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डिजिटल इकोनॉमी जितनी बढ़ेगी उतना समग्र विकास होगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा

विमुद्रीकरण ने अर्थव्यवस्था को आधिकारिक रूप से औपचारिक बनाने की प्रक्रिया शुरू की, जिसके परिणामस्वरूप 2016 के बाद से और आने वाले वर्षों में डिजिटलीकरण में वृद्धि हुई और बड़े पैमाने पर आगे भी होगी, जिससे गिग अर्थव्यवस्था का जन्म अन्य देशों की तुलना में तेज गति से हुआ।

by पंकज जगन्नाथ जयस्वाल
May 20, 2023, 09:54 am IST
in विश्लेषण
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8 नवंबर 2016 को नरेंद्र मोदी जी ने नोटबंदी की घोषणा की थी। मकसद था काला धन खत्म करना। पाकिस्तान द्वारा नकली नोटों की छपाई कर खड़ी की जा रही समानांतर अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करना। आतंकवादियों और नशीली दवा के जरिये भारत को तार-तार करने के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करना। डिजिटल इकोनॉमी की दिशा में भारत को बड़े पैमाने पर अग्रसर करना। तब भी जो गलत तरीके से पैसा कमाते थे या पाकिस्तान समर्थक थे या अज्ञानता के कारण विरोध कर रहे थे, कल जब आरबीआई ने 2000 के नोट के बारे मे निर्णय लिया तो वही लोग आज फिर से अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।

विमुद्रीकरण ने अर्थव्यवस्था को आधिकारिक रूप से औपचारिक बनाने की प्रक्रिया शुरू की, जिसके परिणामस्वरूप 2016 के बाद से और आने वाले वर्षों में डिजिटलीकरण में वृद्धि हुई और बड़े पैमाने पर आगे भी होगी। मार्च 2021 तक के पीएलएफएस डेटा से पता चलता है कि “नौकरी बाजार के औपचारिककरण में महत्वपूर्ण तेजी आई थी। 2021 के दौरान नई औपचारिक नौकरियों और मौजूदा नौकरियों की औपचारिकता दोनों के द्वारा, नवंबर 2021 में ईपीएफ ग्राहकों में 13.95 लाख की शुद्ध वृद्धि हुई है।

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के जरिए लेनदेन अक्टूबर 2022 में 12.11 लाख करोड़ रुपये के नए उच्च स्तर को छू गया। पिछले साल मई में, इसने 10 लाख करोड़ रुपये के मील के पत्थर को पार कर लिया। वॉल्यूम के संदर्भ में यूपीआई ने अक्टूबर में 730 करोड़ लेनदेन का रिकॉर्ड बनाया है। सितंबर में यूपीआई लेनदेन ने 11 लाख करोड़ रुपये के निशान को तोड़ते हुए वॉल्यूम के मामले में 678 करोड़ रुपये का कारोबार किया। वर्ष 2022 में पूरे भारत में लगभग 7,100 करोड़ डिजिटल भुगतान दर्ज किए गए। यह पिछले तीन वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि थी। UPI ने 2015 के बाद से संख्या और मूल्य दोनों में मजबूत लाभ दर्ज किया है। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था, जो अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, को विमुद्रीकरण के बाद से प्रमुख आधार प्राप्त हुए हैं।

कल जो निर्णय आरबीआई ने लिया उसको समझने के लिए कुछ बिंदु :
आरबीआई ने 2000 रुपये के मूल्यवर्ग के बैंक नोटों को प्रचलन से हटा लिया; कानूनी निविदा के रूप में जारी रहेगा।
2000 रुपए मूल्यवर्ग के बैंक नोटों को चलन से वापस लेने का निर्णय लिया गया है।
2000 रुपये के मूल्यवर्ग के बैंकनोट वैध मुद्रा बने रहेंगे; नई नोटो की छपाई नहीं होगी।
बैंक एक समय में 20,000 रुपये की सीमा तक 2000 रुपये के बैंकनोटों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
कारण बताया गया है कि 2000 रुपये के नोट आमतौर पर लेनदेन के लिए उपयोग नहीं किए जाते हैं; जनता की मुद्रा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है अन्य मुद्रा मूल्यवर्ग।
सभी बैंक 30 सितंबर, 2023 तक 2000 रुपये के नोटों के लिए जमा और विनिमय सुविधा प्रदान करेंगे। बैंक खातों में 2000 रुपये के नोट जमा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं

बडे पैमाने पर इस बड़ी नोट का संग्रह कर आने वाले चुनावों में गलत इस्तेमाल की आशंका थी, इसीलिए भी यह कदम उचित लग रहा है। पाकिस्तान अपनी खत्म होती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए इस बड़ी नोट का नकली मुद्रा बनाकर हमें नुकसान पहुंचाना चाहता था उस पर नकेल कसेगी। जितनी छोटी मुद्रा उतना काला धन का संचय कम होता है। इन सब बातों को समझकर हमे डरना नहीं चाहिए, सामान्य और ईमानदार वर्ग के लिए यह निर्णय सर्वोत्तम है। जितनी डिजिटल इकॉनॉमी बढ़ेगी उतना हमारा समग्र विकास होगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा। ग्रामीण भाग में रहने वाला सामान्य व्यक्ति भी आज अपने आप को अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ पाता है, यह सबसे बड़ी उपलब्धि है।

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