और वहां चल रही अफीम की खेती पर अंकुश रखा जा सके।
इस आपरेशन के कारण ईसाई ड्रग माफिया पहले से ही बुरी तरह घिर चुका था और दबाव में था। असम राइफल्स ने उसका जीना मुश्किल कर दिया था। ऐसे में बीरेन सिंह के इस नए कदम को ईसाई ड्रग माफिया ने युद्ध के संकेत के रूप में लिया। कुकी लोगों को भड़काया गया। यही मुख्य कारण था कि रैली के बाद हजारों कुकी घाटी में तबाही मचाने के लिए उतर पड़े। जब मैतेई ने भी उतनी ही बड़ी संख्या में जवाबी कार्रवाई की तो स्थिति बदल गई। स्थिति ऐसे बदली कि हिंसा बढ़ने पर सरकार को सेना बुलानी पड़ी। सेना तैनात होते ही केंद्र सरकार रोहिंग्या घुसपैठ पर नकेल कसने में और सक्षम हो गई।
सेना मणिपुर-म्यांमार और नागालैंड-म्यांमार सीमाओं तक पहुंच गई, जो घुसपैठ का मुख्य रास्ता है और जिसके बूते रोहिंग्याओं के साथ ईसाई कुकी और नागा ड्रग माफियाओं के बीच पारस्परिक समझौता चलता आ रहा था। यह ड्रग माफिया के लिए दम घुटने जैसी बात थी। दूसरे, पहाड़ी जंगलों में चल रहे अफीम के विशाल खेतों पर भी सेना का अंकुश लग गया। मणिपुर की वर्तमान अशांति में निहित यह सकारात्मक संकेत माना जा सकता है कि अब इन मार्गों से घुसपैठ और ड्रग्स का उत्पादन और आपूर्ति ठप्प हो गई है।
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