मोदीजी की यह विदेश यात्रा कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण रही। सबसे पहले, जी-7 के शिखर सम्मलेन में मोदी जी ने लगातार पांचवीं बार भाग लिया। इस वर्ष, जब भारत जी-20 की अध्यक्षता और मेजबानी कर रहा है, यह हमारे लिए जी-7 के सदस्यों के साथ अपने हितों को साधने का एक सुनहरा अवसर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में तीन देशों के दौरे पर रहे। दौरे का प्रारम्भ जापान से हुआ जहां 19 और 20 मई को प्रधानमंत्री ने हिरोशिमा में आयोजित जी-7 के शीर्ष सम्मलेन में विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया। फिर, वहीं उन्होंने क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लिया। इसके बाद प्रधानमंत्री पापुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोर्स्बी में आयोजित फिपिक (फोरम आफ इंडिया-पैसिफिक आईलैंड कोआपरेशन) में सम्मिलित हुए और वहां से दो दिन के लिए आस्ट्रेलिया गए।
जी-7 और क्वाड
मोदीजी की यह विदेश यात्रा कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण रही। सबसे पहले, जी-7 के शिखर सम्मलेन में मोदी जी ने लगातार पांचवीं बार भाग लिया। इस वर्ष, जब भारत जी-20 की अध्यक्षता और मेजबानी कर रहा है, यह हमारे लिए जी-7 के सदस्यों के साथ अपने हितों को साधने का एक सुनहरा अवसर है। हमारी ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विकास’ के लिए प्रतिबद्धता और वसुधैव कुटुम्बकम की नीति को ध्यान में रख कर जनवरी में ‘ग्लोबल साउथ’ (विकासशील, अल्पविकसित तथा अविकसित देशों के समूह) की बैठक करने की हमारी पहल ने भारत को अघोषित रूप से ऐसे समूह का नेता और प्रवक्ता बना दिया है। भारत भले ही औपचारिक रूप से अभी जी-7 का सदस्य न हो, लेकिन इसके पिछले सम्मेलनों में हमारी निरंतर उपस्थिति ने हमें ‘ग्लोबल साउथ’ और ‘ग्लोबल नॉर्थ’ (आर्थिक दृष्टि से संपन्न देशों, जैसे जी-7 के सदस्यों) के बीच एक सेतु, एक निर्भीक और सक्षम प्रवक्ता की हैसियत प्रदान की है। जी-7 शीर्ष सम्मलेन ने भारत को अन्य महत्वपूर्ण राजनेताओं से मिलने का एक और मंच प्रदान किया।
प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता 78 प्रतिशत पर पहुंचना, बाइडेन का मोदी से आटोग्राफ मांगना, जेलेन्स्की का मिलने आना, पापुआ के प्रधानमंत्री के मोदी के पैर छूना और अल्बनीसी का “Modi is the boss” कहना भारत और उसके नेता की लोकप्रियता को दर्शाता है।
इसके हाशिए पर जहां एक ओर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के साथ विचाराधीन मुक्त व्यापार समझौते पर विमर्श हुआ, वहीं ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुअल मैक्रॉ, संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनिओ गुतारेस और जापान के प्रधानमंत्री से भारतीय प्रधानमंत्री की सार्थक वार्ता हुई। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेन्स्की से भी प्रधानमंत्री मोदी की वार्ता हुई जिसमें यूक्रेनी राष्ट्रपति ने युद्ध समाप्त करने में भारत के सहयोग की अपील की और मोदी जी को यूक्रेन आमंत्रित किया। भारतीय प्रधानमंत्री ने कूटनीतिक शब्दों में उन्हें आश्वासन दिया कि इस सम्बन्ध में वे और भारत दोनों ही, ‘जो भी बन पड़ेगा, करेंगे’। भारत -रूस के घनिष्ठ संबंधों के चलते जेलेन्स्की युद्ध के आरम्भ से ही भारत द्वारा हस्तक्षेप और मध्यस्थता की मांग करते आ रहे हैं, किन्तु भारत सैद्धांतिक और नीतिगत रूप से द्विपक्षीय मामलों में किसी तीसरे देश की मध्यस्थता के विरुद्ध है। इसीलिए कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प की पेशकश को हमने ठुकरा दिया था। द्विपक्षीय विवाद सुलझाने में हम अधिक से अधिक वार्ता के लिए एक सकारात्मक वातावरण तैयार कर सकते हैं, इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता न दिखाते हुए आश्वासन दिया जो कूटनीतिक रूप से सर्वथा उचित था।
इसके तुरंत बाद हुए क्वाड सम्मलेन में सारी वार्ता भारत की आशाओं के अनुरूप रही, इंडियन ओशेन रिम एसोसिएशन (आईओआरए) के हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर औपचारिक रुख (आईओआईपी) को अंतिम रूप देने के लिए भारत के नेतृत्व को सराहा गया, आतंकवाद से निपटने की प्रतिबद्धता दोहराई गयी, स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल अर्थव्यवस्था आदि पर भारत की आशा के अनुरूप प्रतिबद्धता प्रकट की गई और यूक्रेन में युद्ध पर रूस का नाम लिए बिना चिंता प्रकट की गई (जो भारत के लिहाज से एक सफलता है)।
पापुआ न्यू गिनी, आस्ट्रेलिया में अभूतपूर्व स्वागत
जापान से प्रधानमंत्री मोदी पापुआ न्यू गिनी गए जहां उनका अभूतपूर्व स्वागत हुआ। सारे राजनयिक प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे मोदी जी का स्वागत करने न केवल एयरपोर्ट पहुंचे बल्कि उनके पैर भी छुए। मोदी जी वहां फोरम आफ इंडिया -पैसिफिक आईलैंड कोआपरेशन के शीर्ष सम्मलेन के लिए पहुंचे थे। स्मरणीय है कि यह प्रशांत क्षेत्र में स्थित 14 देशों का भारत के साथ एक संगठन है जिसकी स्थापना 2014 में फिजी में हुई थी। ये 14 देश एकजुट हो कर लगभग सभी मामलों पर संयुक्त राष्ट्र में भारत का निरंतर समर्थन करते रहे हैं। मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने इन देशों के साथ संबंधों को दृढ़तर बनाने की सोची। कोरोना महामारी के दौरान इन द्वीपीय देशों को दी गयी भारतीय सहायता से ये देश इतने अभिभूत थे कि न सिर्फ सभी ने एक स्वर से भारत की सराहना की, बल्कि तीन देशों ने तो मोदी जी को अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया।
इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी आस्ट्रेलिया पहुंचे जहां उनका अभूतपूर्व स्वागत हुआ। सिडनी के जिस सभागार में मोदी जी ने भारतीय समुदाय को सम्बोधित किया, उसके निकट स्थित हैरिस पार्क का नाम बदल कर ‘लिटिल इंडिया’ रख देना द्विपक्षीय रिश्तों की दृढ़ता और भारतीय प्रवासियों की सामाजिक स्थिति का भी परिचायक है। इस यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण घोषणाएं भी की गयीं। बंगलुरु और ब्रिस्बेन में दोनों देश अपने-अपने कांसुलेट भी खोलेंगे। इसके अतिरिक्त दोनों ही देश आस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक आर्थिक साझेदारी बढ़ाने पर भी सहमत हुए हैं। दोनों की सहमति खनन, स्वच्छ ऊर्जा, निवेश, तकनीकी क्षेत्रों में भी बनी है। मोदी जी के साथ वार्ता में कई आस्ट्रेलियाई निवेशकों ने भारत में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने में रुचि जताई है।
बढ़ती लोकप्रियता
बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो यह निर्विवाद है कि अब भारत और मोदी का डंका अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर भी बज रहा है। मोदी की लोकप्रियता का संकेतक सारे कीर्तिमान तोड़ते हुए 78 प्रतिशत पर पहुंचना, जो बाइडेन का मोदी से आटोग्राफ मांगना, जेलेन्स्की का मिलने आना, पापुआ के प्रधानमंत्री के मोदी के पैर छूना और अल्बनीसी का “Modi is the boss” कहना भारत और उसके नेता की लोकप्रियता दर्शाता है। किन्तु इस लोकप्रियता का कारण क्या है? पिछले नौ वर्षों में भारत ने जिस तेजी से प्रगति की है, उससे देश और प्रधानमंत्री का आत्मविश्वास बढ़ा है और इसी आत्मविश्वास के कारण उनके व्यवहार में एक नैसर्गिक सहजता है, जो विदेशी नेताओं को भी वार्तालाप में सहज बना देती है, जिससे राजनयिक वार्तालाप में सुगमता आती है और पारस्परिक विश्वास का माहौल पैदा होता है। उनकी इसी वार्तालाप की शैली ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया है।
यदि हम देखें कि प्रधानमंत्री मोदी की हाल की इन यात्राओं से हमें क्या मिला, तो स्पष्ट है कि जी-7 की बैठक में भले ही हमारे लिए करने को कुछ विशेष नहीं था (क्योंकि भारत एक विशिष्ट अतिथि ही था), फिर भी कई बड़े नेताओं के साथ मुलाकात का एक अवसर प्राप्त हुआ। इसकी तुलना में क्वाड सम्मेलन हमारी भागीदारी की दृष्टि से अधिक सफल रहा। पापुआ न्यू गिनी और आस्ट्रेलिया की यात्राएं भी काफी फलदायी रहीं। जहां हम प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों को एक बार फिर अपनी सद्भावना का विश्वास दिलाने में सफल रहे, वहीं चीन के प्रभाव क्षेत्र में सेंध लगा कर उसे असहज भी कर दिया। यह विडम्बना ही थी कि आस्ट्रेलिया जैसे देश में 1986 से 2014 तक 28 वर्ष में कोई भारतीय राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष नहीं गया था, वहीं वर्तमान प्रधानमंत्री ने दो यात्राएं कीं। यह दिखाता है कि अब हमारी विदेश नीति, स्वतंत्र, निर्बाध और अधिक प्रासंगिक हो गयी है।
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