अफगानिस्तान में अगस्त 2021 में जो हुआ, उसे दुनिया ने देखा। किस तरह काबुल की गद्दी पर बंदूकें और एके 47 लहराते तालिबान चढ़ बैठे थे। उन आतताइयों से बचने के लिए जो जहां भाग पाया, भाग निकला था। पड़ोसी देशों, पाकिस्तान और ईरान में पलायन करने वाले अफगानियों ने सोचा होगा कि दोनों ‘मुस्लिम उम्मा’ के देश हैं, वहां उनकी खूब आवभगत और देखभाल होगी। लेकिन असलियत जल्दी ही सामने आ गई। ‘उम्मा’ किसी काम नहीं आया और अफगानी शरणार्थी बोझ की तरह देखे जाने लगे। अब ईरान से आई खबर बताती है कि उस देश में अफगान शरणार्थी दोयम दर्जे के इंसानों जैसे मारे-मारे फिर रहे हैं। वहां उन्हें न नौकरियां दी जा रही हैं, न अन्य सहूलियतें ही उन्हें नसीब हैं।
अफगानिस्तान में यूं भी तालिबान का बर्बर राज है, वहां बच गए नागरिक भी बदहाल हैं। देश छोड़ कर जाने वालों की बाबत पाकिस्तान और अब ईरान से भी उनकी बदहाली की भनक लग रही है। उनकी स्थित चिंताजनक बन पड़ी है। शिया बहुल ईरान अफगान शरणार्थियों से भेदभाव करता है और उनसे ठीक बर्ताव भी नहीं होता। अफगान वहां अपनी इस्लामी ‘जाति’ और इलाकई भेदाभेद में पिसे जा रहे हैं।
अफगानिस्तान की सुप्रसिद्ध समाचार एजेंसी टोलो न्यूज ने खबर दी है कि ईरान में जा बसे अफगान शरणार्थियों की दुर्गति हो रही है, वहां उन्हें नौकरी पर रखने से कन्नी काटी जा रही है। इना ही नहीं, एजेंसी की खबर है कि वहां के प्रशासनिक अधिकारी तक उन्हें दुत्कारते हैं। ईरान में किसी तरह गुजर कर रहे अफगानिस्तानी शरणार्थियों का कहना है कि उन्हें तब भी काम नहीं दिया जाता जहां सुन्नियों और अफगानियों को प्नाथमिकता देने की बातें की जाती हैं। अफगानी किसी ‘कैटेगरी’ के लायक नहीं माने जाते। कई अफगानी तो हालात से इतने परेशान हो चले हैं कि परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने को जूझते रहते हैं। आसमान से गिर, खजूर में अटके की सी हालत हो गई है।
तालिबान प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने एक बयान जारी करके ईरान सरकार से विनती की है कि अफगानी शरणार्थियों के साथ सही तरह से बर्ताव किया जाए। तालिबान हुकूमत ईरान से लौट रहे ‘अफगान शरणार्थियों को रिहायशी जमीन देने’ की सोच रही है।
ऐसी स्थिति की सफाई देते हुए ईरान का विदेश विभाग कहता है कि अफगान शरणार्थियों की संख्या करीब 50 लाख है। ऐसे में नौकरियों की मारामारी बढ़ गई है। स्थानीय श्रम बाजार बेहद दबाव में आ गया है। यही वजह है कि अफगान शरणार्थी अपने मतलब का काम नहीं खोज पा रहे हैं। ईरान की एक मानवाधिकारकर्मी आसिफा बताती है कि अफगानियों के लिए रोजगार और रहने की जगहों की कमी बड़ा रूप लेती जा रही है। उनको वहां पहचान का संकट झेलना पड़ रहा है।
हालात इस कदर खराब हो चले हैं कि कुछ अफगानियों ने तो वतन वापसी को ही प्राथमिकता दी है। ईरान सरकार के अनुसार, तीन दिन पहले ही करीब 2,500 अफगान शरणार्थी अफगानिस्तान वापस लौट गए हैं।
उधर ईरान में अफगानियों की ऐसी स्थिति से ‘चिंतित’ तालिबान प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने एक बयान जारी करके ईरान सरकार से विनती की है कि अफगानी शरणार्थियों के साथ सही तरह से बर्ताव किया जाए। टोलो न्यूज एजेंसी एक और जानकारी देती है कि तालिबान हुकूमत ईरान से लौट रहे ‘अफगान शरणार्थियों को रिहायशी जमीन देने’ की सोच रही है।
मुजाहिद ने आगे कहा कि पड़ोसी देशों, विशेष तौर पर ईरान में अफगान शरणार्थियों से इंसानों जैसा बर्ताव किया जाना चाहिए। उन्हें उनके हक दिए जाने चाहिए। मुजाहिद के अनुसार, अफगान शरणार्थियों को निर्वासित नहीं करना चाहिए। ‘पड़ोसी और भाईचारे का बर्ताव’ करना चाहिए। यहां बता दें कि अगस्त 2021 के बाद से सबसे ज्यादा अफगान शरणार्थी पाकिस्तान में गए हैं, उसके बाद सबसे ज्यादा संख्या में ईरान में बसे हैं। इधर पीछे हजारों अफगानी ईरान जाकर बसे हैं। लेकिन जो वहां पहले से मौजूद हैं, वे ही अपमान झेलते आ रहे हैं, तिस पर और अफगानी पहुंचकर तनाव बढ़ा रहे हैं।
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