महाराष्ट्र सहित देशभर में इस निमित्त अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस पावन अवसर पर छत्रपति शिवाजी महाराज का पुण्य स्मरण करते हुए स्वयंसेवकों तथा सभी समाज घटकों का आह्वान करता है कि ऐसे सभी आयोजनों में भाग लेकर हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना जैसी युगप्रवर्तक घटना का पुन:स्मरण करें।
छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के उन महान व्यक्तित्वों में से एक हैं, जिन्होंने समाज को सैकड़ों वर्षों की दासता की मानसिकता से मुक्त कर उसमें आत्मविश्वास व आत्मगौरव का भाव जगाया। ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को उनका राज्याभिषेक हुआ तथा ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना हुई। इस वर्ष हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350वां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है।
महाराष्ट्र सहित देशभर में इस निमित्त अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस पावन अवसर पर छत्रपति शिवाजी महाराज का पुण्य स्मरण करते हुए स्वयंसेवकों तथा सभी समाज घटकों का आह्वान करता है कि ऐसे सभी आयोजनों में भाग लेकर हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना जैसी युगप्रवर्तक घटना का पुन:स्मरण करें।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अद्वितीय पराक्रम, रणनीतिक कुशलता, युद्धशास्त्र की मर्मज्ञता, संवेदनशीलता, न्यायपूर्ण व पक्षपातरहित प्रशासन, नारी का सम्मान, प्रखर हिंदुत्व जैसी कई विशेषताओं से परिपूर्ण रहा। विपरीत परिस्थिति का सामना करते समय भी अपने ध्येय तथा ईश्वर पर श्रद्धा व विश्वास, माता-पिता एवं गुरुजनों का सम्मान, अपने साथियों के सुख-दु:ख में साथ निभाने, समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने के कई उदाहरण उनके जीवन में पाये जाते हैं।
बाल्यकाल से ही अपने व्यक्तित्व से उन्होंने अपने साथियों में स्वराज्य स्थापना हेतु प्राण न्योछावर करने की प्रेरणा जगाई, जो आगे चलकर भारत के अन्यान्य प्रदेशों के देशभक्तों के लिए भी प्रेरणादायक रही। उनके शरीर के शांत होने के पश्चात् भी सामान्य समाज ने दशकों तक एक सर्वंकष आक्रमण का यशस्वी प्रतिकार किया, जो इतिहास में अनोखा उदहारण है।
आज भारत अपनी समाजशक्ति को जाग्रत करते हुए अपने ‘स्व’ के आधार पर राष्ट्र निर्माण के पथ पर आगे बढ़ रहा है, भारत के ‘स्व’ आधारित राज्य की स्थापना के उद्देश्य से चली छत्रपति शिवजी महाराज की जीवनयात्रा का स्मरण अत्यंत प्रासंगिक एवं प्रेरणास्पद है।
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा बाल्यकाल में लिये गए स्वराज्य स्थापना के संकल्प का उद्देश्य मात्र सत्ता प्राप्ति नहीं अपितु, धर्म एवं संस्कृति के रक्षा हेतु ‘स्व’ आधारित राज्य की स्थापना करना था। अत: उन्होंने उसका अधिष्ठान ‘यह राज्य स्थापना श्री की इच्छा है’ के भाव से जोड़ा था। स्वराज्य स्थापना के समय अष्टप्रधान मंडल की रचना, ‘राज्यव्यवहार कोष’ का निर्माण और स्वभाषा का उपयोग, कालगणना हेतु शिव-शक का प्रारम्भ, संस्कृत राजमुद्रा का उपयोग आदि कार्यकलाप ‘धर्मस्थापना’ के उद्देश्य से स्थापित ‘स्वराज्य’ को स्थायित्व देने की दिशा में ही रहे।
आज भारत अपनी समाजशक्ति को जाग्रत करते हुए अपने ‘स्व’ के आधार पर राष्ट्र निर्माण के पथ पर आगे बढ़ रहा है, भारत के ‘स्व’ आधारित राज्य की स्थापना के उद्देश्य से चली छत्रपति शिवजी महाराज की जीवनयात्रा का स्मरण अत्यंत प्रासंगिक एवं प्रेरणास्पद है।
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