अमेरिका का विदेश विभाग हर साल विश्व के विभिन्न देशों में ‘पांथिक स्वतंत्रता की स्थिति’ को लेकर रिपोर्ट जारी करता है। इस बार भी यह रिपोर्ट वहां के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने जारी की। पिछले कुछ वर्षों की तरह, इस वर्ष की रिपोर्ट में भी भारत में ‘अल्पसंख्यकों’ के लिए कुछ ज्यादा ही झुकाव रखते हुए कहा गया है कि ‘भारत के कुछ राज्यों में उन पर हिंसा की गई है’। विदेश विभाग के अधिकारी रशद हुसैन की बनाई इस रिपोर्ट से इस तरह की तथ्यहीन बातों की ही अपेक्षा की जा सकती है। भारत ने इस रिपोर्ट को निराधार बताते हुए इसे खारिज किया है।
अमेरिकी विदेश मंत्री जब इस रिपोर्ट को जारी कर रहे थे तो रशद हुसैन उनके बगल में ही खड़ा था। संभवत: रशद की ‘विशेष दिलचस्पी’ के अनुसार छपी इस रिपोर्ट में भारत पर निशाना साधा जाना हैरानी की बात है, क्योंकि सच सब जानते हैं कि भारत के कई राज्यों में ये तथाकथित ‘अल्पसंख्यक’ या सीधे शब्दों में मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी तत्व हिन्दुओं को निशाना बनाते आ रहे हैं, हिन्दू त्योहारों पर तो ये विशेष रूप से हमले करते रहे हैं तो किसी हिन्दू के नजदीकी दोस्त बनकर उसका गला काटते रहे हैं। रशद की आंखों को ये सब शायद नहीं दिखा होगा या उसके कानों तक यह बात पहुंची नहीं होगी।
रशद की रिपोर्ट कहती है कि भारत में ‘खुलेआम अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है।’ जबकि हो इससे ठीक उलट रहा है। हालांकि उस कार्यक्रम में रशद हुसैन कहता है कि उनकी रिपोर्ट में ईसाई, मुस्लिम, सिख, हिंदू दलितों सहित अन्य पांथिक समुदायों के विरुद्ध लगातार हो रहे हमलों का उल्लेख किया गया है।
रिपोर्ट में भारत पर निशाना साधा जाना हैरानी की बात है, क्योंकि सच सब जानते हैं कि भारत के कई राज्यों में ये तथाकथित ‘अल्पसंख्यक’ या सीधे शब्दों में मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी तत्व हिन्दुओं को निशाना बनाते आ रहे हैं, हिन्दू त्योहारों पर तो ये विशेष रूप से हमले करते रहे हैं तो किसी हिन्दू के नजदीकी दोस्त बनकर उसका गला काटते रहे हैं।
अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा परसों जारी की गई इस रिपोर्ट पर भारत ने कल कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह तथ्यहीन, असलियत से परे और दुर्भावनापूर्ण है इसलिए यह खारिज की जाती है।
एक और दिलचस्प बात, इस ‘अंतरराष्ट्रीय पांथिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2022’ को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने जारी करने के बाद जो भाषण दिया उसके भारत का किसी प्रकार से उल्लेख नहीं किया। बाद में मीडिया में ‘भारत के अल्पसंख्यकों की स्थिति पर नफरती टिप्पणियां’ सुनने में आईं। इस प्रेस वार्ता में लगा कि रशद ही बढ़—चढ़कर इस मुद्दे पर मीडिया को तथ्यों से भटकाने की कोशिश करते महसूस हुए।
कार्यक्रम के दौरान दिखावे के तौर पर इसी रशद ने कह दिया कि उनकी ‘रिपोर्ट में ईसाई, मुस्लिम, सिख, हिंदू दलित सहित कई पांथिक समुदायों पर किए जा हमलों का उल्लेख है। दुनिया में कई सरकारों द्वारा अपने देश में पांथिक समुदायो को खुलेआम निशाना बनाया। उनके पहनावों पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं, यह सही नहीं है।
उल्लेखनीय है कि यह रशद कार्यक्रम में ‘विशेष राजदूत’ के तौर पर शामिल हुआ था। उसने रूस, अफगानिस्तान और चीन का भी नाम लेते हुए कहा कि वहां भी पांथिक समुदायों पर अत्याचार किए जाते हैं। रशद ने भारत का उल्लेख करते हुए हरिद्वार में एक हिन्दू संगठन के कार्यक्रम का जिक्र किया और कहा कि वहां मुस्लिमों के विरुद्ध नफरती शब्दों का प्रयोग हुआ था।
लेकिन रशद को दक्षिण भार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तर पूर्व, महाराष्ट्र में कट्टर इस्लामवादियों के बोले हिन्दुओं के प्रति जहर बुझे शब्द नहीं सुनाई देते। उसे हनुमान जयंती की शोभायात्राओं पर मुस्लिम समुदाय के हमले नहीं दिखे, उसे रमजान तक के महीने में शरिया के दीवानों की हिंसा नहीं दिखी। इसलिए यह बात संदेह से परे है कि अमेरिका की उक्त रिपोर्ट में भारत संबंधी बातें तथ्य से परे पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर लिखी गई हैं। इसका मकसद समझना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है।
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