वह उंगली पकड़कर चल रहे हैं…वह पग-पग आगे बढ़ रहे हैं… माता यशोदा हैं उनकी जो दे रहीं हैं ममता… यह दृश्य उन नन्हें बच्चों का है जो अभी-अभी मां की गोद से उठने की कोशिश कर रहे हैं। जो अभी मां के आंचल में अपनी क्षुधा मिटा रहे हैं और जिन्होंने जिंदगी का पहला पग धरती पर आज ही साधना सीखा है । इसमें से कुछ ऐसे भी हैं जो दौड़ भी लगाना सीख गए हैं, लेकिन जैसा कहा जाता है, ‘जहाज का पंछी कितनी भी ऊंची उड़ान भर ले, आखिर में उसे आना अपने जहाज पर ही होता है’, ठीक वैसे ही जैसे यह नन्हें बच्चे ”मातृछाया” में दिनभर कुछ भी करें आखिर में उन्हें अपनी मां की याद आती है और वे यशोदा मैया के आंचल की छांव में आकर ही सुख की अनुभूति करते हैं।
यह दृश्य राज्य की राजधानी भोपाल अकेले का नहीं है बल्कि प्रदेश में जहां भी ”मातृछाया” संचालित हैं, वहां आप इस तरह के दृश्य आम जीवन में नित रोज देख सकते हैं । मध्यप्रदेश में ‘सेवाभारती’ का यह नन्हें बच्चों को रखने का प्रकल्प है ”मातृछाया” । यहां अब तक आए बच्चों में कुछ ऐसे आए, जिन्हें कूड़ा समझकर फेंक दिया गया था। कोई झाड़ियों में छोड़कर चला गया, कोई अस्पताल में, कोई ”मातृछाया” के बाहर लगे पालने में डाल कर चला गया और कोई-कोई ऐसे हैं जिनके पैदा होते ही मां के गुजर जाने के बाद परिवार ने पालने से मना कर दिया। कुछ गुमशुदा, ट्रेन में, सड़क किनारे, पार्क में मिले हैं जिनके माता-पिता का अब तक कुछ पता नहीं, और बहुत ऐसे हैं जिनके मां-बाप का पता तो है लेकिन वह अपने बच्चों को पालने में सक्षम नहीं है, किंतु यहां आकर शुरू हुई इन बच्चों के जीवन की एक नई यात्रा ।
स्वर्गीय विष्णुजी की प्रेरणा से 1997 में शुरू हुआ था यह प्रकल्प
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक एवं सेवाभारती के संस्थापक स्वर्गीय विष्णुजी की प्रेरणा से 1997 में शुरू हुआ यह प्रकल्प मध्यप्रदेश का पहला मान्यता प्राप्त इंटरनेशनल एडाप्शन सेंटर है। आंकड़ों के लिहाज से सेंटर में आने वाले बच्चों में से 338 बच्चे देशभर में अपने-अपने घरों में सुखी व संपन्न जीवन जी रहे हैं। 13 बच्चे ऐसे भी हैं, जो विदेशों में गोद लिए गए और वहां आज सुखमय जीवन का आनन्द उठा रहे हैं। इनमें से कुछ बच्चे तो धनाढ्य परिवार में इकलौते बनकर रह रहे हैं। एक शिवलिंग भी विदेश में गोद लिया गया है, शिवलिंग यानी कि तीन भाई-बहनों का संयुक्त जोड़ा ।
मातृछाया को विभिन्न देशों जैसे स्पेन, आस्ट्रेलिया, दुबई, कनाडा, स्वीडन, इटली, अमेरिका आदि देशों के दम्पत्तियों के आवेदन प्राप्त हुए हैं, और ऐसे ही देश-विदेश से निरंतर प्राप्त हो रहे हैं। यहां हर बच्चे की देखभाल के लिए यशोदाएं (आया) हैं जो समर्पित भाव से इनकी हर जरूरत को पूरा करती है। सेंटर में रहने वाले लोग हों या फिर सेवाभारती मातृमंडल की बहनें और उनके परिवार सब इन बच्चों से रिश्तों की डोर से बंधे हैं। कोई इनकी चाची है तो कोई बुआ तो कोई मासी।
हर बच्चे की देख-रेख के लिए यहां हैं मां यशोदा और अन्नपूर्णा
यहां की परामर्शदाता प्रीति साहू कहती हैं कि जैसा हमारे संस्थान का नाम है ”मातृछाया” वैसा ही हमारा काम है। हमने इसलिए ही भगवान श्रीकृष्ण को जन्म देने के स्थान पर लालन-पालन करने वाली माता यशोदा के समान ही इन बच्चों के जीवन में उजियारा और पोषण देने वाली माताओं को यशोदा कहकर पुकारा है। यहां बच्चों की देखरेख कर रहीं सभी मां यशोदा की भूमिका में हैं। वहीं उनके लिए भोजन आहार की पूर्ति करने वाली माताएं अन्नपूर्णा हैं ।
प्रीति का कहना है कि मातृछाया में अभी सात यशोदा मां इन बच्चों की देखरेख कर रही हैं । दो अन्नपूर्णाएं हैं और इन सातों मांओं के बीच 12 बच्चे अपने जीवन को आगे बढ़ाने और संवारने में लगे हुए हैं। इन 12 बच्चों में एक बच्ची स्पेशल चाइल्ड भी है, वहीं नौ बालिकाएं और तीन बालक हैं। मातृछाया में अब तक 640 बच्चे पंजीकृत हुए हैं, जिनमें से 130 बच्चों को परिवार में सफलतापूर्वक वापिस भेजा जा चुका है। इनमें अभी जो बच्चे यहां रह रहे हैं वे शुन्य से लेकर छह वर्ष तक के हैं।
प्रीति बताती हैं कि ”मातृछाया” में बच्चों की सभी तरह की जरूरतों का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। छोटे बच्चों की नियमित दोनों समय मालिश होती है, एवं उन्हें उचित पोषण आहार दिया जाता है। बड़े बच्चों को स्कूल के बाद पढ़ाने के लिए शिक्षक रखे गए हैं। शाम के समय इन्हें ड्राईंग, कार्ड मेकिंग के साथ ही संगीत भी सिखाया जाता है। यहां आने वाले डिसेबल बच्चों की भी हर जरूरत को पूरा किया जाता है।
”मातृछाया” के लिए हर बच्चा है दिव्य और अहम
प्रीति अपनी इस बातचीत में ”मातृछाया” की पंच लाइन को बोलना नहीं भूलतीं, वे कहती हैं कि हर बच्चा हमारे लिए दिव्य और अहम है, इसलिए कोई बच्चा फेंके नहीं, हमें दें। पालने में छोड़ जाएं, उस बालक की चिंता करना ”मातृछाया” का कर्तव्य है। जिन्हें बच्चों के बीच अच्छा लगता है वे यहां आएं, शादी की वर्षगांठ या अपना जन्म दिन मनाएं। यथासंभव जो सहयोग बने वह इन बच्चों के हित में अवश्य करें। मातृछाया का द्वार सभी बच्चों और उन बच्चों से प्यार करने वाले ऐसे सभी लोगों के लिए समान रूप से खुला हुआ है।
ऐसे-ऐसे बच्चे आए हैं यहां, फिर मिला उन्हें सुखमय परिवार
अतीत के पन्ने पलटते हुए यहां सह प्रबंधन का कार्य देख रहे सुधांशु मिश्रा बताते हैं कि तीन बरस का अविनाश जब अपने माता-पिता के साथ आस्ट्रेलिया जाने वाला था, तो उसकी खुशी का ठिकाना न था, वो हर बच्चे को अपने कमरे के फोटो दिखा रहा था, जो उसके लिए पहले से सजाकर रखा गया था। मातृछाया प्रबंधन को आज भी वो रात याद है, जब हमीदिया अस्पताल के कूड़ेदान से दो दिन के अविनाश को यहां लाया गया था। कितने जतन के बाद तो इस प्रीमैच्योर बच्चे की जान बचाई जा सकी थी। अब बात करते है, कावेरी की इसने तो अपने माता-पिता को स्पेनिश में नमस्कार कर हैरान कर दिया था। कावेरी स्पेन में सहज हो सके इसलिए एडाप्शन की प्रक्रिया शुरू होने तक पांच साल की इस बच्ची को दो माह से स्पेनिश सिखाई जा रही थी। इस तरह यहां एक-एक बच्चे पर पूरा ध्यान दिया जाता है, ताकि वह उसके नए परिवेश में सहज जीवन जीने में कोई कठिनाई महसूस न करे।
बच्चों के अन्नप्राशन, कर्णछेदन, नामकरण जैसे संस्कार भी होते हैं यहां
सुधांशु ने बताया कि मध्यप्रदेश का पहला लीगल एडाप्शन सेंटर मातृछाया एक शिशुगृह ही नहीं वो परिवार भी है, जहां भारतीय संस्कृति के अनुसार बच्चे के सभी संस्कार पूरे किए जाते हैं। बच्चे के अन्नप्राशन से लेकर कर्णछेदन एवं नामकरण के संस्कार यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। ‘सेवाभारती’ परिवार बच्चों के साथ हर त्योहार मनाने मातृछाया के आंगन में उपस्थित रहता है। महीने में एक बार बच्चों को शहर में कभी चिड़ियाघर, कभी म्यूजियम तो कभी शॉपिंग मॉल जैसे स्थानों पर घुमाने की व्यवस्था की गई है।
स्पेशल चाइल्ड के लिए ”मातृछाया” की ये है अपील
सुधांशु मिश्रा ने बताया, अभी 18 लोगों का स्टाफ इन बच्चों के लिए सेवा कार्य कर रहा है । इस बीच एक दर्द भी उन्होंने बयां किया – ध्यान में आता है कि स्पेशल चाइल्ड के लिए भारत में आसानी से परिवार नहीं मिलते हैं, इस कारण से कई बच्चों को विदेश भेजना हमारी मजबूरी है । ऐसे में आप (मीडिया) के माध्यम से यही मेरा आग्रह है कि माइनर या कुछ अधिक जैसे भी बच्चे हैं वे हमारे अपने हैं, इन सभी स्पेशल चाइल्ड के लिए भी सभी परिवार भारत में ही मिलें तो बहुत अच्छा रहेगा।
कुछ इस तरह रहती है बच्चों की दैनन्दिनी
सुधांशु यहां रह रहे बच्चों के शेड्यूल के बारे में भी बताते हैं। उन्होंने बताया कि बच्चे प्रात: 7 बजे उठते हैं, उसके बाद प्रातः स्मरण होता है, फिर बोनबीटा के साथ सभी को दूध और अल्पाहार दिया जाता है। सुबह 9 बजे सभी बच्चों की मालिश होती है । 10 बजे चिप्स, हल्का आहार फिर 12 बजे भोजन दिया जाता है। दोपहर 1 से 3 तक बच्चे सोते हैं। फिर उन्हें तैयार किया जाता है और शाम की प्रक्रिया शुरू होती है, उन्हें अल्पाहार देते हैं। होमटीचर उन्हें पढ़ाने आते हैं। 5 बजे ये कक्षा समाप्त होती है, फिर इनके खेलने का समय रहता है। शेड्यूल में यदि इन्हें बाहर घुमाना है तो बाहर ले जाया जाता है। शाम साढ़े सात पर आरती, उसके बाद रात्रि भोजन तथा ठीक साढ़े आठ बजे दूध देकर इन सभी बच्चों को सुला दिया जाता है। फिर दूसरे दिन सुबह की शुरूआत ठीक सात बजे से होती है।
भोपाल के अलावा यहां भी सफलता से संचालित हैं ”मातृछाया” प्रकल्प
अभी मध्य प्रदेश में ‘सेवाभारती’ के माध्यम से भोपाल समेत ”मातृछाया” प्रकल्प ग्वालियर, भिंड, बैतूल, इंदौर, रतलाम, उज्जैन, शाजापुर, जबलपुर, सतना और सागर जिलों में संचालित हो रहे हैं । औसत प्रतिवर्ष अकेले मध्य प्रदेश की राजधानी में 15 से 30 बच्चे ऐसे मिलते हैं, जिन्हें परिवार की आस है। इसी प्रकार आप अंदाज लगा सकते हैं, कि मध्य प्रदेश के यदि सभी 53 जिलों का आंकड़ा निकाला जाए तो सोचिए कितने बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें सही परवरिश की जरूरत है और वे दर-दर भटक रहे हैं, और यदि इसी छोटे से दिखने वाले आंकड़े को देश के सभी 797 जिलों से जोड़कर देखें तो बच्चों का आंकड़ा बहुत बड़ा हो जाता है, जो आज भी सही परिवार की तलाश में हैं।
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