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फौजी शासन की तरफ बढ़ता पाकिस्तान

पाकिस्तान में सभी पक्ष एक-दूसरे को देशद्रोही करार दे रहे हैं और फौज से दुश्मनी लेने वालों के खिलाफ आतंकवाद और देशद्रोह संबंधी कानूनों के तहत कार्यवाही हो रही है। इसे सैनिक शासन की आगे बढ़ती छाया माना जा रहा है

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
May 23, 2023, 03:30 pm IST
in विश्व
पाकिस्तान के कुछ शहरों में सैन्य ठिकानों पर हमले के बाद फौज पीटीआई नेताओं और समर्थकों को गिरफ्तार कर रही है

पाकिस्तान के कुछ शहरों में सैन्य ठिकानों पर हमले के बाद फौज पीटीआई नेताओं और समर्थकों को गिरफ्तार कर रही है

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पाकिस्तान की वर्तमान परिस्थितियों से ज्यादा उसके इतिहास को समझना समीचीन है। वास्तव में पाकिस्तान हमेशा से ऐसा ही रहा है। पाकिस्तान बनने के तीन वर्ष बाद वहां के पहले प्रधानमंत्री को गोली से उड़ा दिया गया। अयूब खान सेनाध्यक्ष बने। 1958 में वह तख्तापलट करके सत्ता में आ गए और 11 वर्ष तक सत्ता पर काबिज रहे।

एक ओर इमरान खान बनाम फौज और सत्तारूढ़ पीडीएम। दूसरी तरफ सत्तारूढ़ पीडीएम बनाम पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट। पाकिस्तान में यह चर्चा होने लगी है कि क्या इस देश पर सैनिक तानाशाही की छाया फिर नजर आने लगी है? हालांकि पाकिस्तान हमेशा ही सैनिक शासन के तहत रहा है। लगभग सभी पक्ष एक-दूसरे को देशद्रोही करार दे रहे हैं और फौज से दुश्मनी लेने वालों के खिलाफ आतंकवाद और देशद्रोह संबंधी कानूनों के तहत कार्यवाही हो रही है।

इस बीच, पाकिस्तान से अब कुछ ऐसे स्वर भी उठने लगे हैं, जिनमें पाकिस्तानी सत्ता के फासिस्ट स्वभाव और वहां मानवाधिकारों के बेलगाम उल्लंघन पर चिंता जताई जाने लगी है। कई लोग अंतरराष्ट्रीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र संघ और मानवाधिकार संगठनों आदि से गुहार करने लगे हैं कि उन्हें सत्ता के दुरुपयोग, सैनिक ताकत के दुरुपयोग और यहां तक कि अदालती आदेशों के दुरुपयोग के अत्याचारों से बचाया जाए। हमेशा की तरह राजनीति में सेना का भरपूर हस्तक्षेप है और सेना की मदद से नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग के महत्वपूर्ण नेताओं का जबरन दलबदल कराकर जिस रास्ते से इमरान खान सत्ता में आए थे, वही रास्ता अब इमरान खान की पार्टी के खिलाफ खोल दिया गया है। पीटीआई के कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।

वहां क्या हो रहा है यह समझने के लिए पाकिस्तान की वर्तमान परिस्थितियों से ज्यादा उसके इतिहास को समझना समीचीन है। वास्तव में पाकिस्तान हमेशा से ऐसा ही रहा है। पाकिस्तान बनने के तीन वर्ष बाद वहां के पहले प्रधानमंत्री को गोली से उड़ा दिया गया। अयूब खान सेनाध्यक्ष बने। 1958 में वह तख्तापलट करके सत्ता में आ गए और 11 वर्ष तक सत्ता पर काबिज रहे। इस दौर में सेना पाकिस्तान की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई। 1958 से पाकिस्तान चार बार घोषित तौर पर सैनिक शासन के तहत आ चुका है। हालांकि वह अपना रंग-रूप जरूर बदलता रहा है।

सैनिक तानाशाह ने खुद को चाहे तो राष्ट्रपति घोषित कर सकता है, चाहे मुख्य सैनिक प्रशासक या चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर, चाहे चीफ एग्जीक्यूटिव, फिर राष्ट्रपति और यहां तक कि मुख्य कानून प्रदाता भी बन सकता है। उसे बस अदालत और अमेरिका को साथ रखना होता था। मुशर्रफ को तो वकीलों से उलझने के बाद अमेरिकी समर्थन से भी हाथ धोना पड़ा था। अब पाकिस्तान में सैनिक सत्ता का संकर स्वरूप चल रहा है, जिसमें सत्ता चाहे जिसके पास हो, पर्दे के पीछे से नियंत्रण उसका सेना के हाथ में ही रहता था। इसे ‘सेम पेज’ भी कहा गया और हाइब्रिड भी कहा गया। इसके बावजूद सिर्फ पाकिस्तानी सेना को सत्ता का भूखा मान लेना शायद सही नहीं है।

पाकिस्तान की जनता में यह स्पष्ट हो चुका है कि सैनिक शासन देश की किसी समस्या का हल नहीं है। शुरुआत में भले ही तख्तापलट अच्छा लगे, लेकिन बाद में वह भी विफल हो जाता है।

पाकिस्तान में सेना से सहानुभूति रखने वाले कहते हैं कि सत्ता में हस्तक्षेप करने में सेना का कोई दोष नहीं है, बल्कि उसे तो पाकिस्तान को पाकिस्तान के नागरिकों से बचाने के लिए सत्ता में हस्तक्षेप करना पड़ता है। यह भी सच है कि वहां जो भी चुनी हुई सरकार होती है, वह भी उतनी ही अक्षम और भ्रष्ट होती है, जितना कोई सैनिक तानाशाह हो सकता है। वास्तव में जनरल अयूब ने 1958 में जब अपना पहला भाषण दिया था, तब उन्होंने भी यही बात कही थी।

1969 में याह्या खान ने भी यही कहा, 1977 में जिन्ना ने और प्रकारांतर से मुशर्रफ ने भी यही कहा। हालांकि जिन्ना ने अपनी सत्ता को और पुष्ट करने के लिए खुद को अपने दायरे में इस्लाम का खलीफा जताने की भी कोशिश की। मुशर्रफ ने भी इनलाइटेंड मॉडरेशन के नाम से फिर इस्लाम के नाम पर सरकार चलाई। अब इमरान खान ने भी इस्लाम के खतरे में होने की बात अपने समर्थकों से कहलवाई है। इस त्रिकोण को ही पाकिस्तान में ‘अल्लाह, आर्मी, अमेरिका’ गठजोड़ कहा जाता रहा है।

क्यों खास है इस बार का संकट!

पाकिस्तान की राजनीति में अस्थिरता हमेशा रही, लेकिन हमेशा एस्टेब्लिशमेंट या सेना स्वयं को उसे संतुलित करने वाली शक्ति के तौर पर पेश करती रही। इस बार पाकिस्तान की जनता में यह स्पष्ट हो चुका है कि सैनिक शासन देश की किसी समस्या का हल नहीं है, बल्कि जब भी सैन्य तख्तापलट होता है, तब वह शुरुआत में भले ही अच्छा लगे, लेकिन बाद में वह भी विफल हो जाता है।

रहस्य की बात यह जरूर है कि बार-बार की विफलता के बावजूद सेना की राजनीतिक महत्व कभी भी न तो कम हुआ है, न खत्म हुआ है, बल्कि लगातार बढ़ता ही गया है। जुल्फिकार अली भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने के बाद सेना की हैसियत कुछ समय के लिए जरूर कम की गई थी, लेकिन इसका परिणाम यही निकला कि इसके 2 वर्ष के भीतर भुट्टो को सेना ने फांसी पर लटकवा दिया।

पाकिस्तान के विरोध प्रदर्शन और देशद्रोह

पाकिस्तान की स्थापना के कुछ ही समय बाद 1951 में जब सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए, तो सरकार विरोधी प्रदर्शनों और नेताओं को देशद्रोही घोषित कर दिया गया और उन पर रावलपिंडी कॉन्स्पिरेसी केस के तहत मुकदमे चलाए गए। गिरफ्तार किए गए इन लोगों में फैज अहमद फैज से लेकर सेना के कई सारे अधिकारी और सज्जाद जहीर भी शामिल थे। इन लोगों पर कार्रवाई करने के लिए विशेष कानून पारित किए गए।

सब को सजा सुना दी गई, लेकिन 4 वर्ष की सजा काटने के बाद अपील कोर्ट ने उनके खिलाफ लगाए गए सारे आरोपों को पूरी तरह गलत माना। 1965 में फातिमा जिन्ना की मौत के बाद जब उन्हें दफनाया जा रहा था, तो सेना ने उनकी छवि एक उम्मीदवार की नहीं, बल्कि पाकिस्तान विरोधी व्यक्ति की बना दी थी, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति अयूब खान के खिलाफ चुनाव लड़ने की जुर्रत की थी।

पाकिस्तान के कुछ शहरों में पीटीआई समर्थकों ने सीधे सैन्य ठिकानों को निशाने पर ले लिया। इमरान खान ने सेना प्रमुख पर जमकर निशाना साधा। यह पहला दौर था। अब फौजी सल्तनत का पलटवार चल रहा है। देशभर में की गई कार्रवाई में पीटीआई के हजारों नेताओं और समर्थकों को गिरफ्तार किया गया है। माना जा रहा है कि यह सैनिक शासन की आगे बढ़ती छाया है। 

इसी तरह, मुजीब को अगरतला कॉन्स्पिरेसी केस के तहत देशद्रोही करार दे दिया गया था। 1969 में अयूब खान ने मुजीब को गोलमेज परिषद में बुलाने से मना कर दिया। जो नेता आए, वह किसी बात पर सहमत नहीं हो सके और यह गोलमेज परिषद दो ही दिन में समाप्त हो गई। लेकिन इतनी देर में पूर्वी पाकिस्तान के सारे नेताओं को देशद्रोही करार दे दिया गया और मुजीब को जेल में डाल दिया गया। 1975 में जुल्फिकार अली भुट्टो ने हैदराबाद कॉन्स्पिरेसी केस के तहत कार्यवाही शुरू करवाई, जिसमें अवामी नेशनल पार्टी को देशद्रोही करार देकर प्रतिबंधित कर दिया गया। अवामी नेशनल पार्टी के सारे नेतृत्व को गिरफ्तार करके उन पर देशद्रोह के मुकदमे चलाए गए।

पाकिस्तान में राजनीतिक प्रयोग नहीं होते। वहां प्रयोगों के साथ प्रयोग होते हैं। जैसे- सेना की टेबल पर राजनीतिक दल बनाए जाते हैं या बनवाए जाते हैं, फिर उनके विरोधी बनाए जाते हैं या बनवाए जाते हैं। फिर उन्हें समाप्त किया जाता है, फिर एक पाकिस्तान समर्थक दल खड़ा किया जाता है, फिर उसे भी समाप्त कर दिया जाता है। फिर दमन होता है, फिर तुष्टीकरण होता है, फिर किसी तरह से एक बीच का रास्ता निकाला जाता है। फिर सारा खेल नए सिरे से शुरू होता है। 9 मई को पाकिस्तान के कुछ शहरों में पीटीआई समर्थकों ने सीधे सैन्य ठिकानों को निशाने पर ले लिया। इमरान खान ने सेना प्रमुख पर जमकर निशाना साधा। यह पहला दौर था। अब फौजी सल्तनत का पलटवार चल रहा है। देशभर में की गई कार्रवाई में पीटीआई के हजारों नेताओं और समर्थकों को गिरफ्तार किया गया है। माना जा रहा है कि यह सैनिक शासन की आगे बढ़ती छाया है।

Topics: सत्तारूढ़ पीडीएम बनाम पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्टPolitical Parties at Army Tableपाकिस्तान के विरोध प्रदर्शन और देशद्रोहFascist Nature of Pakistani Powerसेना की टेबल पर राजनीतिक दलRampant Violations of Human Rightsपाकिस्तानी सत्ता के फासिस्ट स्वभावPakistan's Present circumstancesमानवाधिकारों के बेलगाम उल्लंघनभुट्टो को सेनापाकिस्तान की वर्तमान परिस्थितियोंअंतरराष्ट्रीय समुदायImran Khan Vs Armyसंयुक्त राष्ट्र संघ और मानवाधिकार संगठनTerrorism and Sedition Lawsइमरान खान बनाम फौजRuling PDMआतंकवाद और देशद्रोह संबंधी कानूनRuling PDM Vs Supreme Court of Pakistanसत्तारूढ़ पीडीएमPakistan Protests and Treason
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