भोपाल। गंगा जमुना स्कूल के बाद दमोह से ही यह दूसरा खुलासा हुआ है। यहां इस बार जब एससीपीसीआर यानी राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम ”आधारशिला” का औचक निरीक्षण करने पहुंची तो हैरान रह गई। चर्च के द्वारा संचालित और बच्चों के हित में काम करने का दावा करनेवाले इस ईसाई संस्थान में हिन्दू बच्चे ”बाईबिल” पढ़ते हुए पाए गए। जब उनसे उनकी सनातन परम्पराओं के बारे में या हिन्दू रीति-रिवाज के बारे में जानना चाहा तो सिर्फ ईसाइयत के त्यौहार और बाइबिल के अलावा उन्हें कुछ नहीं पता था। इन बच्चों को कई राज्यों से लाकर यहां रखा गया है। अंदेशा है कि सभी बच्चे गरीब परिवारों से हैं, इसलिए अच्छा भोजन एवं पढ़ाई का भरोसा दिलाकर बच्चों के माता-पिता को इनके सुनहरे भविष्य का स्वप्न दिखाकर यहां रखने के लिए राजी किया गया है।
राज्य बाल आयोग की टीम अजय लाल द्वारा संचालित ईसाई संस्था के बालगृह से जुड़ी एक शिकायत आने पर यहां जांच करने पहुंची थी, इस शिकायत में बताया गया है कि बालगृह के कर्मचारी द्वारा एक बालिका को यौन प्रलोभन देने का मामला सामने आया है। इसी की जांच करने के लिए मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) के सदस्य रविवार को यहां पहुंचे थे। जहां पहुंकर जिस जांच के लिए पहुंचे वह तो एक तरफ रह गई, कई अन्य भयंकर कमियां और मतान्तरण (धर्मांतरण) के षड्यंत्र होते हुए इन दोनों सदस्यों डॉ. निवेदिता शर्मा और ओंकार सिंह को यहां मिले। इसके साथ ही इन्हें जांच में कई अन्य खामियां भी मिली हैं, जो बहुत ही आपत्तिजनक हैं। आयोग ने इन सभी पर संज्ञान लिया है। ”आधारशिला” संस्थान में पूर्व किए गए औचक निरीक्षण में भी तमाम कमियां पाई गईं थीं और केंद्रीय बाल संरक्षण आयोग(एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो स्वयं यहां आकर खामियां देखकर प्रशासन को बता गए थे। उन्होंने संबंधित आरोपितों के खिलाफ एफआइआर तक दर्ज करवा दी थी, तब फिर आज तक उन कमियों को दूर क्यों नहीं किया गया? और दर्ज एफआइआर पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
कार्रवाई पर राष्ट्रीय बाल आयोग अध्यक्ष को मिली धमकी
इस संबंध में मिली तमाम कमियों को लेकर और ”आधारशिला” की शिकायत को सभी के संज्ञान में लाने स्वयं एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो फिर से आगे आए हैं । उन्होंने रविवार को ट्वीट किया कि ”दमोह मध्यप्रदेश में मिशनरी माफिया अजय लाल द्वारा संचालित बालगृह के कर्मचारी द्वारा एक बालिका को यौन प्रलोभन देने का मामला सामने आया है, कुछ दस्तावेज मिले हैं। राज्य बाल आयोग के सदस्यों की टीम दमोह में जाँच के लिए पहुँची है। उल्लेखनीय है कि यह बाल,गृह किशोर न्याय अधिनियम की निर्धारित प्रक्रिया के अंतर्गत पंजीकृत नहीं है व पूर्व में भी एनसीपीसीआर द्वारा सरकार को बताया गया है तथा एफआइआर भी दर्ज हुई है, परंतु कतिपय सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों की कर्तव्य के प्रति आपराधिक लापरवाही का परिणाम है कि किशोरवय बालिकाएँ ग्रूमिंग एवं यौन दुराचार का शिकार हो रही हैं।”
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने फिर कहा, ”अवैध धर्मांतरण करने वालों के साथ सरकार के कर्मचारी कई स्तरों पर मिले हुए हैं। विभाग के कर्मचारियों को 20 दिन से पता था कि बच्चियों का यौन शोषण हो रहा था जो कि उन्होंने पुलिस को नहीं बताया। पूरे मामले को छिपाया गया यहाँ तक कि इस बारे में फ़ोन पर बात करने पर विभाग के कर्मचारी शालीन शर्मा ने मुझे ही कॉल रिकॉर्डिंग कर धमकाने का प्रयास किया” है।
पांच राज्यों से गैर ईसाई बच्चियों को लाकर किया जा रहा माइंडवॉश
इस संबंध में बालगृह ”आधारशिला” की जांच कर बाहर आई आयोग की टीम से इस औचक निरीक्षण के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने संस्था द्वारा अपराधिक कृत्य करने की जानकारियां दीं । डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि जब अंदर जाकर देखा तो वहां सारी बच्चियां बाईबिल पढ़ती पाई गईं। बच्चियों का पूरा नाम और पता बताना ठीक नहीं, इसलिए ज्यादातर बच्चे उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार, छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में जबलपुर और सागर के हैं।
टीचर-कर्मचारी का नहीं है पुलिस वेरिफिकेशन
”आधारशिला संस्थान”में किसी भी टीचर एवं अन्य सहयोगी कर्मचारी का पुलिस वेरिफिकेशन नहीं मिला है। ज्वाइनिंग लेटर तक किसी के पास नहीं है। जिससे पता चल सकता कि ये सभी कब से आए हैं, कहां से आए हैं। इसमें भी सबसे आश्चर्य की बात यह है कि आवश्यक शिक्षा की अर्हता, यहां तक कि बच्चों को पढ़ाने तक कि अनिवार्यता से जुड़ी कम से कम योग्यता भी ये पूरी नहीं करते हैं।
प्रथमदृष्टया दिख रहा है कि एक लम्बे समय से हिन्दू या अन्य पंथ के बच्चों को रखकर उनका माइंड वॉश किया जा रहा है। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 28 का उल्लंघन है। संविधान के हिसाब से किसी भी बच्चे को उससे जुड़ी धार्मिक प्रथाओं से इतर गैर धार्मिक प्रथाओं का अभ्यास करवाना भारत के संविधान के इस अनुच्छेद में रोका गया है।
कानूनी अनुमति नहीं, फिर भी चलता पाया गया
राज्य बाल आयोग की सदस्य ने बताया कि इस ”आधारशिला” संस्था के पास आवासीय बालगृह चलाने की कानूनी अनुमति नहीं है। इस मामले में जांच में पाया गया कि शिक्षा अधिकारी के इससे जुड़े हस्ताक्षर मिले हैं, जबकि विभाग से पूछने पर वे सभी इससे पल्ला झाड़ रहे हैं कि हमने कोई ऐसी अनुमति नहीं दी। आवासीय बालगृह संचालन की कोई परमीशन देने के नियम और अधिकार अकेले शिक्षा विभाग के पास नहीं है, खासकर बालकों के संबंध में । ऐसे में सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मिलीभगत की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
लड़का-लड़की दोनों के बालगृह एक ही जगह
यहां लड़का और लड़की दोनों के बालगृह एक ही जगह संचालित हो रहे हैं जोकि किसी भी एक्ट में स्वीकृत नहीं हैं। बालक और बालिकाओं का (गृह) निवास अलग-अलग एक निश्चित दूरी पर संचालित करने के ही शासन के निर्देश हैं और कानून भी यही कहता है, लेकिन यहां इन नियमों का सीधा उल्लंघन पाया गया है। बच्चे अपने घर नहीं जाना चाहते, माता-पिता से बात करना नहीं चाहते। उनके मनोविज्ञान को कोई समझे, क्या हालत कर दी गई है उनकी यहां पर? जिस शिकायत को लेकर जांच करने आयोग यहां आया, उस व्यक्ति को पहले ही ”आधारशिला” के प्रबंधकों ने भगा दिया है।
धर्म स्वातंत्र्य कानून का नहीं है भय
मध्य प्रदेश में धर्म स्वातंत्र्य कानून लागू है, जोकि “जबरदस्ती, बल, गलत बयानी, अनुचित प्रभाव और प्रलोभन” के साथ-ही धोखाधड़ी, या विवाह के माध्यम से कन्वर्जन पर रोक लगाता है। इसके साथ ही यह किसी व्यक्ति को ऐसे कन्वर्जन के लिए “उकसाने और साजिश रचने” से रोकता है, लेकिन यहां ईसाई कन्वर्जन में लगे लोगों को इस कानून का कोई भय नहीं दिखाई दे रहा है।
मतांतरण के खेल में पहले से लिप्त है ये संस्था
पिछले साल नवम्बर में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो दमोह पहुंचे थे। यहां उन्होंने ईसाई मिशनरियों की प्रमुख संस्थाओं की जांच की तथा बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पाए जाने पर 10 लोगों के विरुद्ध धर्मांतरण संबंधी एफआईआर दर्ज कराई थी। इन्हें लंबे समय से बाल संरक्षण आयोग को ईसाई मिशनरियों के अजय लाल, राजकमल डेविड लाल, विवर्त लाल, जेके हेनरी सहित विभिन्न लोगों द्वारा संचालित बाल छात्रावासों में अनियमितताओं एवं बच्चों का धर्मांतरण कराए जाने की सूचना मिल रही थी।
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