तेलंगाना के इस मंदिर निर्माण में लगा 4 दशकों का समय, पानी में तैरते हैं पत्थर

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Masummba Chaurasia

मंदिरों की श्रृंखला में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं। जिसके रहस्य और इतिहास को जानकर हर कोई हैरान हो जाता है। यह मंदिर दक्षिण भारत के तेलंगाना राज्य में स्थित वारंगल से 66 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर का नाम रामप्पा है। 900 साल पुराने इस मंदिर को साल 2021 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था।

900 साल पुराना है रामप्पा मंदिर
13वीं शताब्दी में बने इस मंदिर को रुद्रेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर स्वामी रामलिंगेश्वर को समर्पित हैं, जो भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। इस मंदिर का निर्माण साल 1213 ई. में काकतीय वंश के राजा गणपति देव के आदेश पर सेनापति रेचारला रुद्र ने करवाया था। इस मंदिर का निर्माण काकतीय मूर्तिकला शैली में करवाया गया है। जो अपनी इसी विशिष्ट शैली के कारण आकर्षण का केंद्र बना रहता है।

मंदिर निर्माण में लगा था 40 साल का समय
बताया जाता है, कि इस मंदिर के निर्माण में 40 साल का समय लगा था। यह मंदिर छह फुट ऊंचे तारे जैसे मंच पर खड़ा है, इस मंदिर की दीवारों, स्तंभों और छतों पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है, जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कार्य कौशल को प्रमाणित करती है। इसी वजह से किसी जमाने में इस मंदिर की सुन्दरता को देखकर यूरोपीय व्यापारी और यात्री मंत्रमुग्ध हो जाते थे, और ऐसे ही एक यात्री ने उल्लेख किया था कि दक्कन के मध्ययुगीन मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा ये मंदिर है।

पानी में तैरते हैं मंदिर में लगे पत्थर
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस मंदिर के पत्थर इतने हल्के हैं, कि पानी में डालने पर ये तैरने लगते हैं। इस दृष्य को जो भी देखता है, वो एक पल को, तो अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं कर पाता है, और यही हल्के पत्थर इस मंदिर की मजबूती के सबसे बड़े कारण हैं। पुरातत्वविदों के अनुसार उन्होंने मंदिर की जांच में पाया है, कि मंदिर अपनी उम्र के हिसाब से बहुत मजबूत है। इसी वजह से इतनी प्राकृतिक आपदाओं को झेलने के बाद भी मंदिर वैसा का वैसा ही खड़ा है।

मंदिर का नाम भगवान के नाम पर नहीं, उसके शिल्पकार के नाम पर है
इस मंदिर की एक और विशेषता है, वो ये कि हर मंदिर में विराजे देवी और देवता के नाम पर मंदिर का नाम रखा जाता है, लेकिन इस मंदिर में ऐसा नहीं है। यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसका नाम उस मंदिर को बनाने वाले शिल्पकार के नाम पर रखा गया है। इस मंदिर का निर्माण रामप्पा नाम के शिल्पकार ने किया था, जिसके नाम पर इस मंदिर को जाना जाता है, यानि रामप्पा मंदिर ।

कैसे पहुंचे रामप्पा मंदिर ?
यह मंदिर अपनी वास्तुकला और सौन्दर्य के कारण विश्व विख्यात है। इस मंदिर में न सिर्फ देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं, बल्कि विदेशों से भी सैलानी इस मंदिर की सुंदरता को देखने पहुंचते हैं। अगर आप भी इस मंदिर में दर्शन के लिए जाना चाहते हैं, तो आपको बता दें कि यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन वारंगल है, जहां से इस मंदिर की दूरी महज 70 किलोमीटर है। इस मंदिर का नजदीकी एयरपोर्ट हैदराबाद के वारंगल से 142 किमी दूर स्थित है। वहीं अगर रेलवे स्टेशन की बात करें, तो मंदिर के पास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। वारंगल रेलवे स्टेशन या हनमकोंडा रेलवे स्टेशन पर उतरना होता है, जिसके बाद ऑटो, कैब, बस से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। रामप्पा मंदिर वारंगल शहर से करीब 67 किलोमीटर दूर पालमपेट गांव में स्थित है। जिसकी वजह से श्रद्धालुओं को वारंगल या हनमकोंडा के लिए बस लेनी होती है, उसके बाद मंदिर तक पहुंचने के लिए दूसरी बस पकड़नी होती है।

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