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साथ आएं नए भारत की नई ‘भाषाएं’

तकनीक आपके सहयोग के लिए है। तकनीक में जो भी समस्याएं रही हैं, वे सब धीरे-धीरे दूर होती जा रही हैं। तरक्की के लिए जरूरी है कि हम अपनी सोच और सीमाओं पर नियंत्रण पाएं

by बालेन्दु शर्मा दाधीच
Jun 17, 2023, 10:14 am IST
in भारत, विज्ञान और तकनीक
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1986 में भारतीय भाषाओं का इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड लेआउट आ गया था जिसे सर्वाधिक विज्ञानसम्मत माना जाता है। आज 37 साल बाद भी हममें से अधिकांश लोग या तो इसके बारे में जानते ही नहीं या फिर उसकी उपेक्षा करते हैं।

सन् 2000 में विंडोज यूनिकोड को ‘सपोर्ट’ करने लगा था। वह भाषाई दृष्टि से नवीनतम और सर्वाधिक शक्तिशाली एनकोडिंग थी। हममें से अधिकांश लोगों ने आज भी उसे पूरी तरह नहीं अपनाया है 1986 में भारतीय भाषाओं का इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड लेआउट आ गया था जिसे सर्वाधिक विज्ञानसम्मत माना जाता है। आज 37 साल बाद भी हममें से अधिकांश लोग या तो इसके बारे में जानते ही नहीं या फिर उसकी उपेक्षा करते हैं।

हिंदी सहित हमारी विभिन्न भाषाओं में फॉण्ट की कमी नहीं है, वर्तनी की जांच जैसी सुविधाएं भी मौजूद हैं, पूरी की पूरी विंडोज और आफिस को चंद मिनटों में पूरी तरह से हिंदी के इंटरफेस में बदला जा सकता है, हिंदी में खोज आसान है, स्पीच टू टेक्स्ट भी है तो टेक्स्ट टू स्पीच भी। माइक्रोसॉफ़्ट अब 16 भारतीय भाषाओं से दुनिया भर की भाषाओं के बीच दोतरफा अनुवाद की सुविधा देने लगा है।

हिंदी में एनालिटिक्स संभव है, हिंदी में डेटाबेस की कोई समस्या नहीं है, तकनीक को हिंदी में बोलकर निर्देश देना संभव है, हिंदी की बातों का अंग्रेजी में ध्वन्यांतर होने लगा है। ट्रांसलिटरेशन, लिपि परिवर्तन और फॉन्ट परिवर्तन तो मौजूद हैं ही। मुद्रित पाठ का चित्र लेकर उसे टाइप किये गये पाठ में बदलना अब आसान है। चैटजीपीटी और जेनरेटिव एआई के दूसरे अनुप्रयोग आ गये हैं जो हिंदी का समर्थन करते हैं।

तो अब तकनीकी दृष्टि से हमारे सामने कमी क्या है? लोग छिटपुट मुद्दों को ढूंढने की कोशिश करते हैं और कहते हैं कि नहीं, हिंदी में ऐसा नहीं है या वैसा नहीं है। हकीकत में हर समस्या का समाधान मौजूद है, बशर्ते हम उस समाधान को तलाशने की थोड़ी-सी तकलीफ उठाएं।

हम प्रौद्योगिकी का वैसा लाभ नहीं उठा सकेंगे जो हमारी जरूरत है और जिसके लिए प्रौद्योगिकी की ओर से स्थितियां बहुत अनुकूल हैं। यूं तो एक फिल्मी डॉयलॉग है लेकिन बात सटीक है और वह यह कि ‘डर के आगे जीत है।’ मैं तो कहूंगा कि इसके साथ आएं। नयी प्रौद्योगिकी को अपनाएं। सीखें, कौशल प्राप्त करें, दूसरों को भी प्रोत्साहित करें ताकि हम हिंदी समाज और अपनी भाषा को आधुनिक बना सकें, उसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संचार कर सकें। नया भारत बनाने के लिए उसकी भाषाओं को भी साथ आना होगा।

अनगढ़ संयुक्ताक्षरों की समस्या का भी समाधान मौजूद है तो प्रकाशन में यूनिकोड फॉन्ट के प्रयोग में भी कोई बाधा नहीं है। टाइपिंग के अनेक तरीके मौजूद हैं ही। वर्ड में चिपके हुए अक्षरों की समस्या इसलिए है क्योंकि या तो लोग चोरी के सॉफ्टवेयर का प्रयोग करते हैं या फिर ऐसे संस्करण का जो दस साल से ज्यादा पुराना है। पेजमेकर यूनिकोड में काम नहीं कर सकता क्योंकि उसका विकास विंडोज में यूनिकोड के आगमन के समय यानी 2001-02 में ही बंद हो गया था। आईटी में किसी भी सॉफ़्टवेयर की उम्र अधिकतम दस साल मानी जाती है। उसके बाद समस्याएं आना स्वाभाविक है।

तो जरा सोचिए कि हमारी तरक्की को कौन रोक रहा है? सूचना प्रौद्योगिकी तो बिल्कुल भी नहीं। कहीं हमारी सोच और सीमाएं ही तो चुनौती नहीं है? क्या हमारे बीच पर्याप्त जागरूकता और कौशल है? और प्रौद्योगिकी के प्रति मित्रतापूर्ण या सकारात्मक रुख है? तमाम नि:शुल्क प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाते हुए भी हम उनकी आलोचना ही करना अधिक पसंद करते हैं।

इस असुरक्षा बोध से आगे निकले बिना हम प्रौद्योगिकी का वैसा लाभ नहीं उठा सकेंगे जो हमारी जरूरत है और जिसके लिए प्रौद्योगिकी की ओर से स्थितियां बहुत अनुकूल हैं। यूं तो एक फिल्मी डॉयलॉग है लेकिन बात सटीक है और वह यह कि ‘डर के आगे जीत है।’ मैं तो कहूंगा कि इसके साथ आएं। नयी प्रौद्योगिकी को अपनाएं। सीखें, कौशल प्राप्त करें, दूसरों को भी प्रोत्साहित करें ताकि हम हिंदी समाज और अपनी भाषा को आधुनिक बना सकें, उसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संचार कर सकें। नया भारत बनाने के लिए उसकी भाषाओं को भी साथ आना होगा।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)

Topics: come togetherTransliterationnew 'languages' of new Indiamicrosoftवैज्ञानिक दृष्टिकोण का संचारइनस्क्रिप्ट कीबोर्ड लेआउटविंडोज यूनिकोड को ‘सपोर्ट’ट्रांसलिटरेशनलिपि परिवर्तन और फॉन्ट परिवर्तनहिंदी में एनालिटिक्सInscript keyboard layoutscript change and font changeanalytics in Hindiमाइक्रोसॉफ़्ट
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