कल से एक सवाल भारत के कूटनीतिक गलियारों में गूंज रहा है कि पाकिस्तान के लिए रूस की हालिया मिठास भरी बातों के मायने क्या? अमेरिका और भारत की बढ़ती नजदीकियों को रूस किस नजर से देख रहा है, मोदी की आगामी अमेरिका यात्रा क्या मॉस्को के गले नहीं उतर रही है? क्या मोदी की इसी यात्रा को देखते हुए मॉस्को ने पाकिस्तान को एक विशेष वीडियो संदेश में अपना एक ‘अहम साझीदार’ बताया है? ये और इस जैसे कई सवाल तिर रहे हैं कल से। विशेषकर साउथ ब्लाक में विदेश मंत्रालय के गलियारों में जानकार पत्रकारों की बातचीत में भारत-अमेरिका, रूस-पाकिस्तान के संदर्भ सुने जा सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 21 से 24 जून तक अमेरिका की यात्रा पर रहेंगे। यह यात्रा इस मायने में ऐतिहासिक बताई जा रही है क्योंकि यह खुद राष्ट्रपति बाइडेन की पहल पर हो रही है। इस यात्रा के संदर्भ में बात करते हुए पिछले दिनों जापान में जी7 बैठक के मौके पर बाइडेन द्वारा मोदी की हदें तोड़ती लोकप्रियता को देखते हुए आटोग्राफ लेने की चुटकी मीडिया में खूब छाई रही थी। इसके साथ ही, कल रूस ने पाकिस्तान के साथ अपने कूटनीतिक संंबंधों की 75वीं सालगिरह कुछ ‘खास’ तरह से मनाई।
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रूस के विदेश मंत्री लावारोव ने इस दिन को याद करते हुए खास तौर पर वीडियो संदेश जारी किया। उसमें उन्होंने भारत से सदा शत्रुता का भाव रखने वाले पाकिस्तान के साथ अपने पुराने और ‘प्रगाढ़’ संबंधों की बात की। हैरानी की बात है कि यह वही पाकिस्तान है जिसने अफगानिस्तान में रूस के हितों को आहत करते हुए अमेरिका की जी—हुजूरी की थी।
जिस देश से भारत के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं उस रूस के विदेश मंत्री का यह संदेश क्या संकेत करता है? क्या यह भारत को आंखें तरेर कर दिखाना मात्र है? याद रहे, हफ्ते भर बाद मोदी वाशिंगटन में होंगे! तो क्या रूस का पाकिस्तान की तारीफें करना यह दिखाता है कि भारत नहीं, अब उसकी रुचि पाकिस्तान में ज्यादा है? क्या रूस अमेरिका से भारत के संबंध बढ़ने के खिलाफ है?
वीडियो में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावारोव ने न सिर्फ पाकिस्तान और रूस के संबंधों की तारीफों के पुल बांधे बल्कि पाकिस्तान के साथ संबंधों को और नजदीकी बनाने के संकेत दिए हैं। पाकिस्तान के साथ उसने आपसी सहयोग को और आगे ले जाने की वकालत की।
जिस देश से भारत के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं उस रूस के विदेश मंत्री का यह संदेश क्या संकेत करता है? क्या यह भारत को आंखें तरेर कर दिखाना मात्र है? याद रहे, हफ्ते भर बाद मोदी वाशिंगटन में होंगे! तो क्या रूस का पाकिस्तान की तारीफें करना यह दिखाता है कि भारत नहीं, अब उसकी रुचि पाकिस्तान में ज्यादा है? क्या रूस अमेरिका से भारत के संबंध बढ़ने के खिलाफ है? कुछ का तो यहां तक कहना है कि रूस का यह पैंतरा भारत को ‘धमकाने’ जैसा माना जा सकता है!
आज वैश्विक संदर्भों में भू—राजनीति को देखें तो यह आएदिन नया ही रूप लेती दिखती है। कल के कट्टर विरोधी आज एकदूसरे को गले लगाए दिखते हैं। आज कब, कौन देश किसके पाले में जा बैठेगा और किसके पाले से निकल जाएगा, कहना मुश्किल है। इसमें संदेह नहीं है कि इधर कुछ साल से रूस और पाकिस्तान के रिश्तों में नरमी आई है। लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अप्रैल 2021 में जब रूस के विदेश मंत्री लावारोव भारत आए थे। यहां से लौटते हुए वे इस्लामाबाद गए थे। तब पाकिस्तानी मीडिया बल्लियों उछलते हुए लिख रहा था कि ‘दोनों देश सालों से सुप्त रही द्विपक्षीय कूटनीति को नए सिरे से जिलाने की कोशिश कर रहे हैं। तब पाकिस्तान के साथ रूस ने कई समझौते किए थे। रूसी तेल भी पाकिस्तान को सस्ते में देने की बात आई थी। आज रूस से पाकिस्तान का तेल मिलना तो शुरू हुआ है, लेकिन उतनी छूट पर नहीं, जितनी पर भारत को मिलता है। दूसरे, रूस उसे सीधे तेल नहीं भेज रहा है।
उन दिनों नई दिल्ली में मौजूद रूसी राजदूत निकोलाई कुदाशेव से प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों ने यही सवाल किया था कि भारत से इतनी नजदीकी है तो फिर लावारोव भारत के लिए कटुता पाले पाकिस्तान क्यों गए हैं? कुदाशेव ने जवाब दिया था कि ‘भारत के साथ रूस के परंपरागत संबंधों को लेकर कोई मत भिन्नता या गलतफहमी न पाले। पाकिस्तान के साथ तो हमारा सहयोग एक सीमा तक ही है और यह स्वतंत्र संबंधों के आधार पर है।’
रूस के विदेश मंत्री ने कल अपने वीडियो संदेश में हम रूस और राष्ट्रपति पुतिन के लिए पाकिस्तानी लोगों के मन में जो सम्मान है उसकी प्रशंसा करते हैं। लावारोव ने पाकिस्तान में मौजूदा या आने वाले वक्त में चलने वाले प्रकल्पों की बात भी की। ’80 के दशक में रूस की भागीदारी से ही कराची में सबसे बड़ी स्टील मिल, पाकिस्तान स्टील मिल बनाई गई है, आदि आदि।
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भारत और रूस के संबंध प्रगाढ़ हैं और बहुत उच्च स्तर के हैं। राष्ट्रपति पुतिन प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसक हैं और दोनों की मित्रता संबंधों को नई ऊंचाइयां देती है। रूस आज से नहीं, बहुत पहले से जानता है कि अमेरिका के साथ भारत के संबंध उसके राष्ट्रीय हितों के चलते हैं और उसने कभी भारत-अमेरिका संबंधों की आलोचना नहीं की। हालांकि खुद रूस का 1990 के दशक से ही अमेरिका के साथ खट-मिट्ठा अनुभव रहा है।
लावारोव के इस रुख के संबंध में, रूस में 2018 से 2021 तक भारत के राजदूत रहे डी.बी. वेंकटेश वर्मा ने पाञ्चजन्य से विशेष बातचीत में कहा कि भारत और रूस के संबंध प्रगाढ़ हैं और बहुत उच्च स्तर के हैं। राजदूत वर्मा कहते हैं कि राष्ट्रपति पुतिन प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसक हैं और दोनों की मित्रता संबंधों को नई ऊंचाइयां देती है। रूस आज से नहीं, बहुत पहले से जानता है कि अमेरिका के साथ भारत के संबंध उसके राष्ट्रीय हितों के चलते हैं और उसने कभी भारत-अमेरिका संबंधों की आलोचना नहीं की। हालांकि खुद रूस का 1990 के दशक से ही अमेरिका के साथ खट-मिट्ठा अनुभव रहा है।
राजदूत वेंकटेश वर्मा कहते हैं कि आज रूस और अमेरिका संबंध, यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में निम्नतम स्तर पर हैं तो भी पुतिन को प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका जाना उतना नहीं अखर रहा होगा। इसलिए विदेश मंत्री लावारोव के पाकिस्तान को दिए गए संदेश को एक संकेत भले कह सकते हैं, धमकी जैसी तो यह बिल्कुल नहीं है।
वर्मा याद दिलाते हैं कि ये प्रधानमंत्री मोदी के प्रति रूस के राष्ट्रपति का भरोसा ही है जिसकी वजह से मोदी की रूस यात्रा के बाद रूस ने पाकिस्तान को शस्त्र नहीं बेचे हैं। जबकि कई अन्य देश इस्लामाबाद से शस्त्रों की बिक्रि पर समझौते कर रहे हैं। पाकिस्तान को रूस का शोधित तेल भले मिल रहा है, लेकिन भारत को तब भी उससे कम कीमत में सीधे रूस से आ रहा है। रूस जानता है कि वैश्विक राजनीति में हर देश अपने भले-बुरे की चिंता करते हुए विभिन्न देशों से संबंध रखता है। यही वजह है कि मोदी के आगामी अमेरिका दौरे के परिप्रेक्ष्य में वे भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों के लिए कोई खतरा नहीं देखते।
अमेरिका के मंत्री और सासंद खुद कह चुके हैं कि भारत और रूस के रिश्ते बहुत पुराने हैं और परस्पर हित के हैं। इसमें अमेरिका का कोई दखल हो भी नहीं सकता। लोकतांत्रिक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में कूटनीति नित नए आयाम गढ़ रही है। और भारत में तो 2014 के बाद से, विदेश संबंधों और कूटनीति ने जो ऊंचाइयां छुई हैं उसकी मिसाल दूसरी नहीं है। जो देश कभी भारत को पिछली पंक्ति का हकदार बताया करते थे वे आज भारत के बगल में बैठने को आतुर हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन का यह कहना भर भारत और मोदी के कद का खुलासा कर देता है कि अमेरिका का हर नामचिन्ह व्यक्ति मोदी के साथ भोज में बैठना चाहता है। इसलिए अगर बाइडेन मोदी के स्वागत को उत्सुक हैं तो यह स्वाभाविक ही है। ऐसे में रूस के विदेश मंत्री के पाकिस्तान के प्रति दिए गए संदेश को भारत के लिए कोई बहुत चिंताजनक बात नहीं मानना चाहिए।
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