शेयरिंग आटो के किस्से

कामकाजी महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके पास अपने लिए समय नहीं होता। सुबह घर की सफाई और चौका-चूल्हा करने के बाद ये काम पर निकल जाती हैं। वहां दिन भर चुपचाप काम करती रहती हैं। शाम को घर लौटते समय उनके पास जो समय मिलता है, उसमें ही ये अपना दुख-सुख बांटती हैं।

Published by
राजू सजवान

शेयरिंग आटो में ड्राइवर के साथ लगती सीट में बैठा था। तभी पीछे बैठी महिला की आवाज सुनाई दी। वह किसी से बात कर रही थी। कह रही थी, ‘‘मैंने आज उसे अच्छे से झाड़ दिया।

बात कुछ दिन पहले की है। शाम को कार्यालय से घर आ रहा था। शेयरिंग आटो में ड्राइवर के साथ लगती सीट में बैठा था। तभी पीछे बैठी महिला की आवाज सुनाई दी। वह किसी से बात कर रही थी। कह रही थी, ‘‘मैंने आज उसे अच्छे से झाड़ दिया। वह कह रहा था कि पीस में कोई कमी निकली तो तनख्वाह से पैसा कट जाएगा। मैंने भी सुना दिया-अगर सीमा से ज्यादा काम कराओगे तो पीस में कमी भी निकलेगी। और अगर तेरी वजह से मेरी तनख्वाह कटी तो तुझे मैं देख लूंगी। फिर वह कहने लगा कि मैडम! आप तो नाराज हो गई। मैं तो यह कह रहा था कि ध्यान से करना। मैंने भी पलट कर जवाब दिया कि इसका मतलब मैं ध्यान से नहीं करती!’’

दूसरी तरफ से कुछ जवाब मिलता तो वह हल्का-सा सांस ले लेती, वरना वह महिला एक सांस में ही जोर-जोर से अपनी बात बता रही थी। शायद तब शाम के सात बज चुके थे। वह गुस्से में थी और खीझी हुई थी। जिस तरह आम तौर पर हम भी अपने बॉस या उस साथी कर्मचारी से खीझे रहते हैं, जो हम पर हुक्म चलाना चाहता है।

दिल्ली-मथुरा रोड पर दोनों ओर फैक्ट्रियां हैं जहां हजारों लोग काम करते हैं। इनमें महिलाओं की काफी संख्या है। खासकर टेक्सटाइल कंपनियों ने महिलाओं को अच्छा-खासा रोजगार दिया है।

खैर! आगे उस आटो से उतरा और दूसरे आटो में बैठ गया। यहां भी मुझे आगे की सीट मिली। पीछे दो महिलाएं बैठी हुई थीं। ये दोनों महिलाएं भी फोन पर बातें कर रही थीं। एक महिला सामने वाले को घर पर नाश्ता करने का न्योता दे रही थी। शायद सुनने वाला पुरुष मित्र रहा होगा। दूसरी महिला अपनी किसी भाभी से बात कर रही थी। बात खाने-पीने से लेकर और भी बहुत कुछ पर हो रही थी। साथ बैठी पुरुष सवारियां मुस्कुरा रही थीं।

मैंने आटो चालक से ठिठोली करते हुए कहा, ‘‘भाई, तुम्हारा तो इसी तरह दिन भर दूसरों की बातें सुन-सुन कर मन लगा रहता होगा।’’ लेकिन आटो चालक ने जो कहा, उसे ध्यान से पढ़िएगा। वह बोला, ‘‘दिन भर तो क्या, शाम को जब ये महिलाएं घर लौट रही होती हैं, तो उनकी बातें सुनकर कभी तो हंसी आती है और कभी दुख होता है। इनके (महिलाओं के) पास बस यही समय बचता है, जब वे खुल कर बात करती हैं। फैक्टरी में जहां महिलाएं काम करती हैं, वहां ये बात नहीं कर पातीं। घर पहुंच कर ये काम पर लग जाएंगी। वहां पति-बच्चे भी होंगे। खुलकर बात नहीं कर पाती होंगी।’’ आटो चालक की यह बात सुनकर मैं भी लज्जित महसूस करने लगा।

तब मुझे याद आया कि मेरी एक रिश्तेदार भी ऐसी ही किसी कंपनी में काम करती थी, जहां फोन बाहर रखवा दिया जाता है और केवल लंच या छुट्टी के समय दिया जाता है। सुबह भी जब ये महिलाएं कंपनी में जाती हैं तो उनकी भागदौड़ देखते ही बनती है। ये शेयरिंग आटो के मुकाबले शेयरिंग वैन में इसलिए ठूंस-ठूंस कर बैठ जाती हैं, क्योंकि वैन वाला 10 रुपये कम लेता है।

जल्दी पहुंचने के लिए इन्हें कई दफा सड़क पर भागते हुए देखा है, क्योंकि 5 मिनट की देरी होने पर प्रबंधन उनकी आधे दिन की तनख्वाह काट देता है।

खैर, अब आप जरूर बोर हो गए होंगे। यह सब पढ़ने के लिए आपके पास समय भी नहीं होगा। वैसे भी इन महिलाओं की कहानियां-किस्से पढ़ना किसे अच्छा लगेगा? और फिर किसी स्टोरी राइटर के पास इन महिलाओं का दुख-दर्द लिखने का समय भी कहां है? यह कोई ऐसी कहानी भी नहीं है कि जो हाथों-हाथ बिक जाए।

अपन कोई स्टोरी राइटर तो हैं नहीं, पर अपने को जब भी समय मिलेगा तो #शेयरिंग_आटो_के_किस्से यूं ही लिखते रहेंगे। समय मिले तो पढ़ते रहिए।

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