उत्तर प्रदेश नगरीय निकाय के चुनाव में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस बार ऐतिहासिक जीत दर्ज की। पार्टी ने जहां प्रदेश के सभी नगर निगमों में महापौर के पद को जीता, वहीं 813 पार्षद पदों पर भी कब्जा किया। नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के अध्यक्षों के क्रमशः 88 और 191 पद भी भाजपा ने इस चुनाव में हथिया लिए हैं।
वर्ष 2017 के चुनाव में 16 नगर निगमों में से 14 पर ही भाजपा को जीत मिली थी, लेकिन इस बार पार्टी ने प्रदेश के सभी 17 नगर निगमों के महापौर पद पर कब्जा कर लिया। नगर निगम में पार्षदों की संख्या पर नजर डालें तो इस बार भारतीय जनता पार्टी के 1420 में से 813 जनप्रतिनिधि कमल खिलाने में सफल रहे। पिछली बार यह आंकड़ा 596 का था। शहरों में भाजपा की यह जीत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज के प्रति आमजन के विश्वास की मुहर है।
नगर पालिका के 88 अध्यक्ष और 1353 सदस्य भाजपा के
नगर पालिका परिषदों में भी इस बार मुख्यमंत्री योगी के कामकाज का जादू खूब चला। योगी आदित्यनाथ ने नगर निगम के अलावा नगर पालिका परिषद के उम्मीदवारों के पक्ष में भी जनसभा कर वोट देने की अपील की थी। जनता ने इस अपील को न सिर्फ माना, बल्कि कई जगहों पर कमल के वोट प्रतिशत में भी खूब इजाफा किया। नगर पालिका परिषद के 60 अध्यक्ष पद पर 2017 में भाजपा को जीत मिली थी। 199 सीटों में से यह आंकड़ा इस बार बढ़कर 88 पहुंच गया। वहीं पालिका परिषद सदस्यों में 2017 में भाजपा को 923 सीट मिली थी। इस बार के चुनाव में यह संख्या बढ़कर 1353 हो गई।
नगर पंचायतों में भी शतक से आगे पहुंची भाजपा
नगर पंचायतों में भी भाजपा ने परचम लहराया है। 544 में से 191 नगर पंचायतों में अध्यक्ष पद पर भाजपा के प्रतिनिधि काबिज हुए हैं। 2017 में यह आंकड़ा सिर्फ 100 का था। यानी योगी के विकास की बदौलत न सिर्फ 91 और सीटें भाजपा की झोली में आईं, बल्कि वोट प्रतिशत में इजाफा भी खूब हुआ। भाजपा के नगर पंचायत सदस्यों की संख्या भी 664 से बढ़कर 1403 हो गई।
सपा की साइकिल पंचर, बसपा का हाथी भी सुस्त
नगर निगम, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के चुनाव में प्रदेश की प्रमुख विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) इस बार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके। बसपा पिछली बार दो नगर निगमों अलीगढ़ और मेरठ के महापौर के पद पर काबिज थी, इस बार वह उसे भी बरकरार नहीं रख पाई। इस तरह 2017 की अपेक्षा इस चुनाव में इन दोनों प्रमुख विपक्षी दलों का हाल बहुत बुरा रहा। नगर निगम में सपा महापौर की रेस में शून्य पर ही रही। पार्षद 202 से घटकर 191 पर आ गए। नगर पालिका परिषद अध्यक्षों की संख्या भी 45 से घटकर 35 हो गई। 2017 में सपा सदस्यों की संख्या 477 थी, वह 2023 में 423 हो गई। 2017 में नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर सपा को 83 सीटों पर जीत मिली थी, 2023 में 78 पर सपा सिमट गई।
बहुजन समाज पार्टी के दो महापौर 2017 में चुने गए थे। इस बार उनका खाता भी नहीं खुला। पार्षद 147 से घटकर 85 हो गए। नगर पालिका परिषद अध्यक्ष बसपा के 29 से 16 हो गए। पालिका परिषद सदस्यों की संख्या 262 से 191 हो गई। नगर पंचायत अध्यक्ष भी 45 से घटकर 37 और सदस्य 218 से घटकर 215 हो गए।
भाजपा के पांच मुस्लिम उम्मीदवार भी बने नगर पंचायत अध्यक्ष
भाजपा ने इस चुनाव में कई मुस्लिम उम्मीदवार भी मैदान में उतारे थे। इनमें से पांच उम्मीवार विभिन्न नगर पंचायतों के अध्यक्ष चुने गए हैं। हरदोई की गोपामऊ से नगर पंचायत अध्यक्ष पर वली मोहम्मद जीते हैं। सहारनपुर के चिल्लकाना नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर फूल बानो, संभल के सिरसी नगर पंचायत अध्यक्ष कौसर अब्बास, मुरादाबाद के भोजपुर नगर पंचायत अध्यक्ष फ़र्ख़न्दा ज़बी और बरेली के धौरा टांडा नगर पंचायत अध्यक्ष के पद पर नदीमुल हसन ने जीत हासिल की है। इसके अलावा कई जिलों की निकायों में भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों ने पार्षद और सदस्य पद का चुनाव जीता है।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता आनंद दुबे का कहना है कि पार्टी ने मुस्लिम बाहुल सीटों से मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा था, उनमें से काफी संख्या में उम्मीदवारों ने जीत भी दर्ज की है। उनकी जीत ने मुस्लिम समाज में भाजपा के प्रति अफवाहें फैलाने वालों की दुकान अब हमेशा के लिए बंद हो गई है।
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