जनजातीय दर्जे की मैतेई की मांग जायज!

Published by
अरुण आनंद

मैतेई समुदाय की अपने लिए जनजातीय दर्जे की मांग। इससे राज्य में हिंसा भड़क उठी है। मीडिया और सोशल मीडिया का एक वर्ग इसे जनजातीय और गैर-जनजातीय समुदायों के बीच के टकराव के रूप में दर्शाने की कोशिश कर रहा है।

मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद मणिपुर में हाल ही में भड़की हिंसा का कारण है मैतेई समुदाय की अपने लिए जनजातीय दर्जे की मांग। इससे राज्य में हिंसा भड़क उठी है। मीडिया और सोशल मीडिया का एक वर्ग इसे जनजातीय और गैर-जनजातीय समुदायों के बीच के टकराव के रूप में दर्शाने की कोशिश कर रहा है। ऐसा लगता है कि उसकी सारी कवायद का लक्ष्य मैतेई समुदाय को गैर-जनजातीय वर्ग में शामिल करना है। इन घटनाक्रमों के बीच आइए, कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढने की कोशिश करते हैं।

क्या मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल होने की मांग उचित है? जो लोग मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में हिंसा पर उतर आए हैं, क्या वे सही हैं? मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश का बारीकी से अध्ययन करने से कई बातें स्पष्ट होती हैं। उनमें से कुछ प्रमुख तथ्य और निष्कर्ष इस प्रकार हैं :

इस मामले में याचिका दायर करने वाले आठ लोगों में मैतेई जनजाति संघ के सचिव मुटुम चूड़ामणि मैतेई और सात अन्य सदस्य – पुयम रणचंद्र सिंह, थोकचोम गोपीमोहन सिंह, सगोलसेम रोबिंद्रो सिंह, एलंगबम बाबूराम, लेइहोरंबम प्रोजित सिंह, थियम सोमेंद्रो सिंह और मुतुम नीलमणि सिंह शामिल हैं। याचिका (रिट याचिका 229, 2023 ) के प्रतिवादियों में मणिपुर के मुख्य सचिव, मणिपुर जनजातीय मामले और पर्वतीय विभाग के मुख्य सचिव, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय के मुख्य सचिव शामिल थे।

जनजातीय समुदाय के तौर पर मैतेई की मूल पहचान और विशिष्टता को मणिपुर राज्य सरकार और केंद्र सरकार की एजेंसियों के प्रथागत संस्थान बेहतर जानते हैं। इस संबंध में, याचिकाकर्ताओं सहित विभिन्न व्यक्तियों, संगठनों ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में अनुसूचित जनजाति के तौर पर दर्ज करने के लिए संबंधित अधिकारियों को कई प्रतिवेदन दिए हैं।

मामले की सुनवाई कर रहे मणिपुर उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम.वी. मुरलीधरन ने यह आदेश पारित किया था। याचिकाकर्ताओं का रिट याचिका दायर करने के पीछे उद्देश्य यह था कि अदालत एक खास अवधि या दो महीने के भीतर भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय के दिनांक 29.5.2013 को प्रस्तुत पत्र संख्या 1902005/2012-सी &आईएम के जवाब में सिफारिश पेश करने के लिए पहले प्रतिवादी को निर्देशित करने, भारतीय संघ में मणिपुर के विलय पर हुए समझौते से जुड़े नियमों और शर्तों के अनुसार समझौते पर हस्ताक्षर करने यानी 21.9.1949 से पहले मैतेई समुदाय के जनजाति दर्जे को मणिपुर जनजातियों की एक जनजाति के तौर पर संविधान की अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के लिए रिट परमादेश जारी करे। साथ ही, मैतेई समुदाय की जनजातीय स्थिति को बरकरार रखने के लिए चौथे प्रतिवादी को निर्देश दे।

इस आवेदन के पक्ष में याचिकाकर्ता ने यह दलील प्रस्तुत की कि 21.9.1949 को हुए विलय समझौते के अमल से पहले मैतेई समुदाय का दर्जा मणिपुर की जनजातियों में से एक जनजाति के तौर पर था, पर मणिपुर की भारतीय संघ में विलय के बाद उसकी पहचान खो गई। इसलिए मैतेई को मणिपुर की जनजातियों के वर्ग में शामिल करना चाहिए ताकि उस समुदाय को संरक्षित किया जा सके और उनकी पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाया जा सके।

याचिकाकर्ताओं ने पेश किए सबूत
याचिकाकर्ता ने विभिन्न दस्तावेजी संदर्भ और सबूत प्रस्तुत किए जो दिखाते हैं कि पहले मैतेई समुदाय भी जनजातीय समुदाय के अंतर्गत ही आता था। आगे यह भी बताया गया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत भारत की अनुसूचित जनजाति सूची तैयार करने के दौरान मैतेई समुदाय को शामिल नहीं किया गया था। याचिकाकर्ता का तर्क था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 342(1) और 366 (19) (23) (25) के अनुसार, मैतेई समुदाय को जनजाति के रूप में मान्यता देकर उसके जनजाति या जनजातीय दर्जे को बहाल करना चाहिए क्योंकि मैतेई अब भी जनजातीय समुदाय है।

इसके अलावा, जनजातीय समुदाय के तौर पर मैतेई की मूल पहचान और विशिष्टता को मणिपुर राज्य सरकार और केंद्र सरकार की एजेंसियों के प्रथागत संस्थान बेहतर जानते हैं। इस संबंध में, याचिकाकर्ताओं सहित विभिन्न व्यक्तियों, संगठनों ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में अनुसूचित जनजाति के तौर पर दर्ज करने के लिए संबंधित अधिकारियों को कई प्रतिवेदन दिए हैं।

घूमती रही फाइल
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि अनुसूचित जनजाति मांग समिति द्वारा प्रस्तुत आवेदन के जवाब में भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने दिनांक 29.5.2013 को मणिपुर सरकार को एक पत्र लिखा। इस पत्र के माध्यम से केंद्र सरकार ने नवीनतम सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण और नृवंशविज्ञान रिपोर्ट के साथ-साथ विशेष सिफारिश के लिए अनुरोध किया था।

इस पत्र के बावजूद, मणिपुर सरकार सिफारिश पेश करने में विफल रही। याचिकाकर्ता ने दिनांक 18.4.2022 को केंद्र सरकार को एक आवेदन भी प्रस्तुत किया था जिसे केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय के पास आगे आवश्यक कार्रवाई के लिए भेज दिया था।

इस मामले में याचिकाकर्ता ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के एक रिट याचिका (डब्ल्यू पी (सी) नम्बर 4281, वर्ष 2002) पर दिए आदेश का हवाला दिया। इस आदेश (दिनांक 26.5.2003) के बाद, चोंगथू, खोइबू और मेट को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल किया गया था जिसके बाद अब भारतीय संविधान की अनुसूचित जनजाति की सूची में मणिपुर के 34 जनजातीय समुदाय दर्ज हो चुके हैं, लेकिन मैतेई को नहीं लिया गया।

याचिकाकर्ताओं की शिकायत यह थी कि 21.9.1949 में मणिपुर के भारतीय संघ में विलय के बाद मणिपुर के मैतेई जनजाति ने समझौते के पहले की अपनी पहचान खो दी है। अत: उसे भारत के संविधान के तहत अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करना चाहिए।

न विरोध, न दर्जा
याचिकाकर्ता ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में पांच जनजातियों – इनपुई, लियांगमाई, रोंगमाई, थंगल और जेमे के संबंध में संशोधन और नई प्रविष्टि के रूप में तीन अन्य जनजातियों— चेंगथू, खीबू और मेटे को मौजूदा सूची में शामिल करने के संबंध में मणिपुर सरकार को 31.12.99 और 3.1.2001 को भेजे गए पत्रों के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के संदर्भ में संविधान के 50 वर्षों के कार्य के बाद राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित करने के भारत सरकार के प्रस्ताव के अनुसार इस विशेष मुद्दे का समाधान करने की मांग की थी। लेकिन सरकार की ऐसी सिफारिश के बावजूद अधिकारियों ने मणिपुर की इन 8 जनजातियों को छोड़ दिया।

दिलचस्प बात यह है कि आठ समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की इस मांग का सरकारी अधिकारियों ने विरोध नहीं किया। अधिकारियों ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा, ‘आठ जनजातियों के संबंध में संशोधन करने या उन्हें शामिल करने के प्रस्ताव पर विचार हो रहा है। इस पर प्रक्रिया चल रही है।’

उच्च न्यायालय का आदेश
मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जाति का दर्जा पाने के लिए दायर याचिका पर दिए गए आदेश में कहा, ‘प्रतिवादियों द्वारा दिए गए उपरोक्त संदर्भित बयानों और पक्षों के विद्वान वकील को सुनने के बाद, यह न्यायालय रिट याचिका पर इस निर्देश के साथ फैसला सुनाना चाहता है कि चारों प्रतिवादी याचिकाकर्ताओं के मामले पर शीघ्रता से विचार करेंगे, जैसा कि ऊपर बताया गया है। फिर भी, इस संबंध में किसी भी प्रतिवादी के निर्णय से अगर याचिकाकर्ता असंतुष्ट है तो उसे इस न्यायालय से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी जाती है।’

मणिपुर उच्च न्यायालय ने अपना अंतिम फैसला आदेश सुनाते हुए उल्लेख किया है कि 18.4.2022 को मैतेई जनजाति संघ ने माननीय केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री को एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसकी प्रति 12 अधिकारियों को भी दी गई जिनमें मणिपुर के मुख्य सचिव भी शामिल हैं। प्रतिवेदन में भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जनजाति की सूची में मणिपुर की मैतेई जनजाति को शामिल करने की मांग की गई है। 31.5.2022 को जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने उस प्रतिवेदन को आगे मणिपुर के सचिव को भेजा।

उसमें कहा गया है, मुझे इस मंत्रालय के दिनांक 06.03.2019, 23.07.2021, 15.02.2022 और 07.04.2022 के समसंख्यक पत्र का संदर्भ देने और इसके साथ मैतेई जनजाति संघ के श्री सलाम गौराकीश्वर सिंह, काबोलीकाई, इंफाल पूर्वी जिला, मणिपुर 795005 के दिनांक 18.04.2022 के प्रतिवेदन को आगे भेजने का निर्देश दिया गया है जो स्पष्ट है। उचित कार्रवाई के लिए… अनुसूचित जनजाति (एसटी) को संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित किया गया है। भारत सरकार ने 15.6.1999 (और 25.6.2002 को आगे संशोधित) को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने और अन्य संशोधनों के दावों के निर्धारण की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी थी।

शीघ्र सिफारिश दे राज्य सरकार
मणिपुर उच्च न्यायालय के अनुसार, ‘भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय के उपरोक्त पत्राचार से प्रतीत होता है कि भारत के संविधान की अनुसूचित जनजातियों की सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने के संबंध में राज्य सरकार की एक सिफारिश लंबित है।’
न्यायालय के आदेश में कहा गया है, ‘इस न्यायालय को याचिकाकर्ताओं के विद्वान वकील द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में कुछ मजबूत बिन्दु दिखाई दे रहे हैं क्योंकि याचिकाकर्ता और अन्य संघ मणिपुर की जनजाति सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने के लिए लंबे समय से लड़ रहे हैं…।

संविधान की अनुसूचित जनजाति सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने का मुद्दा लगभग दस वर्ष और उससे अधिक समय से लंबित है। पिछले 10 वर्ष से सिफारिश प्रस्तुत नहीं करने के संबंध में प्रतिवादी राज्य की ओर से कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं आया है। इसलिए, उचित समय के भीतर जनजातीय मामलों के मंत्रालय को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिए प्रतिवादी राज्य को निर्देश देना उचित होगा।’

गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा 26.05.2003 को रिट याचिका संख्या 4281/2002 में पारित आदेश के अनुसार अदालत ने मणिपुर सरकार से इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर अनुसूचित जनजाति सूची में मैतेई समुदाय को शामिल करने की याचिकाओं के मामले पर शीघ्रता से विचार करने के लिए कहा है।

Share
Leave a Comment
Published by
अरुण आनंद