अंग्रेजों से पूर्व मुगल नहीं, मराठा थे भारत के शासक
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

अंग्रेजों से पूर्व मुगल नहीं, मराठा थे भारत के शासक

अक्सर कहा जाता है कि अंग्रेजों ने मुगलों से भारत की सत्ता ली थी। परंतु तथ्य बताते हैं कि उनके आने से पूर्व ही मुगलिया शासन समाप्त हो चुका था और भारत के 25 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में पेशवा नीत हिन्दवी स्वराज्य का शासन था। दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध (1803) तक दिल्ली के लालकिले पर भगवा ध्वज फहराता रहा

by प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा
Jun 16, 2023, 07:20 pm IST
in भारत, विश्लेषण
वाडगांव युद्ध के बाद अंग्रेजों का आत्मसमर्पण

वाडगांव युद्ध के बाद अंग्रेजों का आत्मसमर्पण

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिल्ली, गुजरात, मालवा, मध्यभारत, महाराष्ट्र व दक्कन के पठार के बड़े क्षेत्र में 150 से अधिक स्थानों पर शिवाजी के हिन्दवी स्वराज्य के परिसंघ की सेनाओं से कई बार युद्ध लड़ना पड़ा था। शिवाजी महाराज के 1674 में हुए राज्यारोहण व हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के बाद, 1680 में उनका देहावसान हो जाने पर पेशवाओं ने स्वराज्य के परिसंघ के भगवा ध्वज को 1758-59 तक अटक से कटक तक 25 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक लहरा दिया था।

भारत में सत्ता पाने के लिए अंग्रेजों को दिल्ली, गुजरात, मालवा, मध्यभारत, महाराष्ट्र व दक्कन के पठार के बड़े क्षेत्र में 150 से अधिक स्थानों पर शिवाजी के हिन्दवी स्वराज्य के परिसंघ की सेनाओं से कई बार युद्ध लड़ना पड़ा था। शिवाजी महाराज के 1674 में हुए राज्यारोहण व हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के बाद, 1680 में उनका देहावसान हो जाने पर पेशवाओं ने स्वराज्य के परिसंघ के भगवा ध्वज को 1758-59 तक अटक से कटक तक 25 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक लहरा दिया था। यही भगवा ध्वज दिल्ली के लाल किले पर 1788 से दूसरे मराठा अंग्रेज युद्ध 1803 तक फहराता रहा। यह 25 लाख वर्ग किमी क्षेत्र हमारे आज के 32.87 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल के तीन चौथाई से अधिक था।

प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा
पैसिफिक विश्वविद्यालय समूह (उदयपुर) के अध्यक्ष-आयोजना
व नियंत्रण

अप्रासंगिक हो गये थे मुगल
वर्ष 1764 में बक्सर के युद्ध में पराजय के बाद अंग्रेजों पर एक भी मुगलिया गोली नहीं चली थी। बक्सर में मुगलों ने युद्ध भी काशी नरेश बलवन्त सिंह, बंगाल के नवाब मीर कासिम व अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिल कर लड़ा था। बक्सर के युद्ध में हार के बाद मुगल सम्राट शाह आलम ने अंग्रेजों की शरण ले ली थी। शाह आलम द्वितीय को 1761 में मेजर केमाक बन्दी बना चुका था और 1765 से उसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने पेन्शनर बना लिया था। दिल्ली पर 1771 की दूसरी मराठा विजय के बाद 1788 से 1803 तक तो स्वराज्य का भगवा ध्वज ही फहराता रहा था।

स्वराज्य की शताब्दी
अठारहवीं सदी में 1720 में श्रीमंत बाजीराव प्रथम के पेशवा बनने से 1819 के तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध की समाप्ति तक का काल मुगलों के पूर्ण पराभव और पेशवा निर्देशित स्वराज्य के परिसंघ के वर्चस्व का काल रहा है। श्रीमंत बाजीराव के 1720 में पेशवा बनने के बाद उनकी मुगलों पर गुजरात व मालवा की विजय और बाजीराव के नेतृत्व में 1737 की दिल्ली विजय के बाद मुगल सत्ता अप्रासंगिक हो गई थी। मराठा सेनाओं की 1757 में दूसरी दिल्ली विजय से लेकर 1803 में जब तक दिल्ली के लाल किले पर उनका भगवा ध्वज फहराता रहा, वह पूरा काल स्वराज्य की मराठा सेनाओं के उत्कर्ष का काल था।

औरंगजेब की 1707 में मृत्यु के बाद और विशेषकर 1720 में पेशवा श्रीमंत बाजीराव की पेशवाई से 80 वर्षों में दिल्ली, गुजरात, मालवा, मध्यभारत, बंगाल, तिरुचिरापल्ली, पंजाब और कश्मीर व नार्थ वेस्ट फ्रंन्टियर प्राविन्स तक मुगलों व अफगानों को हराकर मराठों ने स्वराज्य का विस्तार कर लिया था। लाहौर, मुल्तान पेशावर, कश्मीर, पंजाब, नार्थ वेस्ट प्रॉविन्स और अटक आदि को मराठा सेनाओं ने अफगानी आक्रान्ता अहमद शाह अब्दाली से छीना था।

पंजाब में मराठों व सिखों ने कन्धे से कन्धा मिलाकर युद्ध जीते थे। इस मराठा परिसंघ ने 1752 में ही मुगल वजीर सफदरजंग से सन्धि कर पंजाब, सिन्ध व दोआब की चौथ (उनके राजस्व का चतुर्थांश) वसूलना आरम्भ कर अजमेर व आगरा की सूबेदारी भी ले ली थी। मराठों ने मैसूर (हैदर-टीपू की) सल्तनत, अवध के नवाब, हैदराबाद के निजाम के साथ ही बंगाल, सिन्ध, अरकोट के नवाबों और मदुरै पर भी विजय प्राप्त कर ली थी। रोहिलखण्ड के अफगानी रोहिल्ला नजीब खान को भी मराठा सेनाओं ने बन्दी बना लिया था और उसे स्वराज्य के गठबन्धन में जोड़ लिया था।

उन्होंने उसे यदि छोड़ा नहीं होता, तो पानीपत के युद्ध में पराजय की एक प्रतिशत भी सम्भावना नहीं बनती क्योंकि मुगलों, रोहिल्लाओं व अवध के नवाब की सेनाओं के भितरघात कर पीछे से आक्रमण कर देने के कारण ही मराठा सेनाओं का पराभव हुआ था। लेकिन भितरघात से हुई पानीपत के तीसरे युद्ध में इस तात्कालिक पराजय के बाद भी 1771 में उन्होंने वापस तीसरी दिल्ली विजय के बाद 1788 से 1803 तक दिल्ली के लाल किले पर अधिकार कर लिया था।

पेशवा श्रीमंत बाजीराव ने 1737 की दिल्ली विजय के साथ ही दूरदर्शितापूर्वक राजस्थान व पंजाब के शासकों सहित अवध के नवाब और रोहिलखण्ड के नजीब खान को भी स्वराज्य के परिसंघ का अंग बना लिया था। इन सभी शासकों ने स्वतंत्र शासक रहते हुए स्वराज्य के इस परिसंघ को अपने कर राजस्व का दशमांश (सरदेशमुखी) या चतुर्थांश (चौथ) देकर पेशवा के केंद्रीय नेतृत्व को स्वीकार लिया था। पेशवा बाजीराव द्वारा इन रियासतों के राजाओं को भी पूरा सम्मान दिया जाता रहा। मेवाड़ से अपनी सरदेशमुखी प्राप्त करने जब बाजीराव ससैन्य उदयपुर आये, तब भी वे महाराणा जगतसिंह के बराबर आसन पर न बैठ कर मेवाड़ राजवंश को हिन्दुआ सूरज कह कर उनके सामने जमीन पर कालीन पर बैठ गये थे।

हिन्दवी स्वराज्य का क्षेत्र 1760 में (पीले रंग में)

पानीपत के युद्ध में अब्दाली के इस्लाम मतावलम्बी होने से रोहिलखण्ड के नजीब खान, अवध का नवाब व मुगल आदि मराठाओं से हुई गठबन्धन सन्धि को तोड़ उसके साथ हो गये थे। मुगल बादशाह आलमगीर को अब्दाली द्वारा 1757 में बन्दी बना लेने पर उसे मराठा सेनाओं ने ही अपनी दूसरी दिल्ली विजय पर 17 अगस्त, 1757 को मुक्त कराया था।

इस दिल्ली विजय के बाद मराठा सेनापतियों ने अन्ताजी मानकेश्वर को दिल्ली का सर्वाधिकारी बना दिया था। उसके बाद मल्हार राव व रघुनाथ राव के नेतृत्व में पश्चिम में आगे बढ़कर 17 मार्च 1758 को सरहिन्द, 20 अप्रैल 1758 को लाहौर, और साथ ही तुकोजी होल्कर ने अटक, मुल्तान व पेशावर तक सिन्धु पार भगवा ध्वज फहरा दिया था। दुर्भाग्य से स्वराज्य के इस परिसंघ की उत्तर भारत की रियासतों ने भी अफगानी आक्रान्ता के विरुद्ध पानीपत के तीसरे युद्ध में भाग भी नहीं लिया और पेशवानीत इस स्वराज्य परिसंघ का साथ नहीं दिया।

इस परिसंघ में प्रारम्भ से जो सत्ताएं सहभागी रहीं हैं, उन्हें ही आधुनिक इतिहासकारों ने मराठा कॉन्फेडरेसी कहा है। इसमें छत्रपति व पेशवाओं के नेतृत्व में इन्दौर के होल्कर, ग्वालियर के सिन्धिया, नागपुर के भौंसले, बड़ौदा के गायकवाड़, धार-देवास के पंवार, बुन्देलखण्ड के बुन्देला प्रारम्भ से सहभागी रहे। यदि पेशवा को 1760 में पश्चिमोत्तर विजय व अब्दाली को अफगानिस्तान तक खदेड़ने के बाद दो वर्ष का भी समय मिल जाता तो वे स्वराज्य के इस सुविचारित गठबन्धन को एक स्थायित्वपूर्ण परिसंघ का स्वरूप दे सकते थे।

पानीपत के बाद मराठा उत्कर्ष
पानीपत की पराजय के बाद बालाजी बाजीराव बहुत बड़ी सेना लेकर अब्दाली को खदेड़ने पानीपत की ओर चल पड़े थे। तब अब्दाली ने 10 फरवरी, 1761 को पेशवा को पत्र लिखा कि आप ही दिल्ली पर राज करें। मैं वापस जा रहा हूं। पेशवा माधवराव द्वितीय महादजी सिंधिया और नाना फडणवीस ने पूरे उत्तर भारत में अपना प्रभाव पुन: जमा लिया था और रोहिलखंड को भी पुन: विजित किया था। तब संपूर्ण भारत पर एक बार फिर मराठों का अधिकार हो गया और उन्होंने दिल्ली में फिर से मुगल सम्राट शाह आलम को राजगद्दी पर बैठा कर पूरे भारत पर फिर से शासन करना प्रारंभ कर दिया था। दिल्ली पर 1771 में तीसरी मराठा विजय के बाद 1788-1803 तक लाल किले पर स्वराज्य का भगवा ध्वज फहराता रहा। 1803 से 1805 तक चले दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद ही अंग्रेज मराठाओं से दिल्ली ले सके थे।

बाजी पासलकर

छत्रपति शिवाजी के स्वराज्य प्राप्ति के सपने को पूरा करने के लिए पहला बलिदान देने वाले उनके सरसेनापति बाजी पासलकर थे। स्वराज्य की स्थापना और शिवाजी के राज्याभिषेक से बहुत पहले बाजी पासलकर ने बीजापुर के आदिलशाह के विरुद्ध युद्ध शुरू कर दिया था। स्वराज्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण पुरंदर के किले को हासिल करने के लिए बाजी ने उस पर हमला बोल दिया। आदिलशाह के सेनापति फत्ते खां से उनकी मुठभेड़ हुई। बाजी के पराक्रम से घबराकर भागे फत्ते खां का बाजी ने पीछा किया। कुछ दूर बाद फत्ते के साथियों ने बाजी को पकड़ लिया और उसका वध कर दिया।

 

अंग्रेजों से पेशवा सेना ने लड़े युद्ध
स्वराज्य की रक्षा हेतु 1775 से 1819 तक के तीन आंग्ल-मराठा युद्ध एवं 1843 के ग्वालियर अभियान में पेशवानीत स्वराज्य परिसंघ के अंग्रेजों से निर्णायक संघर्ष हुए। मुगल सत्ता ने तो कम्पनी का रेड-कार्पेट स्वागत किया और बादशाह शाह आलम ईस्ट इण्डिया कम्पनी के फरमानों पर मुहर लगा दिया करता था। वस्तुत: 1760 में भी दिल्ली पर अफगान आक्रान्ता अब्दाली के आक्रमण को, स्वराज्य के सेनापति सदाशिव राव भाऊ ने विफल कर दिल्ली की रक्षा की थी। दिल्ली की गद्दी से शाहजहां तृतीय को अपदस्थ कर शाह आलम द्वितीय को भी स्वराज्य के मराठा सैन्यबलों ने ही बैठाया था। तब से 1772 तक वह मराठा सेनापति महादजी सिन्धिया के संरक्षण में रहा। अंग्रेजों के विरुद्ध पेशवानीत स्वराज्य के सैन्यबल का प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध 1775 से 1782 तक चला, दूसरा युद्ध 1803 से 1805 तक चला और तीसरा युद्ध 1817 से 1819 तक चला।

वाडगांव का मराठों का विजय स्तम्भ

इस प्रकार देश के सभी प्रमुख भागों में स्वाधीनता के लिए सारे प्रमुख युद्ध स्वराज्य की पेशवानीत मराठा सेनाओं ने ही लड़े थे। यदि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के स्थान पर पेशवा के नेतृत्व में लड़ा गया होता तो परिणाम अलग ही होता। दिल्ली पर 1771 की तीसरी मराठा विजय के बाद से मुगलों को देश में सामरिक व राजनीतिक शक्ति केन्द्रों का कोई अनुभव नहीं था। 11 अगस्त, 1757 को दिल्ली पर दूसरी मराठा विजय के बाद तो पूरे व अखण्ड भारत के सबसे बड़े क्षेत्रफल पर मराठा सत्ता का नियन्त्रण था।

यदि पानीपत के युद्ध में स्वराज्य के गठबन्धन की उत्तर भारत की रियासतों ने मराठों की इस पेशवानीत केन्द्रीय सत्ता का साथ दिया होता तो आज म्यांमार से अफगानिस्तान तक एक अखण्ड भारत होता। यदि गठबन्धन के सहभागी राज्यों ने उनकी खाद्य व ऊनी वस्त्रों की आवश्यकताओं की आपूर्ति भी कर दी होती, तब भी आज वैसा ही अखण्ड भारत होता। यदि यह आपूर्ति हुई होती तो 14 जनवरी, 1761 की उस कड़ाके की सर्दी में स्वराज्य की मराठा सेना को भूखे पेट व बिना ऊनी वस्त्रों के नहीं लड़ना पड़ता। तब भी सायंकाल के पहले मराठा सेनाएं जीत रही थीं। लेकिन सर्दी बढ़ने से उनका पराक्रम शिथिल हो गया।

येसाजी कंक

शिवाजी की सेना में सेनापति येसाजी कंक की स्वामिनिष्ठा का अनुमान इस बात से किया जा सकता है कि उन्होंने 30 वर्ष स्वराज्य की सेना को दिये पर 20 दिन भी अपने घर नहीं गये। येसाजी के पराक्रम का उदाहरण हैदराबाद के कुतुबशाह के दरबार में दिखता है, जब कुतुब शाह ने शिवाजी पर सेना में हाथी न होने पर तंज कसा। तब दुबले-पतले साढ़े पांच फुट के येसाजी कंक ने कुतुबशाह के हाथी से मुकाबला किया और उसकी सूंड को काटकर उसे जमीन पर गिरा दिया। कुतुबशाह ने येसाजी को अपनी सेना के लिए मांगा, परंतु येसाजी ने इनकार कर दिया।

मराठा उदारता की कीमत
पानीपत के तीसरे युद्ध के अन्त में अफगान सेना, मुगलों, रोहिल्लाओं और अवध के नवाब के सैनिकों ने युद्ध के बाद बचे सभी मराठा सैनिकों व नागरिकों का कत्ल कर दिया था। दूसरी ओर प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध में वाडगांव के जनवरी 1779 के युद्ध में ब्रिटिश आत्मसमर्पण के बाद स्वराज्य के सैन्यबल द्वारा पूरी ब्रिटिश सेना को छोड़ देने से ही ब्रिटिश सैन्यबल 15 फरवरी 1779 को अमदाबाद, 4 अगस्त 1779 को ग्वालियर और 11 दिसम्बर को वसई पर कब्जा कर सका था। यदि ब्रिटिश सेना छोड़ी नहीं गयी होती तो स्वराज्य का भगवा ध्वज 1788 से 1803 तक लाल किले पर फहराता था वह आज तक अक्षुण्ण रह सकता था।

इस प्रकार अंग्रेजों के आगमन के पूर्व देश के सर्वाधिक क्षेत्रफल पर पेशवानीत हिन्दवी स्वराज्य के परिसंघ का साम्राज्य था। दिल्ली पर 1757 की दूसरी मराठा विजय के बाद पूरे देश में मुगल सत्ता अस्तित्वहीन सी हो गई थी। शिवाजी के बाल्यकाल में तो पूरे दक्षिण भारत में बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर व दक्षिण के मुगल परगनों में सभी विदेशी मुस्लिम शासक थे। शिवाजी महाराज के 1674 में राज्याभिषेक के बाद 1680 में उनकी मृत्यु तक दक्षिण के भी तीन राज्यों के 6-7 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर स्वराज्य की स्थापना हो गई थी। उसके बाद भारत में अंग्रेजों के आगमन के पूर्व पेशवानीत हिन्दवी स्वराज्य के परिसंघ का साम्राज्य ही वैध, विधि-सम्मत व धरातल पर वास्तविक प्रभावयुक्त शासन था।

सूर्यजी काकड़े

सूर्यजी काकड़े शिवाजी के बचपन के मित्र और मराठा सरदार थे। फरवरी, 1672 में मराठा और मुगल साम्राज्य के बीच नासिक जिले के पास सल्हेर की निर्णायक लड़ाई हुई। सल्हेर किले के महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों पर मुख्य किला होने से इसका सामरिक महत्व था। एक दिन के इस युद्ध में दोनों पक्षों के करीब 10,000 सैनिक मारे गये। मराठों के पराक्रम के सामने हजारों मुगल सैनिक भाग खड़े हुए। इसी युद्ध में वीरता से लड़ते हुए सूर्यजी काकड़े जाम्बुराक तोप के हमले में मारे गये थे। इस युद्ध में पहली बार मराठों ने मुगलों को मात दी थी।

Topics: Marathas after PanipatEast India CompanyAnglo-Maratha Warहिन्दवी स्वराज्यPeshwa army fought with British WarमालवाMughal Emperor Shahमध्यभारतभारत में मुगलमहाराष्ट्र व दक्कन के पठारस्वराज्य की शताब्दीपानीपत के बाद मराठाआंग्ल-मराठा युद्धनवाब शुजाउद्दौलाबक्सर के युद्ध में हारईस्ट इण्डिया कम्पनी
Share1TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले

स्वाभिमान और स्वावलंबन का प्रतीक ‘भारत’

नर्मदा साहित्य मंथन के उद्घाटन सत्र में श्री सुरेश सोनी को प्रतीक चिह्न भेंट करते कार्यकर्ता

‘विचार के माध्यम से आचार पुष्ट करना आवश्यक’

नदियां जुड़ेंगी, आएगी खुशहाली

ऐ नेताजी! कौन जात हो?

बदल गए विधान, सबकी जवाबदेही तय

टूटता और बनता रहा मंदिर

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

शाहिद खट्टर ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

मोदी का नाम लेने से कांपते हैं, पाक सांसद ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

ऑपरेशन सिंदूर पर बोले शशि थरूर– भारत दे रहा सही जवाब, पाकिस्तान बन चुका है आतंकी पनाहगार

ड्रोन हमले

पाकिस्तान ने किया सेना के आयुध भण्डार पर हमले का प्रयास, सेना ने किया नाकाम

रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब कुछ शेष नहीं: भारत इन्‍हें जल्‍द बाहर निकाले

Pahalgam terror attack

सांबा में पाकिस्तानी घुसपैठ की कोशिश नाकाम, बीएसएफ ने 7 आतंकियों को मार गिराया

S-400 Sudarshan Chakra

S-400: दुश्मनों से निपटने के लिए भारत का सुदर्शन चक्र ही काफी! एक बार में छोड़ता है 72 मिसाइल, पाक हुआ दंग

भारत में सिर्फ भारतीयों को रहने का अधिकार, रोहिंग्या मुसलमान वापस जाएं- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

शहबाज शरीफ

भारत से तनाव के बीच बुरी तरह फंसा पाकिस्तान, दो दिन में ही दुनिया के सामने फैलाया भीख का कटोरा

जनरल मुनीर को कथित तौर पर किसी अज्ञात स्थान पर रखा गया है

जिन्ना के देश का फौजी कमांडर ‘लापता’, उसे हिरासत में लेने की खबर ने मचाई अफरातफरी

बलूचिस्तान ने कर दिया स्वतंत्र होने का दावा, पाकिस्तान के उड़ गए तोते, अंतरिम सरकार की घोषणा जल्द

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies