हाल ही में द एज आफ एआई हैज बिगिन शीर्षक से सात पन्नों का एक पत्र जारी किया था, जिसमें लिखा है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का विकास उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि माइक्रोप्रॉसेसर, पर्सनल कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाइल फोन का निर्माण था।
माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स ने हाल ही में द एज आफ एआई हैज बिगिन शीर्षक से सात पन्नों का एक पत्र जारी किया था, जिसमें लिखा है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का विकास उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि माइक्रोप्रॉसेसर, पर्सनल कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाइल फोन का निर्माण था। वे मानते हैं कि इसकी बदौलत ‘डिजिटल शिक्षक’ और ‘डिजिटल डॉक्टर’ जैसे अनगिनत क्रांतिकारी प्रयोग सामने आएंगे। ये ऐसे स्थानों पर भी शिक्षा तथा चिकित्सकीय सलाह पहुंचा सकेंगे जहां शिक्षकों या डॉक्टरों की उपलब्धता नगण्य है। यह एक सकारात्मक और रचनात्मक शक्ति है जो हमारी दुनिया को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
दूसरी ओर टेस्ला के सीईओ और आविष्कारक ईलोन मस्क सहित सैकड़ों लोगों ने एक अन्य खुला पत्र जारी किया है जिसमें शक्तिशाली एआई प्रणालियों के विकास को छह महीने के लिए रोकने का आह्वान किया गया है। यह समूह कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जोखिमों से चिंतित है और इस बात से भी कि फिलहाल इन जोखिमों के प्रबंधन पर पर्याप्त काम नहीं हुआ है। ये लोग चाहते हैं कि यह सिद्ध होने तक इनके विकास को रोक दिया जाए कि इसके प्रभाव सकारात्मक होंगे और जोखिमों को नियंत्रित रखा जा सकेगा। हैरत की बात है कि ईलोन मस्क चैट जीपीटी जैसी कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रबल विरोध करने के साथ-साथ स्वयं भी उसके जवाब में एक अलग कृत्रिम बुद्धिमत्ता परियोजना शुरू करने जा रहे हैं जिसका नाम है- ट्रुथ जीपीटी जबकि वे कृत्रिम बुद्धिमत्ता को मानव सभ्यता के भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बता चुके हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा लाभ तभी सामने आएगा जब वह मानव-श्रम का स्थान ले लेगी। एक ओर हमारा समाज एआई संबंधी भ्रम से बाहर नहीं निकल पा रहा है किंतु दूसरी प्रणाली खुद को स्थापित करने में लगी है। ऐसे में सब तकनीकी दिग्गजों की ओर देख रहे हैं जो स्वयं विभाजित दिखते हैं।
ये दोनों पत्र संकेत यह देते हैं कि दुनिया के कुछ सबसे अच्छे मस्तिष्क कृत्रिम बुद्धिमत्ता और इसके भविष्य के प्रति किस तरह ऊहापोह में हैं। कुछ लोग इसके विकास को उसी तरह रोकने के पक्षधर हैं जैसे मानव क्लोनिंग को। कुछ का कहना है कि इसे चलने दिया जाए लेकिन परमाणु शक्ति की तरह, जिसके निर्बाध प्रयोग की स्वतंत्रता नहीं है। वहीं एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव वोज्नियाक की दृष्टि में एआई अच्छे काम तो कर सकती है लेकिन वह भयंकर गलतियां भी कर सकती है क्योंकि वह मानव होने के मायने नहीं जानती। जैसे सेल्फ-ड्राइविंग कार यह पूवार्नुमान नहीं लगा सकती कि दूसरी कारें आगे क्या करने वाली हैं। पर मानव ऐसा अनुमान लगा सकता है क्योंकि वह मानव है।
इधर भारत में इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति के अनुसार एआई ज्ञान को बढ़ाने वाला बेहद उपयोगी टूल है। भारत को चाहिए कि वह इसे खुले दिल से स्वीकार कर लाभ उठाए। गूगल के पूर्व सीआईओ एरिक श्मिट ने भी इसे प्राथमिकता देने की बात कही थी। विन्ट सर्फ, जिन्हें इंटरनेट का पिता माना जाता है, ने कहा है कि समस्या एआई के साथ नहीं अपितु मानव के साथ है- जो पिछले चार सौ साल तो क्या, चार हजार साल में भी नहीं बदला है।
तात्पर्य यह कि प्रौद्योगिकी तो बदल रही है और उसकी शक्तियां भी बढ़ रही हैं लेकिन मानव उस गति से मेल नहीं बिठा पा रहा और इसीलिए एआई के भविष्य के प्रति अनिश्चित और आशंकित है। प्रसिद्ध निवेशक वारेन बफे का कहना है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा लाभ तभी सामने आएगा जब वह मानव-श्रम का स्थान ले लेगी। एक ओर हमारा समाज एआई संबंधी भ्रम से बाहर नहीं निकल पा रहा है किंतु दूसरी प्रणाली खुद को स्थापित करने में लगी है। ऐसे में सब तकनीकी दिग्गजों की ओर देख रहे हैं जो स्वयं विभाजित दिखते हैं।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)।
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