शिया कहते हैं कि उन पर बहुत जुल्म हुआ। लेकिन वह जुल्म नहीं, बल्कि सत्ता के उत्तराधिकार के लिए उनकी वर्चस्व की लड़ाई थी। शियाओं ने तो ईरान में पारसियों पर जुल्म ढाए, उन्हें उनके देश से भागने पर मजबूर किया। भागते समय रेगिस्तान में न जाने उनके कितने बच्चे प्यास से मरे होंगे, कितने सिर तलवार की नोक पर घुमाया गए होंगे।
जो आक्रामक होता है, वह जिस धारणा को चाहे उसे भीड़ की धारणा बना देता है। सदियों से शिया अपनी छाती पीटते आ रहे हैं हर साल, क्योंकि उनके हिसाब से उनके खलीफा और उनके परिवार पर बहुत बड़ा जुल्म हुआ था और वह जुल्म क्या था?
वह जुल्म यह था कि दो व्यक्ति, जो स्वयं को एक सत्ता का उत्तराधिकारी (खलीफा) समझ रहे थे, उनकी आपस में पटरी नहीं बैठ रही थी। एक कह रहा था कि तुम मुझे अपना खलीफा मान कर मेरे अधीन आ जाओ, लेकिन दूसरा तैयार नहीं था। फिर अगला उसके परिवार सहित सभी को खत्म कर देता है। यह सत्ता की लड़ाई की कहानी थी बस। हर दौर के इतिहास में ऐसी एक नहीं, सैकड़ों भी नहीं, हजारों-लाखों कहानियां हैं। मगर इस कहानी को इतना ज्यादा महिमामंडित किया गया कि हर दौर के लोगों ने इसे दुनिया में मानव इतिहास का सबसे बड़ा जुल्म स्वीकार कर लिया। मगर जुल्म क्या होता है, यह आप जानते हैं?
इन्हीं लोगों ने, जो अपने खलीफा पर हुए जुल्म के लिए छाती पीटते हैं, ईरान पर हमला करके वहां हजारों सालों से रह रहे पारसियों को मार-काट कर भगाना शुरू कर दिया था। और उस मार-काट और जुल्म का बहाना यह दिया गया कि ‘‘तुम पारसी आग की पूजा करते हो जो कि हराम है, इसलिए तुम या तो इस देश को छोड़ कर चले जाओ या फिर हमारा मजहब स्वीकार कर लो।’’
बेचारे पारसी अपनी जान बचा कर भागे और दुनिया के हर देश की शरण ली। ईरान, जो कि उनके पुरखों, उनके देवताओं और उनके बाप-दादाओं की धरती थी, आज वहां 9 करोड़ की जनसंख्या में सिर्फ 15 हजार पारसी ही बचे हैं और बाकी लगभग सब शिया मुसलमान हैं, जो अली के सब्र, हिम्मत और इंसानियत की कहानियां आपको सुनाते मिलेंगे और स्वयं पर हुए जुल्मों पर छाती पीटते मिलेंगे।
पारसियों का उनका देश, उनका वतन, उनकी देवभूमि सब उनसे छीन ली गई, मगर पारसियों ने रो-रो कर हर साल अपनी कौम पर हुए जुल्मों को दुनिया को नहीं बताया। इसके उलट उन्होंने जिस भी देश में शरण ली उसे अपनी देवभूमि बना लिया और उस देश को खुशहाल बनाने के साथ-साथ अपनी कौम को भी खुशहाल बनाया। बाकी लोग उनका सब कुछ छीन कर, हथिया कर भी अपनी छाती पीटते रहे और सारी उम्र छाती ही पीटेंगे।
भारत में आज 70 हजार के करीब पारसी हैं, जो दुनिया में किसी भी देश में मौजूद पारसियों की जनसंख्या से अधिक है। फिर चाहे वह जमशेद टाटा हों या आदि गोदरेज, भारत में पारसियों का इस तरह फलना-फूलना बताता है कि देश की असल मानसिकता और सर्वधर्म की नीति सदियों से कैसी रही है। जो पारसी अपने देश में रह तक नहीं पाए वे भारत में शरण लेकर कितने फले-फूले और किसी ने भी उनके मत को लेकर उनके साथ कभी कोई भेदभाव नहीं किया।
इसलिए अगर कोई छाती पीट रहा है, कोई अपने आपको दुनिया की सबसे पीड़ित कौम बता रहा है तो आप आंख बंद करके उसे मत मान लिया कीजिए, क्योंकि आक्रामक लोगों ने हर दौर में इतिहास अपने हिसाब से लिखा और धारणाएं अपने हिसाब से बनाईं।
असल छाती पीटना तो पारसियों का बनता है, क्योंकि उन पर जैसा जुल्म हुआ उसका एक प्रतिशत भी अरब के किसी एक परिवार पर नहीं हुआ होगा। जाने उनके कितने बच्चे ईरान से भारत भागते हुए रास्तों में प्यासे मारे गए होंगे और जाने उनके कितने अपनों के सरों को तलवारों की नोक पर टांग कर लोगों ने घुमाया होगा, क्योंकि उन्होंने अपना मत छोड़ने से मना कर दिया होगा।
पारसियों का उनका देश, उनका वतन, उनकी देवभूमि सब उनसे छीन ली गई, मगर पारसियों ने रो-रो कर हर साल अपनी कौम पर हुए जुल्मों को दुनिया को नहीं बताया। इसके उलट उन्होंने जिस भी देश में शरण ली उसे अपनी देवभूमि बना लिया और उस देश को खुशहाल बनाने के साथ-साथ अपनी कौम को भी खुशहाल बनाया। बाकी लोग उनका सब कुछ छीन कर, हथिया कर भी अपनी छाती पीटते रहे और सारी उम्र छाती ही पीटेंगे।
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