रुद्रप्रयाग : चार धामों के कपाट खुलने के उपरांत पंच केदार में द्वितीय केदार बाबा मद्दमहेश्वर के कपाट भी आज सुबह 11 बजे पौराणिक रीति रिवाजों, वैदिक मंत्रोचार और विधि विधान के साथ आगामी 6 महीने के लिए आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। बाबा मद्दमहेश्वर के कपाट खुलने के अवसर पर रांसी, गौंडार, राउलैक, मनसूना, ऊखीमठ सहित विभिन्न जगहों से सैकड़ों श्रद्धालु धाम पहुंचे। धाम में विगत दो सालों से पसरा सन्नाटा भी समाप्त हुआ। इस दौरान बाबा का पूरा धाम हर-हर महादेव और बाबा के जयकारों से गूंज उठा। बीकेटीसी के पूर्व सदस्य शिव सिंह रावत और स्थानीय निवासी रवीन्द्र भट्ट नें बताया की आज सुबह भगवान मदमहेश्वर की उत्सव डोली गोंडार गांव से प्रातः प्रस्थान कर मदमहेश्वर धाम पहुंची। डोली के साथ सैकड़ो श्रद्धालु भी हर-हर महादेव और बाबा मद्दमहेश्वर के जयकारे लगाते हुए चलते रहे।
ये है मान्यता !
रूद्रप्रयाग जनपद की मधु गंगा घाटी में चौखंभा पर्वत की तलहटी में 3300 मीटर की ऊंचाई स्थित है। द्वितीय केदार भगवान मदमहेश्वर का मंदिर। यहां पर भगवान शिव की पूजा नाभि लिंगम् के रूप में की जाती है। यहां के जल के बारे में कहा जाता है, कि इस पवित्र जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं। इस तीर्थ के विषय में कहा गया है कि जो व्यक्ति भक्ति से या बिना भक्ति के ही मदमहेश्वर के माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है। साथ ही जो व्यक्ति इस क्षेत्र में पिंडदान करता है, वह पिता की सौ पीढ़ी पहले के और सौ पीढ़ी बाद के तथा सौ पीढ़ी माता के तथा सौ पीढ़ी श्वसुर के वंशजों को तरा देता है।
प्रकृति की अनमोल नेमत है बाबा का धाम !
हिमालय में मौजूद बाबा का धाम प्राकृतिक सौंदर्य से अटा पडा है। बर्फ से ढकी चोटियां, मखमली घास के बुग्याल, कल-कल बहते पानी के बड़े-बड़े झरने, देवदार के घने जंगल आपको बरबस ही आकर्षित करते हैं। खासतौर पर गौंडार गांव से मद्दमहेश्वर धाम तक का रास्ता पहाडों के शौकीनों के लिए ऐशगाह से कम नहीं है। गौण्डार से करीब डेढ़ किलोमीटर आगे यात्रियों के रुकने के लिए खटरा चट्टी है। यहां से मदमहेश्वर की दूरी सात किलोमीटर है। इसके आगे नानू चट्टी, कुन चट्टी के बाद मदमहेश्वर धाम आता है। इस दौरान पूरे रास्ते में प्रकृति के अनगिनत नजारे देखने को मिलते हैं।
बूढ़ा मदमहेश्वर !
मदमहेश्वर के पास ही एक चोटी है। इसका रास्ता कम ढ़लान वाला है। पेड़ भी नहीं हैं। एक तरह का बुग्याल है। उस चोटी को बूढ़ा मदमहेश्वर कहते हैं। डेढ-दो किलोमीटर चलना पडता है। जैसे-जैसे ऊपर चढ़ते जाते हैं, तो चौखंबा के दर्शन होने लगते हैं। बिल्कुल ऊपर पहुंचकर महसूस होता है, कि हम दुनिया की छत पर पहुंच गए हैं। दूर ऊखीमठ और गुप्तकाशी भी दिखाई देते हैं। चौखंभा चोटी तो ऐसे दिखती है मानो हाथ बढ़ाकर उसे छू लो।
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