सैन फ्रांसिस्को का गोल्डन गेट ब्रिज दुनिया का सबसे लंबा और शानदार पुल माना जाता था। इसके बारे में कहा जाता था कि वह इतना लंबा है कि उसकी रंगाई-पुताई एक छोर से शुरू होकर जब तक दूसरे छोर पर पहुंचती है, तब तक पहले छोर की रंगाई फिर शुरू करने की जरूरत आन पड़ती है।
एक अरसा पहले सैन फ्रांसिस्को का गोल्डन गेट ब्रिज दुनिया का सबसे लंबा और शानदार पुल माना जाता था। इसके बारे में कहा जाता था कि वह इतना लंबा है कि उसकी रंगाई-पुताई एक छोर से शुरू होकर जब तक दूसरे छोर पर पहुंचती है, तब तक पहले छोर की रंगाई फिर शुरू करने की जरूरत आन पड़ती है। तब से अब तक भारत में भी बहुत लंबे-चौड़े खूबसूरत पुल बन चुके हैं। हावड़ा के विवेकानंद सेतु और मुम्बई के बांद्रा वर्ली सी लिंक की भव्यता दुनिया के मशहूर पुलों से किसी तरह कम नहीं है। लेकिन हमारा देश पुलनिर्माण क्षेत्र में जिस विशेषज्ञता का प्रदर्शन कर रहा है, उसका विश्व में कोई सानी नहीं है।
क्या किसी देश में कोई ऐसा पुल है, जिसका निर्माण अनवरत रूप से हो? किसी पुल के एक बड़े भाग के गिरने के कारणों की रपट कहीं उपलब्ध हो, इसके पहले ही दो सौ मीटर लंबा हिस्सा फिर गिर पड़े? गगनचुम्बी अट्टालिकाएं बनाने की कला तो कई देशों को आती है, लेकिन है कोई ऐसा देश जो पातालचुम्बी पुल बनाने की कला से परिचित हो?
अब पुल बनाना रूखी-सूखी अभियान्त्रिकता से आगे निकल कविता की कोमलता तक पहुंच गया है। मिल-जुलकर, निकट सहयोग के पावन उद्देश्य से दिशानिर्देशित होकर किसी-किसी राज्य के पीडब्ल्यूडी के चुनिंदा अभियंता और उनके संरक्षक मंत्री बहुत संवेदनशील पुल बनाने लगे हैं। ऐसे अद्भुत पुल का बड़ा हिस्सा जब अप्रैल 2022 में जलशैया पर लेटने नदी में उतरा, तो पहले बताया गया कि यह बेहद ठंडी हवाओं और तेज बरसात के कारण गिरा। वाह, प्रकृति के साथ कैसा अद्भुत तादात्म्य है। एक तरफ धरती के दुख से संतप्त आकाश आंसू बहाने लगा तो दूसरी तरफ आकाश के आंसू देखकर हमारे अतिसंवेदनशील पुल का कलेजा हिल गया।
इस सत्य से तो सब परिचित हैं कि ‘जहां सुमति तहां संपत्ति नाना’ की तरह जहां सीबीआई, तहां ईडी का आना भी एक परम्परा बन गया है। पातालचुम्बी पुलों की पड़ताल में सीबीआई को शायद आमंत्रण नहीं मिलेगा, लेकिन श्रीमान गिर्पड़े पुल के रोमांचक तमाशे में ईडी नामक बिनबुलाया मेहमान टपक पड़ा तो? क्या अनवरत गिरते रहने वाले पुल की अमर कहानी ऐसे दुखद मोड़ पर आकर समाप्त हो जाएगी?
अब ऐसी दुखभरी दास्तान बताकर प्रदेशवासियों को क्या दुखी करना? इसी संवेदना के चलते पुल के प्रारम्भिक हिस्से के ध्वस्त होने की जांच कभी दिन की रोशनी नहीं देख पायी। साल भर बाद इस नाटक के दूसरे अंक में बताया गया कि पुल निर्माण में प्रयुक्त सरिया-सीमेंट आदि की गुणवत्ता संदिग्ध थी, अत: उसे जान-बूझकर गिराया गया। इसे कहते हैं काम झटपट निपटाने की लगन। जब घटिया तरीके से बना पुल गिराना हो, तो आस-पास गुजरती नावों, स्नानार्थी आदि को सतर्क करने की क्या जरूरत? यदि यह बताया गया होता तो इस पातालचुम्बी छलांग को देखने के लिए भीड़ लग जाती। फिर भीड़ नियंत्रित करने के लिए पुलिस बुलानी पड़ती।
पुलिस उसमें व्यस्त रहती तो मद्यनिषेध भंजकों से वसूली ढीली पड़ जाती। कम गुणवत्ता वाले पुल को गिरते जो लोग मुफ्त में देखें, वे खुशकिस्मत हैं। यह अद्भुत दृश्य देखने के लिए सरकार ने टिकट जान-बूझकर नहीं लगाया। आम चुनाव दूर नहीं हैं। यह आशा करना गलत नहीं होगा कि अगले चुनाव के बाद ऐसे रोमांचक दृश्य बार-बार देखने के इच्छुक लोग मुफ्त में ऐसे वृहद् आयोजन दिखाने वाली सरकार की दरियादिली की प्रशंसा करते हुए उसे फिर चुनना चाहेंगे।
लेकिन गिर-गिरकर उठने वाले और उठ-उठकर गिरने वाले पुल निर्माण विशेषज्ञों को एक नये सरकारी चलन से परेशानी हो सकती है। नया चलन है रेल दुर्घटना में तोड़-फोड़ या अन्य अपराधी कृत्य की जांच करने के लिए सीबीआई को आमंत्रित करना। इस सत्य से तो सब परिचित हैं कि ‘जहां सुमति तहां संपत्ति नाना’ की तरह जहां सीबीआई, तहां ईडी का आना भी एक परम्परा बन गया है। पातालचुम्बी पुलों की पड़ताल में सीबीआई को शायद आमंत्रण नहीं मिलेगा, लेकिन श्रीमान गिर्पड़े पुल के रोमांचक तमाशे में ईडी नामक बिनबुलाया मेहमान टपक पड़ा तो? क्या अनवरत गिरते रहने वाले पुल की अमर कहानी ऐसे दुखद मोड़ पर आकर समाप्त हो जाएगी?
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