कांग्रेस ने आतंकवाद के तुष्टीकरण के लिए टाडा और पोटा जैसे कानून समाप्त करवाए, जिस कांग्रेस ने शाहबानो प्रकरण जैसा एक वीभत्स अध्याय भारत के इतिहास में जोड़ा, जिस कांग्रेस ने आतंकवादियों के मारे जाने पर रात भर विलाप करने की घोषणा की, जिस कांग्रेस ने कश्मीर के आतंकवादियों को प्रधानमंत्री से मिलवाने और उनके साथ फोटो खिंचवाने में अपनी बहादुरी समझी, वह कांग्रेस अगर बजरंगबली का मंदिर बनवाने का वादा करने के लिए मजबूर हुई है, तो कोई तो बात होगी।
बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वादा अपने चुनाव घोषणापत्र में करने वाली कांग्रेस अब कर्नाटक में बजरंगबली का मंदिर स्थापित करने के स्वांग पर उतर आई है। लेकिन क्या स्वांग करने से वह असली रंग छिप सकता है, जो कांग्रेस के घोषणापत्र से उजागर हो चुका है? वास्तव में कांग्रेस को इस स्वांग के लिए मजबूर कर देना हिंदू चेतना की विजय का प्रारंभिक लक्षण है।
जिस कांग्रेस को निर्लज्ज तुष्टीकरण में संकोच नहीं रहता था, जिस कांग्रेस ने आतंकवाद के तुष्टीकरण के लिए टाडा और पोटा जैसे कानून समाप्त करवाए, जिस कांग्रेस ने शाहबानो प्रकरण जैसा एक वीभत्स अध्याय भारत के इतिहास में जोड़ा, जिस कांग्रेस ने आतंकवादियों के मारे जाने पर रात भर विलाप करने की घोषणा की, जिस कांग्रेस ने कश्मीर के आतंकवादियों को प्रधानमंत्री से मिलवाने और उनके साथ फोटो खिंचवाने में अपनी बहादुरी समझी, वह कांग्रेस अगर बजरंगबली का मंदिर बनवाने का वादा करने के लिए मजबूर हुई है, तो कोई तो बात होगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज और राष्ट्र की हर आपद् स्थिति में भी समाज और राष्ट्र के साथ खड़ा रहता है और जो सामान्य काल में सबसे सकारात्मक ढंग से राष्ट्र के उन्नयन और निर्माण का कार्य करता है, उसके प्रति ऐसी गहरी घृणा का मंच कांग्रेस है। लोकतंत्र इस घृणा के दुष्परिणामों का सबक सिखाने में सक्षम है, और उसे यह सबक जरूर सिखाया जाना चाहिए।
लेकिन आखिर बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात कांग्रेस को क्यों सूझी थी? क्या उसे बजरंगबली के नाम से अपनी नफरत को दर्ज करवाने की जल्दी थी? क्या वह ऐसा सिर्फ तुष्टीकरण के अपने उस चिर-परिचित एजेंडा की पूर्ति के लिए कर रही थी, जिसमें हर भारत विरोधी और हिन्दू विरोधी शक्ति के साथ कांग्रेस का गहरा संबंध सामने आता है?
या क्या ऐसा हिंदू और हिंदुत्व से जुड़े प्रत्येक प्रतीक के प्रति कांग्रेस की गहरी नफरत के कारण था? जिस कांग्रेस ने शपथपत्र पर भगवान राम को ‘काल्पनिक’ कहा हो, वह अगर बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाना जरूरी समझती हो, तो इसमें आश्चर्य की बात क्या है? इसे यह कह कर अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि कांग्रेस अपना दिल दिमाग भारत विरोधी शक्तियों के हाथों गिरवी रख चुकी है।
वास्तव में हिंदू विरोध कांग्रेस का चेहरा मात्र नहीं है, बल्कि यह मानने के पूरे कारण हैं कि हिंदू विरोध ही कांग्रेस की आत्मा है। असंख्य उदाहरण दिए जा सकते हैं, जिन्हें राजनीतिक सुविधा की दृष्टि से तुष्टीकरण की नीति मान लिया जाता है। लेकिन अगर गहराई से देखा जाए संसद में आतंकवादियों को ‘आतंकवादी भाई’ कहने वाले गृहमंत्री भी कांग्रेस ने दिया, देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का होने और प्रकारांतर से हिंदुओं का न होने की बात कहने वाला प्रधानमंत्री भी कांग्रेस ने दिया, कट्टरपंथी इस्लाम को देश के कानून, संविधान और न्यायपालिका से ऊपर साबित करने वाला प्रधानमंत्री भी कांग्रेस ने दिया और अगर थोड़ा पीछे जाकर बात की जाए तो देश को के टुकड़े कराने वाली सोच और समझ भी कांग्रेस ने दी। यह सब अनायास तो नहीं हो सकता है।
पूर्वोत्तर की स्थितियों में पिछले कुछ वर्षों में व्यापक परिवर्तन आया है। लेकिन जो परिवर्तन कांग्रेस की छत्रछाया में वहां हुआ था, उसमें पूर्वोत्तर का लगातार ईसाईकरण होना, वहां से हिंदू चिन्हों का विलोपन होना और वहां के सनातनी नागरिकों को डरा-धमका कर रखना, उनको प्रताड़ित करना शामिल था। वास्तव में यह स्थिति देश के लगभग हर राज्य में रही है। कांग्रेस के हिंदू विरोध की जो नीति आजादी के फौरन बाद जबलपुर दंगे के रूप में सामने आई थी, अब वही स्थितियां पूर्वोत्तर में पैदा करने की कोशिश की जा रही हैं। निश्चित रूप से इतिहास की गलतियों को सुधारने के लिए अभी काफी कुछ करना बाकी है।
फिर बजरंग दल के विषय पर लौटें। हिंदू विरोध की बीमारी कथित मुख्यधारा की मीडिया में भी साफ नजर आती है। प्रत्येक छोटी-बड़ी घटना पर बजरंग दल शब्द ऐसे लिख दिया जाता है, जैसे उस कथित मीडिया ने घटना में शामिल सभी लोगों की पहचान की पुष्टि स्वयं की हो। इसके बाद बजरंग दल को एक खलनायक के तौर पर प्रस्तुत करने की चेष्टा होती है।
इस नफरत भरे प्रचार का मूल यह होता है कि बजरंग दल का संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है। जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज और राष्ट्र की हर आपद् स्थिति में भी समाज और राष्ट्र के साथ खड़ा रहता है और जो सामान्य काल में सबसे सकारात्मक ढंग से राष्ट्र के उन्नयन और निर्माण का कार्य करता है, उसके प्रति ऐसी गहरी घृणा का मंच कांग्रेस है। लोकतंत्र इस घृणा के दुष्परिणामों का सबक सिखाने में सक्षम है, और उसे यह सबक जरूर सिखाया जाना चाहिए।
@hiteshshankar
टिप्पणियाँ