बागेश्वर धाम के सरकार पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने पटना आकर कथा करने के लिए जिस दिन स्वीकृति प्रदान की, उसके बाद से ही विवाद प्रारंभ हो गया। ऐसा लग रहा है कि बागेश्वर धाम सरकार और विवाद एक दूसरे का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
यदि बिहार मेे धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री से जुड़े विवाद की हम बात करें तो इसे दो हिस्सों में समझना होगा। पहला जब बिहार में पांच दिवसीय (13 मई से 17 मई) बागेश्वर धाम दरबार पाली मठ, नौबतपुर (पटना) में लगने की स्वीकृति मिली। उस वक्त तक कार्यक्रम की सफलता-असफलता को लेकर कोई आंकलन नहीं था। इसी दौरान राजद और जदयू की तरफ से बाबा के दिव्य दरबार को लेकर जुबानी हमला तेज हो गया था। बिहार सरकार में मंत्री और लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव लगातार कार्यक्रम पर हमले कर रहे थे। डर इस बात का था कि बागेश्वर धाम सरकार पर कोई झूठे आरोप लगाकर सनातन को अपमानित करने का घिनौना षडयंत्र बिहार की धरती पर ना किया जाए। कार्यक्रम में किसी तरह की अव्यवस्था ना उत्पन्न हो। राजद और जदयू के लोगों के लिए यह सब करना बहुत आसान था। पिछले दिनों एक यू ट्यूबर को गिरफ्तार करके, उस पर तमिलनाडु में एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) लगाया गया। बिहार के लोग आज तक नहीं जान पाए कि वह यू ट्यूबर देश के लिए खतरा कैसे था? दक्षिण भारत से आने वाले एक दलित डीएम के हत्यारे को जेल से रिहा कराने के लिए बिहार सरकार ने जेल के कानून बदल दिए।
बालाजी के आशीर्वाद से टला विध्न
धीरेन्द्र शास्त्री के बिहार में आने से पहले राजद और जदयू के नेताओं के बयान से यह स्पष्ट था कि वे बालाजी दरबार लगाने में कोई बड़ा विध्न डालेंगे। उन्होंने इसके प्रयास पहले से ही तेज कर दिए थे। बिहार सरकार के मंत्री ने हंगामा करने के लिए अपनी एक सेना भी बनाई थी। जिसका वीडियो यू ट्यूब पर खूब वायरल हुआ। तेजप्रताप ने यह तक कहा कि ‘‘समझ लीजिए। बिहार में इस वक्त हमारी सरकार है।’’
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने अपनी आपत्ति दर्ज की है कि भारतीय जनता पार्टी के इतने बड़े बड़े नेता धीरेन्द्र शास्त्री की अगवानी में क्यों लगे रहे। यदि यह नेता उनके साथ खड़े ना दिखाई देते तो धीरेन्द्र शास्त्री का कार्यक्रम भंड करने की तैयारी राजद और जदयू वाले अपने तरीके से कर चुके थे। बिहार के लोग इन बातों को खूब समझते हैं। इसलिए सवाल पूछने वाले अधिकांश वे लोग हैं, जो बिहार को जानते नहीं या फिर बिहार के बाहर रहते हैं।
कुछ पत्रकारों ने भी खोला मोर्चा
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने लिखा – बेहद दुर्भाग्यपूर्ण दृश्य। धर्म के नाम पर चमत्कार.प्रदर्शक, अशास्त्रज्ञ प्रचारकामी युवा को यदि ये भाजपा नेता इस तरह धर्मावतार की तरह प्रस्तुत करेंगे तो इनसे पूछा जाना चाहिए क्या ये सभी धीरेंद्र शास्त्री की हिंदूराष्ट्र की माँग का समर्थन करते हैं या संविधान का। किसमें निष्ठा है?
राहुल देव ने अपनी टिप्पणी में हिन्दू राष्ट्र की मांग को संविधान के बरक्श लाकर खड़ा कर दिया। जबकि राहुल देव को अपने टवीट में स्पष्ट करना चाहिए था कि बागेश्वर धाम सरकार के हिन्दू राष्ट्र की मांग संविधान के लिए खतरा कैसे है? इस प्रश्न को हल करने के लिए एक बार राहुल देव को धीरेन्द्र शास्त्री के हिन्दू राष्ट्र का संकल्प क्या है, यह जानना जरूरी होगा। यदि किसी के हिन्दू राष्ट्र की कल्पना में अधर्म का नाश, प्राणियो में सदभावना, विश्व का कल्याण जैसा मंत्र हो तो किसी को भी ‘हिन्दू राष्ट्र’ से क्या आपत्ति हो सकती है।
धीरेन्द्र शास्त्री की दरबार में आने वाली मुस्लिम महिलाओं को भी उनके हिन्दू राष्ट्र की मांग से कोई आपत्ति नहीं है। एक मुस्लिम महिला ने कहा कि ‘‘मैं अपनी समस्या के समाधान के लिए आई हूं। मुझे और किसी बात से मतलब नहीं। वे मेरे लिए एक डाॅक्टर हैं जो मेरा दुख दूर करेंगे।’’
राहुल देव ने यह टवीट करने के लिए एक अन्य पत्रकार समीर अब्बास के टवीट का सहारा लिया और उसे रिट्वीट किया। समीर ने लिखा – ‘‘केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पटना एयरपोर्ट पर अगवानी की, बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने बाबा बागेश्वर की कार ड्राइव की, फिर बिहार बीजेपी के तमाम दिग्गज नेताओं ने मंच पर जाकर खुद धीरेंद्र शास्त्री की आरती उतारी।’’
समीर अब्बास हिन्दू परंपराओं को कम जानते हैं इसलिए उन्होंने लिखा दिया कि धीरेन्द्र शास्त्री की आरती उतारी गई। जबकि सच्चाई यह है कि आरती बागेश्वर धाम सरकार की उतारी गई। उस गद्दी पर जो भी बैठेगा, उसे यह सम्मान हासिल होगा। 14वे दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो को 17 नवंबर 1950 को जब तीब्बत की सत्ता सौंपी गई, उस वक्त उनकी उम्र 15 साल की थी। उन्हें वह सारा सम्मान इस उम्र में हासिल हुआ, जो बौद्ध धर्म में किसी भी दलाई लामा को मिलता है। दलाई लामा मंगोलियन और तिब्बती शब्द के योग से बना है। जिसका शब्दिक अर्थ है महान गुरू।
भारत में संत टेरेसा को मदर कहा गया। उन्हें वेटिकन सिटी ने दो अकल्पनीय की कहानियों पर संत की उपाधि दी। इन कहानियों को समीर अब्बास और राहुल देव को पढ़ना चाहिए। इससे हो सकता है कि उनका विश्वास धीरेन्द्र शास्त्री पर थोड़ा बढ़ जाए या फिर वे टेरेसा को भी वे अंधविश्वास बढ़ाने वालों की श्रेणी में रखें।
राजद के गुस्से के पीछे की कहानी
बिहार की राजनीति को समझने वाले इस बात की तरफ भी संकेत कर रहे हैं कि राजद का विरोध स्वभाविक है। बागेश्वर धाम सरकार अपने दरबार में कन्वर्जन के खिलाफ झंडा बुलंद करते हैं। वे कन्वर्जन का विरोध करते हैं। बिहार में क्रिश्चियन मिशनरी लंबे समय से सक्रिय हैं। पिछड़े और गरीब क्षेत्रों में उनका कन्वर्जन का काम अपनी गति से चल रहा है। लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की शादी रेचल गोडिन्हो से होने के बाद उनके अंदर क्रिश्चियन समाज के लिए अतिरिक्त संवेदनशीलता आई है। पार्टी के नेता का प्रभाव पार्टी के अन्य सदस्यों पर तो पड़ेगा।
मीडिया में यह खबर आई थी कि लालू प्रसाद अपनी एक बेटी की शादी राजस्थान के एक प्रतिष्ठीत यादव परिवार में इसलिए करने को तैयार नहीं हुए क्योंकि लड़के की मां ब्राम्हण थी। अब सवाल तो उठता है कि यादव परिवार पर फिर ऐसा क्या दबाव था कि वे अपने बेटे की शादी क्रिश्चियन परिवार में करने को अचानक तैयार हो गए। यह सवाल तेजस्वी यादव के सगे मामा अनिरूद्ध प्रसाद यादव उर्फ साधु यादव ने भी उठाया था। उसके बाद उन्हें राजद की राजनीति में हासिए पर फेंक दिया गया। बिहार के लोगों ने क्रिश्चियन मिशनरी की इस ताकत को देखा है, जहां लालू प्रसाद यादव जैसे नेता को भी झुकना पड़ा।
पटना दरबार में उत्पन्न की गई बाधा
पटना के गांधी मैदान में बागेश्वर धाम महाराज को कथा के लिए जगह नहीं दी गई। आम तौर पर पटना में छोटे बड़े कार्यक्रमों के लिए गांधी मैदान उपलब्ध होता है लेकिन राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं के तीव्र विरोध के बाद गांधी मैदान आयोजकों को उपलब्ध नहीं हो सका। पटना में उनके पोस्टर फाड़े गए। राजद और जदयू के कार्यकर्ता पूरी तरह से कार्यक्रम को असफल करने के लिए पटना और उसके आस पास सक्रिय थे।
बागेश्वर धाम महाराज की एक झलक पाने के लिए लाखों की सख्ंया में लोग पटना आ जाएंगे। इस बात की कल्पना तो आयोजकों को भी नहीं थी। उन्हें एक बार देख भर लेने के लिए लोग कतार में लगे हैं। एक सच यह भी है कि बागेश्वर धाम महाराज धीरेन्द्र शास्त्री की कथा रूकवाने के लिए बिहार सरकार ने कई तरह की बाधाएं उत्पन्न की लेकिन जिन शास्त्रीजी के लिए कहा जाता है कि उन पर बालाजी का आशीर्वाद है। उन्हें फिर किस बात की चिन्ता और उनके लिए कौन सी बाधा।
भक्तों की संख्या हुई 10 लाख के पार
बागेश्वर धाम दरबार के लिए जगह मिली नौबतपुर में। दीघा एम्स और राष्ट्रीय राजमार्ग 139 के रास्ते जाए तो गांधी मैदान से 30 किमी दूर पटना शहर के बाहर नौबतपुर पड़ता। सत्ताधारी दल के नेताओं को लगा कि इस तरह वे बागेश्वर धाम सरकार के भक्तों को आने से रोक लेंगे लेकिन वे समझ नहीं पाएं कि उनके भक्त शहरों में कम और छोटे छोटे गांव और कस्बों में अधिक हैं। सभी जाति और वर्ग के लोग उनके भक्तों में शामिल हैं। उनके दर्शन के लिए सिर्फ बिहार के दूर दराज के जिलों से ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम, झारखंड, उड़िसा तक से हजारों लोग आए थे। पटना की हालत यह हो गई कि पटना सिटी से लेकर नौबतपुर तक के 20 किलोमीटर के रास्ते पर जन सैलाब उमर पड़ा हो। जब बालाजी सरकार के श्रद्धालुओं की संख्या 10 लाख को पार होने लगी फिर आयोजकों के भी हाथ पैर फूलने लगे। उनके फोन बंद हो गए। अब यदि संख्या इसी तरह बढ़ती रहती तो हालात आयोजक और प्रशासन दोनों के हाथ से बाहर जाने की स्थिति थी। इस तरह बिहार के लोग एक ऐसी कथा के गवाह बने, जिसमें श्रद्धालुओं की ऐतिहासिक उपस्थिति दर्ज की गई। भक्तों की बढ़ रही संख्या से बिगड़ रहे हालात को बागेश्वर धाम महाराज ने समझा और तत्काल यह संदेश जारी किया कि अब नौबतपुर आने की आवश्यकता नहीं है। जो जहां है, वहां टेलीविजन पर लाइव कथा सुन सकता है। गर्मी, उमस और भीड़ की वजह कार्यक्रम स्थल पर माताओं और बहनों की कठीनाई बढ़ रही है। लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है।
टिप्पणियाँ