गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस में कहा है कि जो जिस रूप में भगवान का स्मरण करता है उसी रूप में वह दिखते हैं। भारत की चेतना और यहां के मानस में रची बसी वाल्मीकि रामायण में प्रभु राम के जिस मनोहारी स्वरूप का वर्णन है, वह इस प्रकार है-
वाल्मीकि रामायण में बालकाण्ड के प्रथम सर्ग में भगवान राम के अलौकिक रूप का वर्णन है। महर्षि वाल्मीकि मुनिवर नारद जी से प्रश्न करते हैं कि मुने, इस समय इस संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला सत्यवक्ता और दृढ़प्रतिज्ञ कौन है? सदाचार से युक्त, समस्त प्राणियों का हितसाधक, विद्वान सामर्थ्यशाली और एकमात्र प्रियदर्शन (सुन्दर) पुरुष कौन है? मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कांतिमान और किसी की भी निंदा नहीं करने वाला कौन है? तथा संग्राम में कुपित होने पर किससे देवता भी डरते हैं? महर्षि वाल्मीकि की जिज्ञासा को शांत करते हुए मुनिवर नारद प्रभु राम के मनोहारी स्वरूप का वर्णन करते हैं। आप इसकी कल्पना करके देखिए, मन आनंद से भर जायेगा।
मुनिवर नारद कहते हैं – ‘इक्ष्वाकु वंशमें उत्पन्न हुए एक ऐसे पुरुष हैं, जो लोगों में राम-नाम से विख्यात हैं, वे ही मन को वश में रखने वाले, महाबलवान्, कान्तिमान्, धैर्यवान् और जितेन्द्रिय हैं। ‘वे बुद्धिमान्, नीतिज्ञ, वक्ता, शोभायमान तथा शत्रुसंहारक हैं। उनके कंधे मोटे और भुजाएँ बड़ी-बड़ी हैं। ग्रीवा शङ्खके समान और ठोढ़ी मांसल (पुष्ट) है। ‘उनकी छाती चौड़ी तथा धनुष बड़ा है, गले के नीचे की हड्डी (हँसली) मांस से छिपी हुई है। वे शत्रुओं का दमन करनेवाले हैं। भुजाएँ घुटने तक लम्बी हैं, मस्तक सुन्दर है, ललाट भव्य और चाल मनोहर है। ‘उनका शरीर मध्यम और सुडौल है, देहका रंग चिकना है। वे बड़े प्रतापी हैं। उनका वक्षःस्थल भरा हुआ है, आँखें बड़ी-बड़ी हैं। वे शोभायमान और शुभलक्षणों से सम्पन्न हैं। ‘धर्म के ज्ञाता, सत्यप्रतिज्ञ तथा प्रजाके हित- साधन में लगे रहने वाले हैं। वे यशस्वी, ज्ञानी, पवित्र, जितेन्द्रिय और मन को एकाग्र रखने वाले हैं। ‘प्रजापति के समान पालक, श्रीसम्पन्न, वैरिविध्वंसक और जीवों तथा धर्म के रक्षक हैं। ‘स्वधर्म और स्वजनों के पालक, वेद-वेदांगों के राम तत्त्ववेत्ता तथा धनुर्वेद में प्रवीण हैं। ‘वे अखिल शास्त्रों के तत्त्वज्ञ, स्मरणशक्ति से युक्त और प्रतिभा सम्पन्न हैं। अच्छे विचार और उदार हृदयवाले वे श्रीरामचन्द्रजी बातचीत करने में चतुर तथा समस्त लोकों के प्रिय हैं। ‘जैसे नदियाँ समुद्रमें मिलती हैं, उसी प्रकार सदा रामसे साधु पुरुष मिलते रहते हैं। वे सब में समान भाव रखनेवाले हैं, उनका दर्शन सदा ही प्रिय मालूम होता है। ‘सम्पूर्ण गुणों से युक्त वे श्रीरामचन्द्रजी अपनी माता कौसल्या के आनन्द बढ़ाने वाले हैं, गम्भीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालयके समान हैं। ‘वे विष्णु भगवान् के समान बलवान् हैं। उनका दर्शन चन्द्रमा के समान मनोहर प्रतीत होता है। वे क्रोध में कालाग्नि के समान और क्षमा में पृथिवी के सदृश हैं, त्याग में कुबेर और सत्य में द्वितीय धर्मराज के समान हैं।
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