फिलिस्तीन के जिहादी सरगनाओं पर पिछले दिनों इस्राएल ने जबरदस्त प्रहार करके उन्हें खत्म कर दिया था। उनके ठिकानों पर ढूंढकर उन्हें मार गिराया था। उसके बाद फिलिस्तीन ने इस्राएल को ‘सबक सिखाने’ की धमकियां दी थीं। मारे गए जिहादी कमांडरों के जनाजों के जलूस निकालकर इस्राएल विरोधी भावनाएं भड़काई गई थीं। फिलिस्तीन को दुनिया के कुछ ही देश मान्यता देते हैं, उसस कूटनीति संबंध रखते हैं। उनमें से एक चीन ने कल वहां के राष्ट्रपति महमूद अब्बास का बीजिंग में लाल कालीन बिछाकर स्वागत किया। आखिर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ऐसा करके दुनिया को क्या संकेत देना चाहते हैं?
चीन के राष्ट्रपति ने फिलिस्तीन के राष्ट्रपति अब्बास की आवभगत के बाद लंबी वार्ता की है। चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार, शी ने अब्बास से फिलिस्तीन की तरक्की और खुशहाली में अपना सहयोग देने की पेशकश की है। बदले में अब्बास ने जिनपिंग को अपने यहां आने का निमंत्रण दिया है।
फिलिस्तीन के राष्ट्रपति का चीन दौरा तीन दिन का है यानी वे कल अपने देश लौटेंगे। पर आखिर शी ने बीजिंग के ऐतिहासिक ग्रेट हॉल ऑफ द पीपुल में फिलिस्तीनी नेता का भव्य स्वागत किया तो क्यों? याद रहे, कम्युनिस्ट और विस्तारवादी चीन किसी भी देश के साथ संबंध बनाता है तो उसमें सिर्फ अपना दीर्घकालिक स्वार्थ देखता है।
‘शांतिदूत’ का बाना ओढ़कर जिनपिंग सिंक्यांग में उइगरों और दूसरे अल्पसंख्यक समूहों पर अपने दमन को शायद ढांप लेना चाहते हैं। लेकिन ऐसा शायद होगा नहीं, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सहित दुनियाभर के मानवाधिकार संगठनों के पास उइगरों पर चीनी कम्युनिस्ट सत्ता के दमन के दस्तावेजी सबूत हैं।
चीन की यात्रा करने वाले अरब देश के पहले नेता बने हैं अब्बास। ध्यान दें कि पिछले साल सऊदी अरब में चीन ने ईरान से अरब के सात साल पहले टूट चुके कूटनीतिक संबंध को फिर से पटरी पर लाने में विशेष भूमिका ही नहीं निभाई थी बल्कि अरब देशों के शिखर सम्मेलन में भी वह शामिल हुआ था। उससे पहले जिनपिंग रूस गए थे और वहां एक 12 सूत्रीय ‘शांति फार्मूला’ सूझाकर दुनिया में खुद को ‘शांतिदूत’ जैसा बताने की नाकाम कोशिश की थी। अब शायद जिनपिंग ने फिलिस्तीन को यह भरोसा दिलाया है कि वह इस्राएल को समझाकर शांति और विकास की राह खोजने में मदद करेगा। जिनपिंग की यह कवायद अब अब्बास को अपने ‘मोहजाल’ में लेने की ज्यादा दिखती है। गत मार्च में अब्बास ने जिनपिंग को पत्र भेजकर तीसरी बार राष्ट्रपति बनने पर बधाई भी दी थी।
जिनपिंग ने कल अपने भाषण में इस बात को रेखांकित किया कि अब्बास इस वर्ष चीन के दौरे पर आए अरब देश के पहले नेता बने हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चीन तथा फिलिस्तीन आपस में विश्वास करने तथा समर्थन देने वाले अच्छे मित्र तथा साझीदार रहे हैं। जैसा पहले बताया, चीन फिलिस्तीन मुक्ति संगठन तथा फिलिस्तीन स्टेट को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में से एक है।
जिनपिंग यह कहना भी नहीं भूले कि दुनिया में महत्वपूर्ण बदलावों तथा मध्यपूर्व की स्थिति में आए नए परिवर्तन को देखते हुए वे फिलिस्तीन के साथ समन्वय तथा सहयोग को और बढ़ाना चाहते हैं। वे उस देश के समग्र, निष्पक्ष तथा स्थाई हल के लिए काम करने को तैयार हैं। क्या दोनों नेताओं के बीच रणनीतिक साझेदारी के संबंध स्थापित करने की बात होना भविष्य की भूराजनीतिक स्थितियों की ओर संकेत है?
विशेषज्ञों के अनुसार, बेशक, चीन अपने बाजार के विस्तार और बीआरआई परियोजना पर तेजी से बढ़ने के साथ ही खुद को एक महाशक्ति के नाते स्थापित करने को बेचैन है। अमेरिका के सतर्क होकर दरवाजे बंद करने के बाद, चीन की कोशिश अफ्रीकी, मध्यएशियाई, दक्षिण एशियाई देशों पर ‘मददगार शंतिदूत’ की छवि दिखाकर, बाजार के रास्ते उनकी अर्थव्यवस्था को शिकंजे में लेना चाहता है। वह अमेरिका के बरअक्स एक गुट खड़ा करना चाहता है।
अमेरिका और भारत के बीच घटती दूरियां भी उसके लिए चिंता की वजह होंगी। ‘शांतिदूत’ का बाना ओढ़कर जिनपिंग सिंक्यांग में उइगरों और दूसरे अल्पसंख्यक समूहों पर अपने दमन को शायद ढांप लेना चाहते हैं। लेकिन ऐसा शायद होगा नहीं, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सहित दुनियाभर के मानवाधिकार संगठनों के पास उइगरों पर चीनी कम्युनिस्ट सत्ता के दमन के दस्तावेजी सबूत हैं। जो मिटाए नहीं मिट सकते।
टिप्पणियाँ