नई दिल्ली। दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने वर्ष 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे के नौ दोषियों को सात साल की कैद की सजा सुनाई है। एडिशनल सेशंस जज पुलस्त्य प्रमाचल ने कहा कि इनकी करतूतों से समाज में असुरक्षा का माहौल बन गया और इन्होंने सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद करने की कोशिश की।
कोर्ट ने सभी दोषियों पर 21-21 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने की इस रकम में से डेढ़ लाख रुपये शिकायतकर्ता को मुआवजा के तौर पर देने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि सांप्रदायिक दंगे देश के नागरिकों के बीच भाईचारे के लिए खतरा हैं। इससे न केवल जान-माल की बर्बादी होती है बल्कि ये सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाता है। सांप्रदायिक दंगों में निर्दोष लोग मारे जाते हैं
कोर्ट ने इन सभी को मार्च में दोषी ठहराया था। कोर्ट ने जिन दोषियों को सजा सुनाई है, उनमें मोहम्मद शाहनवाज, मोहम्मद शोएब, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मोहम्मद फैसल और राशिद ऊर्फ मोनू हैं। इनके खिलाफ गोकलपुरी थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। कोर्ट ने इन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 380, 427, 346, 149 और 188 के तहत दोषी पाया है।
9/11 आतंकी हमले की तरह दिल्ली में रची गई थी साजिश
अभियोजन पक्ष ने फरवरी 2020 के दिल्ली दंगे की साजिश की तुलना अमेरिका में हुए 9/11 के आतंकी हमले से की था। दिल्ली दंगे के एक मामले में विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने जेएनयू छात्र उमर खालिद की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा था कि 9/11 आतंकी हमले की साजिश मलेशिया में रची गई। अंजाम देने में शामिल लोगों ने एक विशेष जगह पर पहुंचकर प्रशिक्षण लिया था। केवल वही लोग अमेरिका गए, जिसने घटना को अंजाम दिया गया था। ठीक ऐसे ही उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे की साजिश रची गई थी। उमर खालिद कभी धरनास्थल पर नहीं दिखा, लेकिन घटना की वही पूरी रूपरेखा तैयार करता रहा। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के कोर्ट में सुनवाई के दौरान अमित प्रसाद ने कई वाट्सएप चैट पेश किए जो उमर खालिद से संबंधित थे। साथ ही बताया कि किस तरह उमर खालिद जाफराबाद में बांटे गए पर्चे तैयार कर रहा था। पर्चे धरनास्थल के अलावा मस्जिदों के इमामों को नमाज के दौरान खुतबा पढ़ने के लिए दिए गए थे। अमित प्रसाद ने कहा कि 2020 के विरोध प्रदर्शन का मुद्दा सीएए या एनआरसी नहीं, बल्कि असल में उसे तीन तलाक कानून बनने, अनुच्छेद 370 हटने और अयोध्या के विवादित ढांचे का दर्द था। इसके जरिए सरकार को शर्मिंदा करने के लिए यह उठाया गया कदम था। इस दौरान उन्होंने उमर और शरजील इमाम के बीच की कड़ी जोड़ते हुए कहा कि शरजील भी अपने भाषणों में ऐसे ही बात करता आया है।वहीं, मामले की सुनवाई को दौरान बचाव पक्ष ने कहा था कि उमर खालिद ने कोई गोपनीय बैठक नहीं की, जो भी बैठकें हुईं, सार्वजनिक थीं, जिस पर अभियोजन ने दो तस्वीरें कोर्ट में पेश करते हुए कहा कि गोपनीय बैठक के ये साक्ष्य गूगल लेंस से तलाशने पर नहीं मिलेंगे।
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