खबर है कि नेपाल के माओवादियों का एक दल बीजिंग गया हुआ है। इस दल में नेपाल के कई कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञ शामिल हैं। दल के चीन दौरे के पीछे अटकलों का बाजार गर्म है। राजनीति के जानकार इसे लेकर कई तरह के पहलुओं पर चर्चा कर रहे हैं। लेकिन सबसे विश्वसनीय थ्योरी यह सामने आ रही है कि नेपाल में कम्युनिस्टों में बीच चल रही तनातनी को लेकर वह चीन चिंतित है जो काठमांडु में अपने लिए सुभीता शासन चाहता है जिसके सहारे वह वहां भारत का प्रभाव कम कर सके। आपसी झगड़े में उलझे नेपाल के कम्युनिस्टों में एका कराने की गरज से चीन ने उन्हें ‘समझाने’ के लिए बीजिंग बुलाया है।
काठमांडू में यह बात आम सुनाई देती है कि चीन नेपाली कम्युनिस्ट पार्टियों में एका कराने में काफी दिनों से प्रयासरत रहा है। बताते हैं कि यह चीन का ही मशविरा था कि नेपाल के कम्युनिस्ट नेताओं का दल चीन आए और ‘घुट्टी पीकर जाए’। नेपाली कम्युनिस्ट नेताओं का यह दल 19 मई से 1 जून तक चीन के दौरे पर रहेगा।
बीजिंग गए इस दल में खासतौर पर सीपीएन (माओवादी सेंटर) के वरिष्ठ नेता शामिल हैं। पता यह भी चला है कि माओवादी उपाध्यक्ष अग्नि सपकोटा सहित इस दल में कम से कम 20 कम्युनिस्ट नेता चीन यात्रा पर गए हैं। वहां चीनी नेताओं के साथ बातचीत में प्रमुख रूप से नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी और माओवादी पार्टी के बीच समन्वय का विषय उठा।
यह कोई छुपी बात नहीं है कि नेपाल में गत चुनावों में ही नहीं, सरकार के गठन में भी चीन की कथित भूमिका रही है। नेपाल में चीन किसी भी कीमत पर कम्युनिस्टों का राज चाहता है जिससे कि वहां भारत के विरुद्ध उसके द्वारा पैदा की जा रही नफरत को बढ़ावा दिया जा सके।
सपकोटा के साथ गए नेताओं के दल ने चीन की राजधानी बीजिंग में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विभाग के मंत्री ल्यू जिएन चाओ के साथ बैठक की। इस बैठक में मौजूद नेपाली नेताओं में से एक नेता ने बताया है कि बैठक में चाओ की सलाह थी कि नेपाल के सभी कम्युनिस्ट दलों में एकजुटता होनी जरूरी है।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि बैठक शुरू होने से पहले दल के नेता सपकोटा ने चाओ से अलग से अकेले भेंट की थी। इसके बाद दोपहर के भोजन पर दल के अन्य सभी नेताओं को साझा बातचीत में शामिल किया गया। इस बात पर भी काठमांडु में चर्चा है कि सपकोटा ने चाओ से अलग से क्यों और क्या बात की?
हालांकि प्रकट तौर पर तो चाओ ने यही सलाह दी है कि नेपाल के सभी कम्युनिस्ट दलों में एकता हो जाएगी तो हिमालयी राष्ट्र राजनीतिक रूप से स्थिर हो जाएगा। बताया गया है कि पिछले साल भी सीपीएन (यूएमएल) का एक दल चीन गया था, उसे भी बीजिंग की तरफ से ऐसी ही सलाह दी गई थी।
यह कोई छुपी बात नहीं है कि नेपाल में गत चुनावों में ही नहीं, सरकार के गठन में भी चीन की कथित भूमिका रही है। नेपाल में चीन किसी भी कीमत पर कम्युनिस्टों का राज चाहता है जिससे कि वहां भारत के विरुद्ध उसके द्वारा पैदा की जा रही नफरत को बढ़ावा दिया जा सके। गत चुनाव के बाद वहां की दोनों सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टियों को भी चीन के इशारे पर ही एक होना पड़ा था। सीपीएन के दो फाड़ न हों, इसके लिए चीन के नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल काठमांडु आया था।
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