आईआईटी कानपुर काफी दिनों से कृत्रिम बारिश का प्रयोग करने में लगा हुआ था। फिलहाल पहला परीक्षण सफल पाया गया है। अगर यह आगे भी सफल रहा और इस पर खर्च बहुत महंगा नहीं आया है तो आने वाले दिनों में यह क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। कृषि के लिए मानसून का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। यही नहीं स्मॉग जैसे प्रदूषण को भी कृत्रिम बारिश से नियंत्रित किया जा सकेगा। उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड क्षेत्र जहां पर पानी की समस्या रहती है, वहां पर भी यह तकनीक काफी कारगर साबित हो सकती है।
कानपुर आईआईटी ने 5 हजार फीट की ऊंचाई पर कृत्रिम बारिश का ट्रायल किया। इस प्रकार के परीक्षण के लिए डीजीसीए की अनुमति काफी दिनों से नहीं मिल पा रही थी। डीजीसीए की अनुमति मिल जाने के बाद आईआईटी ने एक विमान को 5 हजार फीट की ऊंचाई पर भेज कर इस कृत्रिम बारिश का परीक्षण किया। विमान आईआईटी परिसर के ऊपर ही चक्कर लगा रहा था। कहा यह भी जा रहा है कि जिस समय परीक्षण किया गया उस समय बारिश का मौसम था इसलिए वैज्ञानिक इस परीक्षण से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं।
आईआईटी कानपुर में क्लाउड सीडिंग का यह प्रोजेक्ट वर्ष 2017 से चल रहा है। कोरोना में लॉकडाउन हो जाने के बाद इस प्रोजेक्ट पर काम रुक गया था था। कोरोना के बाद फिर से इस प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू हुआ। एयरक्राफ्ट में लगी डिवाइस की मदद से सिल्वर आयोडाइड, सूखी बर्फ, साधारण नमक से मिले हुए केमिकल का फायर किया गया। यह प्रोजेक्ट आईआईटी कानपुर के प्रोफ़ेसर मणींद्र अग्रवाल की देख रेख में किया जा रहा है। प्रोफ़ेसर अग्रवाल का कहना है कि विमान के पंखों में एक डिवाइस लगाई गई है, जिससे केमिकल का छिड़काव आसपास के इलाकों में किया गया था, लेकिन बादलों के भीतर क्लाउड सीडिंग नहीं हो पाई। आगे क्लाउड सीडिंग का कार्य किया जाएगा। फिलहाल परीक्षण सफल रहा।
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