कर्नाटक के पशुपालन मंत्री के. वेंकटेश ने मंत्री का पद संभालने के बाद मीडियाकर्मियों से बातचीत में गोहत्या विरोधी कानून को वापस लेने का संकेत देते हुए कहा था – ‘‘गाय क्यों नहीं काटी जा सकती?’’
कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की शुरुआत ‘प्रथम ग्रासे मक्षिकापात’ की स्थिति में हुई है। कई कैबिनेट मंत्रियों ने अपने विभागों की आधिकारिक घोषणा होने से पहले ही घोर गैरजिम्मेदारी भरी घोषणाएं करना शुरू कर दिया। कुछ मंत्री तो सुर्खियों में आने की हड़बड़ी में खुद का मजाक बनवाने की हद तक चले गए। लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस एक गहरी रणनीति के तहत भारी भ्रम और शोर का माहौल बना रही है।
कर्नाटक के पशुपालन मंत्री के. वेंकटेश ने मंत्री का पद संभालने के बाद मीडियाकर्मियों से बातचीत में गोहत्या विरोधी कानून को वापस लेने का संकेत देते हुए कहा था – ‘‘गाय क्यों नहीं काटी जा सकती?’’ उन्होंने यह भी कहा- ‘‘मौजूदा गोहत्या विरोधी कानून में भैंसों के वध का प्रावधान है, लेकिन गायों का नहीं… लेकिन गायों का वध क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इस अधिनियम की शर्तों के कारण कई किसान संकट में हैं। मैं खुद गायें पालता हूं और जब कोई गाय मर जाती है, तो उसे दफनाने के लिए परेशानी का सामना करना पड़ता है।’’ हालांकि उन्होंने तुरंत यह भी जोड़ा कि किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए एक सौहार्दपूर्ण निर्णय लिया जाएगा।
कर्नाटक में 1964 के अधिनियम के अनुसार सांड, बैल और भैंसों के वध की अनुमति थी। राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पारित ‘कर्नाटक पशुवध रोकथाम और पशु संरक्षण अधिनियम, 2020’ ने प्रतिबंध के दायरे को बढ़ा दिया। संशोधित अधिनियम ने गाय के वध पर मौजूदा प्रतिबंध में सांड, बैल और बछड़ों को भी शामिल कर दिया गया था।
इस तरह पशुपालन मंत्री के वेंकटेश ने एक ही सांस में गाय, बैल और भैंस-सबको एक सूची में रख डाला। वह वध किए जाने वाले पशुओं की सूची में गायों को शामिल करने की जल्दबाजी करते नजर आए। मंत्री की टिप्पणी पर भाजपा तुरंत विरोध में उतर आई। भाजपा के नेताओं ने पशुपालन मंत्री के इस कदम के विरोध में दो दिन के राज्यव्यापी विरोध की घोषणा कर दी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को आसन्न खतरे का आभास हो गया। उन्होंने यह कह कर लीपापोती करने की कोशिश की कि ‘इस विषय पर कोई भी निर्णय कैबिनेट में चर्चा के बाद ही होगा’।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कर्नाटक में गोवध विरोधी कानून 1964 से अस्तित्व में है। इसी तरह के कानून गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में भी पिछले 59 वर्षों से मौजूद हैं। अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, केरल और लक्षद्वीप को छोड़कर लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में संविधान के अनुच्छेद 48 के प्रावधानों के अनुसार गोहत्या पर प्रतिबंध है। कर्नाटक में 1964 के अधिनियम के अनुसार सांड, बैल और भैंसों के वध की अनुमति थी। राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पारित ‘कर्नाटक पशुवध रोकथाम और पशु संरक्षण अधिनियम, 2020’ ने प्रतिबंध के दायरे को बढ़ा दिया। संशोधित अधिनियम ने गाय के वध पर मौजूदा प्रतिबंध में सांड, बैल और बछड़ों को भी शामिल कर दिया गया था।
भाजपा के विरोध में उतरने से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कोई खास फर्क नहीं पड़ा। समाज में नाराजगी थी, शोर भी था, लेकिन सिद्धारमैया ऐसा कुछ नहीं करना चाहते थे, जिससे कांग्रेस पीछे हटती नजर आए। प्रत्यक्ष तौर पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का रवैया ‘इंतजार करो और देखो’ का है, लेकिन व्यवहार में कांग्रेस उसी मत पर कायम है, जो पशुपालन मंत्री ने दर्शाया है। हालांकि कांग्रेस दोनों तरफ भी बने रहने की कोशिश करती नजर आ रही है। सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में ही परिवहन मंत्री आर. रामलिंगारेड्डी ने पशुपालन मंत्री की टिप्पणी का खुलकर विरोध किया। रामालिंगारेड्डी ने कहा – ‘‘मैं न केवल गाय के वध के खिलाफ हूं, बल्कि पृथ्वी पर रहने वाली सभी 84 लाख प्रजातियों के वध के खिलाफ हूं, क्योंकि परमात्मा ने किसी को भी किसी अन्य जीव का वध करने का अधिकार नहीं दिया है।
सरकार का विचार ‘किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए’ इस संबंध में उपयुक्त बदलाव करने का है। भाजपा के कई नेताओं ने पशुपालन मंत्री वेंकटेश के बयान पर कड़ा ऐतराज जताया है। पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और मैसूरू के लोकसभा सांसद प्रताप सिम्हा ने पशुपालन मंत्री की आलोचना करते हुए कांग्रेस नेताओं से आह्वान किया है कि वे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले गोहत्या पर महात्मा गांधी के विचारों को पढ़ लें। इस सलाह का कांग्रेस पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह देखना होगा।
व्यक्तिगत रूप से मैं जानवरों के वध के खिलाफ हूं क्योंकि हर जीवित प्राणी को जीने का अधिकार है’’। लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि क्या वे यही बात कैबिनेट में भी रखेंगे, तो वह यह जिम्मेदारी लेने से साफ पलट गए। उन्होंने कहा – ‘‘मैंने इस विषय पर केवल अपनी राय पत्रकारों के समक्ष व्यक्त की है, और यह बात मैं कैबिनेट बैठक में नहीं कहूंगा।’’ जब उन्हें कैबिनेट बैठक में कुछ कहना ही नहीं था, तो उन्होंने मीडिया के सामने मुंह खोलने का कष्ट क्यों उठाया? जाहिर है, कांग्रेस कोई फैसला लेने के पहले व्यापक स्तर का भ्रम पैदा करने की रणनीति पर काम कर रही है।
रामालिंगारेड्डी के विपरीत शिवाजीनगर के कांग्रेस विधायक रिजवान इरशाद ने कहा है कि मौजूदा गोहत्या विरोधी अधिनियम से किसानों को काफी असुविधा हो रही है, इसलिए सरकार का विचार ‘किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए’ इस संबंध में उपयुक्त बदलाव करने का है। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि सरकार अधिनियम को पूरी तरह वापस नहीं लेगी। भाजपा के कई नेताओं ने पशुपालन मंत्री वेंकटेश के बयान पर कड़ा ऐतराज जताया है। पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और मैसूरू के लोकसभा सांसद प्रताप सिम्हा ने पशुपालन मंत्री की आलोचना करते हुए कांग्रेस नेताओं से आह्वान किया है कि वे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले गोहत्या पर महात्मा गांधी के विचारों को पढ़ लें। इस सलाह का कांग्रेस पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह देखना होगा।
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