स्वस्थ व सुशिक्षित बच्चे किसी भी सभ्य व समुन्नत समाज की सबसे अनमोल धरोहर होते हैं जिनके कंधों पर राष्ट्र का उज्जवल भविष्य टिका होता है। हमारी सनातन भारतीय संस्कृति में तो बच्चों को ईश्वर की संज्ञा दी जाती है जिसकी पुष्टि करते हैं ‘बाल गोपाल’ जैसे संबोधन। बच्चों का हंसता-मुस्कुराता भोला चेहरा और उनकी निश्छल हंसी हमारी चेतना को सहज ही आह्लादित कर देता है किन्तु इसे वर्तमान युग की एक गंभीर सामजिक विडंबना ही कहा जाएगा कि हमारे समाज के एक बड़े वर्ग की जीवनशैली आज क्रूरता के हद तक इस कदर स्वार्थी व स्वकेन्द्रित हो गई है, कि बच्चों से कठोर व अमानवीय श्रम कराते उनको जरा भी हिचक-तकलीफ नहीं होती।
सुख-सुविधाओं, ऐशो-आराम और कम पूंजी में अधिक मुनाफा कमाने की चाह में ऐसे लोगों की खुदगर्ज सोच के चलते जिंदगी की दुश्वारियों के बोझ तले दबी छोटे-छोटे बच्चों की जिंदगी समय से पहले ही मुरझा जाती है। जिस उम्र में इन नन्हीं कोंपलों के चेहरों पर बेखौफ हंसी और हाथों में खिलौने व कॉपी-किताबें होनी चाहिए; वह उम्र अमीर घरों में झाडू-पोछा करने, बर्तन-कपड़ा धोने, ढाबों-होटलों में देहाड़ी करने, कल-कारखानों में खतरनाक उद्योगों में खटने और सड़क पर कचरा बीनने में स्याह हो जाती है। यही नहीं, बंधुआ मजदूरी के अलावा दुनियाभर में बड़ी संख्या में बच्चे यौन उत्पीड़न, ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ और देह व्यापार का भी शिकार हो रहे हैं। ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ के जनक कैलाश सत्यार्थी के मुताबिक नई पौध की अपराध की दुनिया में बढ़ती संलिप्तता भी इस बाल मजदूरी का सबसे खतरनाक पहलू है।
गौरतलब हो कि बाल मजदूरी आज की एक विकराल वैश्विक समस्या है। संयुक्त राष्ट्र की साल 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार आज पूरी दुनिया में अनुमानित 16 करोड़ बच्चे बाल श्रम की चपेट में हैं तथा भारत में इनकी संख्या तकरीबन दो करोड़ आंकी गई है। हर साल 12 जून को बाल श्रम के विरोध में जगरूकता फैलाने के मकसद से ‘बाल श्रम निषेध दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत 2002 में हुई थी। एक ओर आज हम दुनिया की सर्वाधिक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था हैं। इक्कीसवी सदी का अत्याधुनिक भारत आज प्रगति के पथ पर काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित कीर्तिमान हम भारतीयों को गौरवान्वित करते हैं; मगर दूसरी ओर बाल मजदूरी का अभिशाप इस सुनहरी तस्वीर का ऐसा विद्रूप पहलू है जो किसी भी संवेदनशील भारतवासी के लिए गहते शर्म की बात है। हालांकि इस बुराई के फैलने का मूल कारण हम भारतीयों की उदासीन मानसिकता है, जिसके कारण ऐसी दोषपूर्ण परिस्थितियां या तो हमें दिखाई ही नहीं देतीं या फिर हम देख कर भी उन्हें अनदेखा कर देते हैं। बात साफ है कि जब हम इस कुरीति को बड़ी सामाजिक बुराई के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे तब तक सुधार की कोशिशें रस्मअदायगी भर ही रहेंगी।
काबिलेगौर हो कि भारत सरकार द्वारा साल 1986 में बनाए गए ‘चाइल्ड लेबर एक्ट’ के तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चे से मजदूरी कराना कानूनी रूप से अपराध माना गया है। इस कानून के तहत बालश्रम को ऐसे कार्यों के रूप में परिभाषित किया गया जो एक बच्चे के सामान्य शारीरिक विकास के लिए के लिए हानिकारक हैं। मगर व्यवहारिक धरातल पर देश में इस कानून का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। कैलाश सत्यार्थी जी के अनुसार देश में बाल मजदूरी का मूल कारण गरीबी, अशिक्षा और भारतीय समाज की सामंती विचारधारा है। बेरोजगारी और उपभोक्तावादी संस्कृति के विकास के साथ सस्ते श्रम की आवश्यकता से भी देश में बालश्रम को बढ़ावा मिल रहा है। जनसंख्या वृद्धि पर रोक के प्रति असंवेदनशीलता से भी बालश्रम को बढ़ावा मिलता है। हम जब तक इन बुनियादी प्रश्नों के प्रति गंभीर नहीं होते हैं, किसी जादू की छड़ी अथवा सिर्फ कानून के भरोसे बालश्रम से देश को मुक्ति नहीं दिलाई जा सकती। तमाम ऐसे बच्चे भी हैं जिनके मां-बाप मामूली पैसों की खातिर उन्हें ऐसे ठेकेदारों के हाथों सौप देते हैं, जो इन बच्चों को पेट-आधा-पेट खाना खिलाकर उनसे होटलों, कोठियों, कारखानों में 12-16 घंटे की हाड़तोड़ मजदूरी करवाते हैं। यही नहीं, भूल-चूक हो जाने पर इन मासूमों पर हाथ उठाने से लेकर इनकी निर्मम पिटाई आमबात है। ये बाल कामगार पटाखे बनाते हैं। कालीन बुनते हैं। वेल्डिंग करते हैं। ताले और बीड़ी बनाते हैं। खेत-खलिहानों में खटते हैं। कोयले और पत्थर की खदानों से लेकर सीमेंट फैक्ट्रियों तक उनकी गुलामी की दुनिया है। इतना ही नहीं, कूड़ा बीनते हैं। गंदी थैलियां चुनते हैं, भट्ठों पर ईंट ढोकर परिवार का पेट पालते हैं। बेल्डिंग का जोखिम भरा काम करने से किसी की आंख चली जाती है तो किसी को टीबी, कैंसर हो जाता है तो किसी की जिंदगी में यौन शोषण का जहर फैल जाता है। इनसे मादक पदार्थों की तस्करी भी कराई जाती है। तकरीबन दो साल पहले दिल्ली के गांधी नगर इलाके में विगत दिनों बाल श्रम कराए जाने की शिकायत मिलने पर एक जींस बनाने वाले जाने माने चर्चित ब्रांड की कंपनी पर पड़े छापे में कई दर्जन बाल श्रमिक पकड़े गए थे। हालांकि उस कंपनी के बाहर एक बोर्ड चस्पा था जिस पर लिखा था कि इस कंपनी में बच्चों से काम नहीं कराया जाता। इस मामले ने तब मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरी थीं।
वर्ष 1980 से बाल श्रम उन्मूलन के लिए संघर्ष करने वाले नोबल पुरस्कार विजेता और भारतीय चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट कैलाश सत्यार्थी बालश्रम को मानवता के खिलाफ सबसे घृणित अपराध और कालेधन का सबसे बड़ा स्रोत मानते हैं। उनके मुताबिक बाल दासता एक बड़ी सामाजिक बुराई है, एक माइंडसेट है, निर्बल को गुलाम बनाने वाली सोच है। बाल मजदूरी कई बीमारियों की जड़ है। इसके कारण कई जिंदगियां तबाह होती हैं। बालश्रम एक संगठित अपराध है जो पैसे कमाने का जरिया बना हुआ है। यह मानव तस्करी, बाल बंधुआ मजदूरी कराने वाला नेक्सस है जो भ्रष्टाचार से भी जुड़ा हुआ है। गरीबी, लाचारी और अशिक्षा के चलते आज भी देश में बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जो बाल मजदूरी के दलदल में फंसे हुए हैं। वे कहते हैं कि हमारा समाज सुविधाभोगी व्यवस्था से त्रस्त है। बच्चे वोटर नहीं हैं, शायद इसलिए इनके मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है।
दरअसल, नौनिहालों के बचपन को बचाने और उन्हें मजदूरी के दलदल से निकालने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं बल्कि हम सबकी भी है। इसके लिए देश के हर नागरिक को बाल मजदूरी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। हम सभी की जिम्मेदारी है कि जहां भी बाल मजदूर दिखें उन्हें काम से रोककर समस्या को दूर करने का प्रयास करें तथा प्रशासन को सूचना दें। इस अभियान में हमारी भागीदारी हमारा नैतिक कर्तव्य है। इस सामाजिक बुराई के खात्मे के लिए सरकारों और समाज को मिलकर पूरी इच्छाशक्ति से जुटना होगा तभी हम अपने माथे पर लगा यह बदनुमा कलंक मिटा सकेंगे।
बालश्रम पर रोक लगाएगा “पेंसिल” पोर्टल
ज्ञात हो कि भारत में ‘बाल श्रम प्रतिबंध एवं नियमन संशोधन अधिनियम’ के तहत 14 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चों से बालश्रम कराने पर दो साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इसी तरह बालश्रम पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा “पेंसिल” नाम से एक वेब पोर्टल भी जारी किया गया है। इस पोर्टल का मकसद देश में जिला, ब्लॉक स्तर तक अपनी पहुंच सुनिश्चित कर बालश्रम पर निगरानी व इसका उन्मूलन करना है। इस पोर्टल का नाम “पेंसिल” रखने के पीछे कारण है यह कि बचपन हमेशा पेंसिल यानी शिक्षा से ही प्रारम्भ होना चाहिए। इस पोर्टल में चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम, शिकायत प्रकोष्ठ, राज्य सरकार, राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना तथा परस्पर सहयोग जैसी कई सुविधाएं दी गयी हैं। अगर आपको भी कोई बच्चा बाल श्रम करते दिखता है तो आप इसकी ऑनलाइन शिकायत कर सकते हैं। इस पोर्टल के माध्यम से कोई भी व्यक्ति देश में कही से मोबाइल के माध्यम से बाल श्रम की शिकायत कर सकता है। अगर आप भी बाल श्रम होते हुए देखते हैं तो पेंसिल पोर्टल के अलावा चाइल्ड लाइन नंबर-1098, श्रम निरीक्षक या फिर अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन पर भी इसकी शिकायत दे सकते हैं। आपका एक कदम बाल मजदूरी कर रहे बच्चों का भविष्य बर्बाद होने से बचा सकता है।
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