भारत प्राचीन काल से ही विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम (सम्पूर्ण विश्व एक परिवार) के भाव से देखता आया है। भारत में प्राचीन ऋषि परंपरा से अवार्चीन भारतीय महापुरुषों तक ने इस सत्य की साधना की है
आज जब विश्व वैश्वीकरण के एक दौर में है, तो संपूर्ण विश्व में जीवन की समस्याओं का हल हिंसा के माध्यम से ढूंढ़ा जा रहा है। यह दु:खद है कि अनेक देश एवं समाज समूह अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए हिंसा का सहारा ले रहे हैं। इस समय विश्व में शस्त्रों की होड़ लग गयी है, वर्चस्व स्थापित करने की इस अंधी दौड़ से ऐसा लगता है कि क्या दुनिया नष्ट होने की ओर बढ़ रही है?
भारत प्राचीन काल से ही विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम (सम्पूर्ण विश्व एक परिवार) के भाव से देखता आया है। भारत में प्राचीन ऋषि परंपरा से अवार्चीन भारतीय महापुरुषों तक ने इस सत्य की साधना की है। महत्मा बुद्ध से प्रेरणा लेकर महात्मा गांधी, भारतरत्न बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सहित अनेक महापुरुषों ने विश्व शांति एवं विश्व कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करने का कार्य किया है।
राजकुमार सिद्धार्थ ने गृह त्याग करने के उपरान्त घोर साधना कर विश्व के कल्याण का मार्ग खोज लिया। बुद्धत्व प्राप्त करने के कारण वह ‘‘तथागत बुद्ध’’ हो गए । संसार दुखमय है, दुखों से निवारण के लिए मन की साधना करते हुए धर्ममय जीवन बिताकर दुखों से मुक्ति संभव है। शील का पालन, सत्य आचरण, करुणा एवं मैत्री जैसे सद्गुणों के पालन की शिक्षा उन्होंने धर्मोपदेश में अपने शिष्यों को दी। शोषण रहित, भेदभाव मुक्त समाज जीवन उनका आदर्श था।
बाबासाहेब आम्बेडकर ने भगवान बुद्ध को अपना पहला गुरु माना है, वह कहते हैं, ‘‘मेरा जीवन तीन गुरुओं और तीन उपास्य देवतों से बना है। मेरे पहले और श्रेष्ठ गुरु बुद्ध हैं। मेरे दूसरे गुरु कबीर हैं और तीसरे गुरु ज्योतिबा फुले हैं। मेरे तीन उपास्य दैवत भी हैं। मेरा पहला दैवत ‘विद्या’, दूसरा दैवत ‘स्वाभिम ’ और तीसरा दैवत ‘शील’ (नैतिकता) है।
‘‘हम देखते हैं, आज अपने विचारों, अपनी आस्थाओं को दूसरों पर थोपने की सोच दुनिया के लिए बहुत बड़ा संकट बन रही है। लेकिन, भगवान बुद्ध ने कहा था- ‘अत्तानं एव पठमंन, पठिरुपे निवेसये’, यानी कि, पहले स्वयं सही आचरण करना चाहिए, फिर दूसरे को उपदेश देना चाहिए।
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जो महाबोधि सोसाइटी के अध्यक्ष भी थे, ने कहा था कि, ‘‘बुद्ध ने शांति का मार्ग दिखाया। यह मृतकों की नहीं, बल्कि जीवितों की शांति है। यह गहन बुद्धिमत्ता और जीवन की वास्तविकताओं की उचित समझ से उत्पन्न हुई शांति है। शांति केवल तभी स्थायी हो सकती है जब वह अन्याय को पराजित करती हुई, मानव के आध्यात्मिक और भौतिक प्रेरणाओं के बीच एक सच्चा सद्भाव स्थापित करती हो ।’’
20 अप्रैल, 2023 को ग्लोबल बुद्धिस्ट समिट, को संबोधित करते हुए नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि, ‘‘हम देखते हैं, आज अपने विचारों, अपनी आस्थाओं को दूसरों पर थोपने की सोच दुनिया के लिए बहुत बड़ा संकट बन रही है। लेकिन, भगवान बुद्ध ने कहा था- ‘अत्तानं एव पठमंन, पठिरुपे निवेसये’, यानी कि, पहले स्वयं सही आचरण करना चाहिए, फिर दूसरे को उपदेश देना चाहिए। बुद्ध सिर्फ इतने पर ही नहीं रुके थे। उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर कहा था- ‘अप्प दीपो भव:’, यानी अपना प्रकाश स्वयं बनो। आज अनेकों प्रश्नों का उत्तर भगवान बुद्ध के इस उपदेश में ही समाहित है।’’ उन्होंने आगे यह भी कहा कि, ‘‘भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध दिए हैं। जहां बुद्ध की करुणा हो, वहां संघर्ष नहीं, समन्वय होता है, अशांति नहीं, शांति होती है।’’
समस्त विश्व में, आज का मानव वर्तमान परिवेश में रक्षक की जगह भक्षक न बन जाए, इसके लिए भगवान बुद्ध के सिद्धान्तों पर विचार करने की आवश्यकता है जिससे व्यक्ति के आचरण, बुद्धि व विचार में परिवर्तन हो सके, और समाज में एकता एवं समानता, मैत्री, न्याय एवं विश्व बंधुत्व का भाव उत्पन्न हो सके। अष्टांग योग में उन्होंने यही धर्मोपदेश किया है।
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